शिमला: शिमला में हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं सांसदो के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि हिमालयी राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियों एवं समस्याओं के प्रति इस प्रकार के चिन्तन जरूरी है। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन ऐसी नीति निर्धारण करने में भी मददगार होते है ताकि हिमालय और हिमालय में रहने वाले लोग सुरक्षित रह सकें। उन्होंने कहा कि हिमालयी राज्य हिमालय की रक्षा के साथ ही पर्यावरण सुरक्षा के प्रति अपना दायित्व निभा रहें हैं। देश को प्राण वायु दे रहें हैं। हिमालय को हमारी नही बल्कि हमको हिमालय की जरूरत हे। सामरिक दृष्टि से भी हिमालय का बड़ा महत्व है।
उन्होंने कहा कि हिमालय मात्र एक भौगोलिक संरचना नहीं, हमारी संस्कृति, दर्शन और जीवन यापन को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण कारक है। 2500 कि0मी0 सीमा में फैला पर्वतराज हिमालय भारतवर्ष का मस्तक कहलाता है। आज हिमालय को लेकर हम सबको एक बड़ी चिंता यह है कि जलवायु परिवर्तन का हिमालय पर बुरा असर हो रहा है। सदियों से हमें पालने पोषने वाले हिमालय पर आज हमारे कारण ही संकट मंडरा रहा है। आज हम ये सोचने को मजबूर हो गए हैं कि हिमालय का संरक्षण करने की सख्त जरूरत है।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि संसदीय पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र के 968 ग्लेशियरों पर ग्लोबल वर्मिंग का साफ तौर पर प्रतिकूल असर हुआ है। इससे हिमालय से निकलने वाली सदानीरा नदियों के अस्तित्व पर संकट आया है। हिमालय से देश की 11 प्रमुख नदियां निकलती हैं, यानी देश की प्यास बुझाने के लिए 65 प्रतिशत पानी हिमालयी नदियों से आता है। देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र में से 67 पीसदी भूभाग हिमालय में है। ये वन अविरल पानी और स्वस्थ वायु के कारक है। जब हिमालय का जिक्र करते हैं तो सामरिक दृष्टि से हमारे लिए एक सुरक्षाकवच का काम करता है। हिमालयी क्षेत्र में मानवीय दखल के चलते कृषि योग्य भूमि का दायरा लगातार घट रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल करीब 50 फीसदी घटकर 7.01 लाख हेक्टेयर हो गया है। हमें सोचना होगा कि प्रकृति से इतना कुछ लेने के बाद हम उसे क्या दे रहे हैं। हिमालय का अस्तित्व इसकी जीवन्तता, विविधता और नैसर्गिकता पर आधारित है। इसे संजोए रखना और समृद्ध बनाना हमारा सामूहिक दायित्व है। इसमें हम सबकी भागीदारी जरूरी है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में अपने संसाधनों को बचाने के लिए हमने एक छोटी सी पहल शुरू की है। हमने राज्य की दो नदियों रिस्पना और कोसी को पुनर्जीवित करने का आह्वाहन किया। इस अभियान में उत्तराखंड की जनता ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। रिस्पना नदी के तट पर 22 जुलाई को एक दिन में ढाई लाख से ज्याद पौधे रोपे गए। इसी तरह कोसी नदी के तट पर एक घण्टे में एक लाख 67 हजार से ज्यादा पौधे लगाए। ये कार्य केवल व्यापक जनअभियान और जागरुकता से ही संभव है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालय के जल को बचाने के लिए हमने हर जिले के जिलाधिकारी को ये टास्क दिया है कि वे अपने जिले के नदी, नालों, गाड गदेरों को गोद लें तथा उनकी देख रेख कर संरक्षण का प्रयास करें। इस प्रकार वृक्षारोपण के जरिए उसकी जलधारण क्षमता को हम बरकरार रख सकते हैं। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में चाल खालों के निर्माण और रखरखाव से जलधारण क्षमता को बढ़ाया जा रहा है। पॉलीथीन हमारी हिमालयी पारिस्थितिकी को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है। इसके इस्तेमाल से हमें यथासंभव बचना चाहिए। हिमालयी संसाधनों और लोगों के बीच सामंजस्य के लिए हमने हिमालय के ऑर्गैनिक उत्पादों को बढ़ावा दिया है। प्रधानमंत्री मोदी जी की सोच के मुताबिक हम उत्तराखंड को पूरी तरह ऑर्गैनिक स्टेट बनाना चाहते हैं। हिमालयी रेशों, अनाजों, दालों,फलों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। ये सारे प्रयास भले ही छोटे लगते हैं, लेकिन हिमालय को बचाने, यहां की पारिस्थितिकी को बचाने और हिमालय तंत्र को सरवाइव करने के लिए दूरगामी असर वाले साबित हो सकते हैं। हमने राज्य की जरूरतों को पूरा करने और संसाधनों पर दबाव कम करने के लिए छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट के साथ सोलर एनर्जी पर जोर दिया है। आपदा के दौरान त्वरित राहत उपलब्ध कराने के लिये उत्तराखण्ड में 10 हजार आपदा मित्र नियुक्त किये गये हैं।