म्यूकोर्मिकोसिस, जिसे ब्लैक फंगस संक्रमण के रूप में भी जाना जाता है, कोई नई बीमारी नहीं है। इस तरह के संक्रमण महामारी से पहले भी सामने आए थे। हालांकि इसका प्रसार बहुत कम था। लेकिन अब, कोविड -19 के कारण, यह दुर्लभ लेकिन घातक कवकीय (फंगल) संक्रमण के मामले बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। कोरोनावायरस एसोसिएटेड म्यूकोर्मिकोसिस (सीएएम) रोग उन रोगियों में पाया जा रहा है जो या तो ठीक हो रहे हैं या कोविड -19 से उबर चुके हैं। आइए यह जानने के लिए हम इस विषय पर अपनी पिछली पोस्ट से आगे बढ़ें, कि हम अपनी और अपने प्रियजनों की रक्षा के लिए और क्या कर सकते हैं।
एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने पिछले सप्ताह एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस संक्रमण के बढ़े हुए मामलों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि “पहले, म्यूकोर्मिकोसिस आमतौर पर मधुमेह मेलिटस से पीड़ित लोगों में पाया जाता था। यह एक ऐसी स्थिति है जहां किसी के रक्त शर्करा (ग्लूकोज) का स्तर असामान्य रूप से बहुत अधिक होता है। कीमोथेरेपी के दौर से गुजरने वाले कैंसर के मरीज, जिनका प्रत्यारोपण हुआ है, और इम्यूनोसप्रेसेन्ट (प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करने वाली दवाएं) लेने वाले लोगों में भी यह संक्रमण पाया जाता है। लेकिन अब कोविड-19 और इसके इलाज के कारण इसके मामलों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। एम्स में ही फंगल संक्रमण के 20 से अधिक मामले हैं, जिनमें से सभी कोविड पॉजिटिव हैं। कई राज्यों में 400 से 500 मामले दर्ज किए गए हैं, वो सभी कोविडरोगियों में।”
कोविड – 19 से उबरने के दौरान या उसके बाद यह संक्रमण रोगियों को क्यों और कैसे प्रभावित करता है?
कोविड – 19 के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं शरीर मेंलिम्फोसाइटों की संख्या को कम करती हैं। ये लिम्फोसाइट्स तीन प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाओं में से एक होती हैं, जिनका काम बैक्टीरिया, वायरस और परजीवी जैसे रोग पैदा करने वाले विभिन्न रोगजनकों (पैथोजन) से हमारे शरीर की रक्षा करना है। लिम्फोसाइटों की संख्या में कमी आने से रोगी के सामने लिम्फोपेनिया नामक की एक चिकित्सीय स्थिति पैदा होती है, जिससे कोविड – 19 के रोगियों में इस अवसरवादी फंगल संक्रमण को फैलने का रास्ता मिल जाता है।
जिन मरीजों की रोग – प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से काम नहीं करती है, उनमें म्यूकोर्मिकोसिस होने की संभावना अधिक होती है।और चूंकि कोविड – 19 का इलाज प्रतिरक्षा प्रणाली के कामकाज को दबाने के लिए जाना जाता है, इसलिए रोगियों को ब्लैक फंगस के संक्रमण से ग्रसित होने के जोखिम अधिक होता है।
रोग और लक्षण:
मानव शरीर के अंग विशेष पर हमले के आधार पर म्यूकोर्मिकोसिस को वर्गीकृत किया जा सकता है। इसके संक्रमण से प्रभावित होने वाले शरीर के विभिन्न हिस्सों के अनुरूप संक्रमण के संकेत और लक्षण भी अलग-अलग होते हैं।
- राइनो ऑर्बिटल सेरेब्रल म्यूकोर्मिकोसिस : यह संक्रमण तब होता है जब कवक बीजाणुओं को सांस के जरिए शरीर के भीतर लिया जाता है। यह नाक, आंख/आंख के सॉकेट की कक्षा, मौखिक गुहा को संक्रमित करता है और यहां तक कि मस्तिष्क तक भी फैल सकता है। इसके लक्षणों में सिरदर्द, नाक बंद होना, नाक से पानी निकलना (हरा रंग), साइनस में दर्द, नाक से खून बहना, चेहरे पर सूजन, चेहरे पर उद्दीपन में कमी और त्वचा के रंग में कमी आना शामिल है।
- पल्मोनरी म्यूकोर्मिकोसिस : जब बीजाणु सांस अंदर खींचते हैं और श्वसन तंत्र तक पहुंचते हैं, तो वे फेफड़ों को प्रभावित करते हैं। इस संक्रमण के लक्षण बुखार, सीने में दर्द, खांसी और खून की खांसी आदिहैं।
