नई दिल्ली: रिलायंस जियो की लॉन्चिंग के बाद टेलीकॉम कंपनियों के बीच जंग और तीखी होती जा रही है। कॉल कनेक्टिविटी विवाद के समाधान के लिए ट्राई ने भारती एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया’ और रिलायंस जियो के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर जारी विवाद पर बातचीत की और अगले हफ्ते तक कोई फैसला आने की उम्मीद है। वहीं, इस उद्योग से जुड़े जानकारों का मानना है कि फिलहाल जिस तरह से जियो और बाकी टेलीकॉम कंपनियों का रुख है उससे लगता है कि मामला जल्द ही कोर्ट पहुंचेगा। मतलब ये कि जियो के ग्राहकों के लिए मुफ्त में बात करने को लेकर मचा बवाल अदालतें ही खत्म कर पाएंगी। तब तक मुफ्त बात में आ रही मुश्किलों को झेलना ही पड़ेगा।
कुछ इस तरह हुई रिलायंस की 4जी में इंट्री
जून 2010 में यूपीए सरकार ने ब्रॉडबैंड और वायरलेस एक्सेस (बीडब्ल्यूए) की नीलामी का आयोजन किया था। नीलामी में केवल एक कंपनी इंफोटेल ब्रॉडबैंड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड(आईबीएसपीएल) सभी सर्किलों के लिए सिर्फ 12,750 करोड़ रुपये में बीडब्ल्यूए(4जी) स्पेक्ट्रम हासिल करने में कामयाब रही। बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम मिलने के कुछ ही दिनों बाद जून, 2010 में अरबपति मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस जियो इंफोकॉम ने इस कंपनी का अधिग्रहण कर लिया। इस तरह बिना नीलामी में शामिल हुए ही आरआईएल को पूरे देश में स्पेक्ट्रम हासिल हो गए।
कैग ने उठाए थे लाइसेंस प्रक्रिया पर सवाल
रिलायंस जियो द्वारा इन्फोटेल ब्रॉडबैंड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड का अधिग्रहण किए जाने की प्रकिया पर कैग ने सवाल खड़े किए थे। इतना ही नहीं, देशभर में दिए गए ब्रॉडबैंड(4जी) स्पेक्ट्रम का आवंटन रद्द करने की सिफारिश की थी। कैग का कहना था कि बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम(बीडब्ल्यूए यानि 4जी ) की नीलामी में ट्राई की सिफारिशें स्पष्ट नहीं थीं और इन खामियों के चलते ही रिलायंस इंडस्ट्रीज की दूरसंचार इकाई रिलायंस जियो इंफोकॉम को अखिल भारतीय स्तर का बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम हासिल हुआ। इससे ईबीएसपीएल के प्रमोटरों ने नीलामी के तुरंत बाद 4,800 करोड़ रुपये का फायदा कमाया। वहीं, इस मामले में रिलायंस इंडस्ट्रीज का कहना था कि बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम की नीलामी भारतीय दूरसंचार इतिहास की सबसे प्रतिस्पर्धी नीलामी थी।
सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था लाइसेंस विवाद
इसी वर्ष अप्रैल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस जियो इंफोकॉम को उस समय बड़ी राहत मिली थी जब कंपनी को 4जी लाइसेंस दिए जाने के खिलाफ याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया था। एनजीओ सीपीआईएल (सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) ने रिलायंस जियो पर 4जी लाइसेंस देने में भष्टाचार का आरोप लगाया था और इसका लाइसेंस निरस्त करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी।
अब विवाद की जड़ बना इंटरकनेक्ट पॉइंट
इस विवाद की शुरुआत रिलायंस द्वारा अन्य टेलिकॉम कंपनियों पर आरोप लगाने से शुरू हुई जिसमें कंपनी ने कहा था कि अन्य टेलिकॉम कंपनिया रिलायंस जियो की कॉल को अपने नेटवर्क पर कनेक्ट नहीं होने दे रही है, जिससे रिलायंस जियो की काफी संख्या में कॉल ड्रॉप हो रही हैं। वहीं अन्य टेलीकॉम कंपनियों का कहना था कि रिलायंस जियो द्वारा ‘मुफ्त कॉल’ की वजह से उनके नेटवर्क पर ट्रैफिक बहुत अधिक हो गया है, जिससे की इंटरकनेक्ट करने में परेशानी हो रही है।
इंटरकनेक्ट पॉइंट के जरिये ही एक कंपनी के सिम से किया गया फोन दूसरी कंपनी के सिम पर पूरा होता है।कंपनियों की दलील है कि अब तक जितने इंटरकनेक्ट प्वाइंट मुहैया कराए गए, वो टेस्ट सर्विस के लिए पर्याप्त हैं। इतना ही नहीं, अन्य दूरसंचार कंपनियों ने दूरसंचार नियामक ट्राई के सामने कॉल ट्रांसफर दर बढ़ाने की मांग रखी हैं। इसकी कीमत ट्राई ने 14 पैसे प्रति सेकेंड रखी है, इसी चार्ज को टेलीकॉम कंपनियां बढ़वाना चाहती हैं।
हालांकि ट्राई ने सबकी बात सुनकर सरकार द्वारा इंटरकनेक्ट दर में बदलाव पर विचार करने की बात कही है। पर अगर जैसा है वैसा ही चलता रहा तो क्या रिलायंस की बहुचर्चित स्कीम ‘जियो’ एक फ्लॉप शो बनकर ही रह जाएगी।
साभार एनडीटीवी इंडिया