नई दिल्ली: केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक और संसदीय कार्य मंत्री श्री अनंत कुमार ने कहा है कि गरीबों को किफायती स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के लिए चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में संवर्धन और विनियमन साथ-साथ होने चाहिए। आज नई दिल्ली में आयोजित नौवें चिकित्सा प्रौद्योगिकी सम्मेलन में उन्होंने कहा कि मुनाफा कमाने और पैसा बनाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में विनियमन आवश्यक है, ताकि गरीबों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना संभव हो सके। उन्होंने कहा कि कार्डियक (हृदय संबंधी) स्टेंट को पहले ही आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल कर लिया गया है और जल्द ही इसे डीपीसीओ के तहत लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण आगे की कार्रवाई करने से पहले हितधारकों के साथ सलाह-मशविरा करेगा।
मंत्री महोदय ने कहा कि सरकार देश में चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए अनेकानेक कदम उठा रही है। प्रतिलोमित (इन्वर्टेड) शुल्क ढांचे को दुरुस्त कर दिया गया है। श्री अनंत कुमार ने कहा कि जीएसटी की बदौलत इस क्षेत्र में कराधान लगभग 12 फीसदी और नीचे आ जाएगा। उन्होंने कहा कि 1200 करोड़ रुपये के निवेश के साथ प्रथम चिकित्सा प्रौद्योगिकी पार्क को पहले ही आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में स्थापित कर दिया गया है। हिमाचल प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना एवं महाराष्ट्र ने भी इस तरह के पार्कों की स्थापना में दिलचस्पी दिखाई है और भारत सरकार इन प्रयासों का समर्थन करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि इन पार्कों की स्थापना से विनिर्माण लागत 30 प्रतिशत और घट सकती है तथा साझा सुविधाओं की पूलिंग की बदौलत भारतीय चिकित्सा प्रौद्योगिकी का क्षेत्र विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकता है।
श्री अनंत कुमार ने चिकित्सा उपकरणों के निर्माताओं का आह्वान किया कि वे अनुसंधान एवं नवाचार के कार्य करें और खुद को उत्क्रम अभियांत्रिकी (रिवर्स इंजीनियरिंग) या पुन: अभियांत्रिकरण (री-इंजीनियरिंग) तक ही सीमित न रखें।
भारतीय चिकित्सा प्रौद्योगिकी क्षेत्र का आकार लगभग 5.5 अरब अमेरिकी डॉलर रहने का अनुमान है, जो भारत में हो रहे स्वास्थ्य संबंधी खर्चों में लगभग 7 से 8 फीसदी का योगदान करता है। इसे वैश्विक रैंकिंग में 20वें पायदान पर और एशियाई स्तर पर रैंकिंग में चौथे पायदान पर रखा गया है।