नई दिल्ली: दिल्ली के एक कोर्ट ने मंगलवार को एक घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कहा कि पत्नी और बच्चों को संभालना पति की जिम्मेदारी है और इससे उसे छूट नहीं मिल सकती। पति ने सेशन कोर्ट में अर्जी देकर मजिस्ट्रेट के उस फैसले को रद्द करने की मांग की थी, जिसमें उसे पत्नी को 15 हजार रुपये महीना गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया है।
एडिशनल सेशलन जज संजीव कुमार ने गुजारा भत्ता के आदेश को रद्द करने की उसकी अर्जी को खारिज कर दिया और कहा कि परिवार की देखरेख से वो भाग नहीं सकता है। कोर्ट ने कहा कि पत्नी बेरोजगार है और एक बच्चा उसके साथ रहता है, ऐसे में अगर पति उसे पैसा नहीं देगा तो उसका गुजारा कैसे होगा। पति ने कोर्ट में स्वीकार किया कि वो 40 हजार हर माह कमाता है।
मजिस्ट्रेट कोर्ट ने इस मामले में नवंबर 2016 में शख्स को पत्नी को दस हजार और बेटे को पांच हजार रुपए हर माह देने का आदेश दिया था। पति ने सेशन कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अर्जी में कहा था कि ये उसके लिए मुश्किल हो रहा है क्योंकि वो खुद किराए के मकान में रहता है। वहीं पत्नी ने कोर्ट में बताया कि पति 45 हजार हर माह कमाता है और उसके पास काफी प्रोपर्टी भी है।