लखनऊ: इस बार पितृपक्ष 16 दिन की जगह 15 दिन के होंगे तो नवरात्र महोत्सव 10 की जगह 11 दिन का होगा। पंडितों के मुताबिक पितृपक्ष में पंचमी और षष्ठी तिथि एक साथ होने के कारण एक दिन की कमी आई है। नवरात्र में दूज तिथि लगातार दो दिन होने के कारण नवमी तिथि 10वें दिन पड़ेगी, वहीं दशहरा चल समारोह 11वें दिन निकलेगा।
ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि तिथियों के क्षय होने एवं बढ़ने के कारण इस तरह का बदलाव आता रहता है। 16 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो रहे हैं। मान्यता है कि इन दिनों में पूर्वज धरती पर आते हैं। पितृ पक्ष में नदी, तालाब एवं पोखरों में पितरों की शांति के लिए तर्पण होगा।
पंडित श्री प्रकाश ब्रह्मपुरिया के मुताबिक जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि में श्राद्ध करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति संन्यासी का श्राद्ध करता है, तो वह द्वादशी के दिन करना चाहिए। कुत्ता, सर्प आदि के काटने से हुई अकाल मृत्यु या ब्रह्माणघाती व्यक्ति का श्राद्ध चौदस तिथि में करना चाहिए। यदि किसी को अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि याद नहीं है, तो ऐसे लोग अमावस्या पर श्राद्ध कर सकते हैं।
शास्त्री जी ने बताया कि पितृपक्ष में दान का विशेष महत्व बताया गया है। 16 सितंबर को पूर्णिमा का श्राद्ध होगा। 17 सितंबर को प्रतिपदा का तर्पण एवं श्राद्ध होगा। 30 सितंबर को पितृमोक्षनी अमावस्या के साथ ही पितृपक्ष का समापन हो जाएगा।
16 साल बाद नवरात्र पर बना ऐसा संयोग
आचार्य पंडित राजोरिया के मुताबिक वर्ष 2000 में दो तिथि लगातार दो दिनों तक होने के कारण नवरात्र महोत्सव 11 दिन का हुआ था। 16 साल बाद फिर से ऐसा ही संयोग बना है। इस बार 1 अक्टूबर से नवरात्र शुरू हो रहे हैं।
दूज तिथि लगातार दो दिन है। घट विसर्जन नवमी तिथि पर होगा। जबकि दशहरा चल समारोह 11 अक्टूबर को निकलेगा। इसी दिन प्रतिमाएं विसर्जित होंगी। ऐसे में नवरात्र तो 10 दिन के होंगे, लेकिन नवरात्र महोत्सव पूरे 11 दिन तक रहेगा।
साभार मेधज न्यूज