देहरादून: मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने जैव विविधता के संरक्षण के प्रति सामुहिक प्रयासों की जरूरत बताते हुए कहा कि आज ग्लोबल विलेज की बात हो रही जबकि वसुदेव कुटम्बकम हमारा जीवन दर्शन रहा है। हमारे महान ऋषियों ने समग्र विश्व को एक परिवार माना है, इस प्रकार हम सब एक दूसरे से जुड़े है। उन्होंने कहा कि जैव विविधता को संरक्षित करने के लिये इन्टरनेशनल बायोडायवर्सिटी कांग्रेस में देश विदेश के विज्ञानियों द्वारा किया गया चिन्तन निश्चित रूप से हम सबके लिये लाभदायी होगा।
एफ आर आई में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता सम्मेलन में विभिन्न विज्ञानियों को जैव विविधता संरक्षण, परिस्थितिकी तंत्र आदि से सम्बंधित विभिन्न शोध पत्रों के लिये प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि प्रकृति को अपना मित्र मानने की भी हमारी परम्परा रही है। हमारे उपनिषदों मे ईशावास्य मिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्याँ जगत्…. अर्थात जगत के कण-कण में परमात्मा का वास बताते हुए प्रकृति की हर वस्तु का उपभोग त्याग की भावना से करने को कहा गया है। यदि हम इसका उपयोग भोगके लिये करते हैं तो प्रकृति के साथ हमारा सामजस्य बिगड जायेगा। जैव विविधता को हमारी नही बल्कि हमें जैव विविधता की जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्रकृति को संरक्षित करने की अपनी परंपराओं का निर्वहन करते हुए हमारे पूर्वजों ने विभिन्न बीजो का संग्रह ही नही किया बल्कि उनकी कई नस्लों को बचाने के लिये अपनी जान तक दी है। यह उनका अपनी जैव विविधता को बचाने के प्रति गहन चिंतन था। इसी प्रकार का चिंतन हमें आगे ले जाना होगा।
उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने प्रकृति से नाता जोडकर जैव विविधता व पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित रखने की अपनी जिम्मेदारी निभायी है। प्रकृति से जुडाव का संदेश हमें इससे भी मिलता है कि ब्रह्म कमल पुष्प तोडने से पूर्व उससे प्रार्थना की जाती है कि हम देवार्चन के लिये पुष्प ले रहे है। यही नही उस स्थान पर शहद आदि मीठी वस्तु रखते है, ताकि जैव विविधता का नुकसान न हो। प्रकृति में इस प्रकार का अपनत्व का भाव होने के बाद भी इसमें आ रहे संकट को दूर करने की दिशा में हम सबको चिन्तन करना होगा। प्रकृति से जुडकर ही हम इसे बचाने में सफल हो पायेगे। उन्होंने कहा कि जैव विविधता के संरक्षण के लिये इस सम्मेलन में हुए मन्थन का लाभ निश्चित रूप से देश व दुनिया को मिलेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जैवविविधता के मामले में उत्तराखण्ड समृद्ध राज्य हैं। हिमालय की समृद्ध संपदा हमारे लिए एक वरदान की तरह है। ये किसी न किसी रूप में हमारी आजीविका, संस्कृति औऱ सभ्यता से जुड़ी हुई हैं। हमारी ये कोशिश है कि इन क्षेत्रों में निवेश के जरिए आजीविका को भी सुधारा जाए और संसाधनों के समुचित उपयोग करते हुए इनका संरक्षण भी किया जाय। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड हिमालय की धरती है, गंगा यमुना का उद्गम स्थल है। चीड़ देवदार, बांज, बुराश के वन यहां हैं। ब्रह्मकमल समेत तमाम दुर्लभ पुष्प प्रजातियां यहां मौजूद हैं। विभिन्न प्रकार की दुर्लभ जड़ी बूटियां हिमालयी क्षेत्र में मिलती हैं। विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी वन्य जीवों की सैकड़ों प्रजातियां, देवभूमि में संरक्षित की जा रही हैं।