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उ0प्र0 कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि विशेषज्ञों/वैज्ञानिकों ने किसानों को धान, मक्का, गन्ने की खेती के लिए उपयोगी सुझाव दिये

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि विशेषज्ञों/वैज्ञानिकों ने किसानों को धान, मक्का, गन्ने की खेती के लिए उपयोगी सुझाव दिए हैं। धान की खेती में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनपदों में लम्बी अवधि की धान की प्रजातियों स्वर्णा, सांॅभा, महसूरी व महसूरी की नर्सरी शीघ्र डालनें, अधिक जल भराव वाले क्षेत्रों हेतु जहां एक मीटर से अधिक पानी लगा रहता है, धान की संस्तुत प्रजातियों यथा जलनिधि एवं जलमग्न की सीधी बुआई करने, उन क्षेत्रों में जहां खेत में पानी 50 से 100 सेमी. तक कम से कम 30 दिन भरा रहता है रोपाई हेतु जल लहरी एवं जलप्रिया की नर्सरी 10 जून तक अवश्य डाल दें।

सामयिक बाढ़ वाले क्षेत्रों हेतु बाढ़ अवरोधी, स्वर्णा सब-1 तथा कम जल भराव वाले क्षेत्रों हेतु जल लहरी एवं एन.डी.आर.-8002 प्रजातियों के बीज की व्यवस्था करें ताकि जून के प्रथम सप्ताह में नर्सरी डाली जा सके।  धान की मध्यम अवधि वाली प्रजातियां यथा नरेन्द्र धान-359, मालवीया धान-36, नरेन्द्र धान-2064, नरेन्द्र धान-2065 आदि के बीज की व्यवस्था करें। संकर प्रजातियों यथा एराइज-6444, 6201, पी.एच.बी.-71, नरेन्द्र संकर धान-2, 3, के.आर.एच.-2, पी.आर.एच.-10, जे.के.आर.एच.-401 आदि के बीज की व्यवस्था करें ताकि जून के प्रथम सप्ताह में नर्सरी डाली जा सके।जिन क्षेत्रों में शाकाणु झुलसा की समस्या है तथा बीज शोधित न हो, ऐसी दशा में उनमें 25 किग्रा0 बीज को रातभर पानी में भिगोने के बाद दूसरे दिन अतिरिक्त पानी निकाल देने के बाद 75 ग्राम थीरम या 50 ग्राम कार्बेन्डाजिम को 8-10 लीटर पानी में घोलकर बीज में मिला दिया जाये इसके बाद छाया में अंकुरित करके नर्सरी डाली जायें। बीज शोधन हेतु 5 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से ट्राइकोडर्मा का प्रयोग किया जाये।

    मक्का की खेती लिए कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि विशेषज्ञों/वैज्ञानिकों ने सुझाव दिए हैं कि अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए मक्का की देर से पकने वाली संकर प्रजातियों गंगा-11, सरताज,  एच.क्यू.पी.एम.-5,  प्रो-316 (4640), बायो-9681, वाई-1402 तथा संकुल किस्म प्रभात की बुआई  करें। यदि बीज शोधित न हो तो बीज बोने से पूर्व 1 किग्रा. बीज को 2.5 ग्रा. थीरम से शोधित करना चाहिये या बीज को इमिडाक्लोप्रिड 2 ग्रा./किग्रा. से बीज को शोधित करना चाहिए।
कृषि वैज्ञानिको ने अरहर की खेती के लिए किसानों को सुझाव दिया हैं कि सिंचित क्षेत्रों में पश्चिमी उ.प्र. हेतु अरहर की अगेती संस्तुत प्रजाति पारस तथा सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु संस्तुत प्रजातियों यू.पी.ए.एस.-120, टा-21 तथा पूसा-992 की बुवाई जून के प्रथम सप्ताह में करने के लिये बीज की व्यवस्था कर लें। बुआई से पूर्व यदि बीज शोधित न हो तो एक किग्रा0 बीज को 2 ग्रा0 थीरम, एक ग्राम कार्बेन्डाजिम अथवा 4 ग्राम ट्राईकोडर्मा $ 1 ग्राम कारबाक्सिन से उपचारित करें। बुआई से पहले हर बीज को अरहर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें।
गन्ना की खेती के लिए कृषि विशेषज्ञों/वैज्ञानिकों ने सुझाव दिए हैं कि फरवरी/मार्च में बोये गये गन्ने की गुड़ाई, सिंचाई करें/खरपतवार साफ कर दें। ऊनी माहू (वूली एफिड) दिखाई देने पर मेटासिस्टाक्स 0.05 प्रतिशत का छिड़काव 15 दिनांे के अंतराल पर दो या तीन बार करें। अंकुर बेधक, जड़ बेधक, चोटी बेधक से ग्रसित पौधों को समय-समय पर निकालें तथा अण्ड-समूहों को एकत्र कर नष्ट कर दें। शल्क कीट एवं गुलाबी चिकटा का प्रकोप होने पर मैलाथियान 0.01 प्रतिशत या डाईमेथोएट 0.08 प्रतिशत का गन्ने की सूखी पत्तियों के निकालने के बाद छिड़काव करें। काला चीकटा का प्रकोप होने पर क्लोरपायरीफास/क्यूनालफास का 0.2 किग्रा. मूल तत्व प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें। पायरीला का प्रकोप होने पर तथा परजीवी (इपीरिकेनिया मेलानोल्यूका) न पाये जाने की स्थिति में मेटाराइजियम एनआईसोप्ली का संस्तुति अनुसार पर्णीय छिड़काव करें।

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