यह फंगस जठरांत्र संबंधी मार्ग, त्वचा और अन्य अंगों को भी संक्रमित कर सकता है। लेकिन इसका सबसे आम रूप राइनो सेरेब्रल म्यूकोर्मिकोसिस है।
कोविड –19 के रोगियों द्वारा उठाए जाने वाले निवारक उपाय:
निम्नलिखित चिकित्सीय स्थितियों वाले लोगों को बेहद सावधान रहना चाहिए, उन्हें लगातार अपने स्वास्थ्य की निगरानी करनी चाहिए और निम्नलिखित निवारक उपाय भी करने चाहिए।
मधुमेह के रोगी (अनियंत्रित मधुमेह) + स्टेरॉयड का उपयोग + कोविड पॉजिटिव – तीनों एक साथ मिलकर किसी रोगी को इस संक्रमण के बेहद अधिक जोखिम वाली स्थिति में डाल देते हैं। इसलिए मधुमेह के रोगियों को हमेशा अपने रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी और उसे नियंत्रण रखना चाहिए।
स्टेरॉयड का दुरुपयोग भी चिंता का एक विषय है जो सीधे किसी रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है।
हल्के संक्रमण वाले कोविड पॉजिटिव रोगियों को बिल्कुल सख्ती के साथ स्टेरॉयड लेने से बचना चाहिए। एक ओर, हल्के संक्रमण वाले कोविड के मामलों के उपचार में स्टेरॉयड का कोई काम नहीं हैं। दूसरी ओर, स्टेरॉयड लेने से म्यूकोर्मिकोसिस जैसे द्वितीयक स्तर के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इससे कोविड – 19 से ठीक होने के बाद भी फंगल संक्रमण का जोखिम बहुत अधिक होता है। इसलिए यदि किसी कोविड-संक्रमित व्यक्ति का ऑक्सीजन संतृप्ति स्तर सामान्य है, और उसे चिकित्सकीय रूप से हल्के के रूप में वर्गीकृत किया गया है, तो उसे स्टेरॉयड लेने से पूरी तरह से बचना चाहिए।
जो लोग स्टेरॉयड का सेवन कर रहे हैं, उन्हें भी अपने ब्लड शुगर के स्तर की जांच कराते रहना चाहिए। ज्यादातर मामलों में, जिन व्यक्तियों को मधुमेह नहीं है, वो पाते हैं कि स्टेरॉयड लेने के बाद, उनके ब्लड शुगर का स्तर 300 से 400 तक बढ़ जाता है। इसलिए, अपने ब्लड शुगर के स्तर की लगातार निगरानी करना जरूरी है।
प्रो. गुलेरिया ने कहा कि “कोविड -19 के मरीजों द्वारा ली जा रही स्टेरॉयड की अधिक खुराक किसी काम की नहीं है। हल्की से मध्यम खुराक काफी अच्छी होती है। आंकड़ों के मुताबिक स्टेरॉयड सिर्फ 5 से 10 दिन (अधिकतम) तक ही देना चाहिए। इसके अलावा, स्टेरॉयड ब्लड शुगर के स्तर को बढ़ा देते हैं, जिसे नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है। उन्होंने ने कहा कि ”यह बदले में फंगल संक्रमण की संभावना को बढ़ा सकता है।”
मास्क पहनना अनिवार्य है। हवा में पाए जाने वाले फंगल बीजाणु आसानी से नाक के जरिए शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। यह तथ्य संक्रमण को रोकने में, मास्क पहनने की आदत को दोगुना महत्वपूर्ण बनाता है। जो लोग निर्माण स्थलों पर काम करते हैं या वहां जाते हैं, उन्हें इस बारे में विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।
ये कवक कहां पाए जाते हैं?
म्यूकोर्मिकोसिस नाम का संक्रमण म्यूकॉर्माइसेट्स नाम के फफूंद के एक समूह के कारण होता है। यह प्राकृतिक रूप से हवा, पानी और यहां तक कि भोजन में भी पाया जाता है। यह हवा से फंगल बीजाणुओं के जरिए शरीर में प्रवेश करता है या कटने, जलने या त्वचा पर चोट लगने के बाद यह त्वचा पर भी हो सकता है।
इस संक्रमण का जल्द पता लगाने से भविष्य में देखने की क्षमता में होने वाली संभावित हानि या मस्तिष्क के संक्रमण को रोका जा सकता है।
पालन किये जाने वाले अन्य निवारक उपाय:
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मामूली लक्षण के प्रति भी लापरवाही न बरतें:
आंखों और नाक के आसपास दर्द और लाली, बुखार (आमतौर पर हल्का), एपिस्टेक्सिस (नाक से खून बहना), नाक या साइनस में अवरोध, सिरदर्द, खांसी, सांस की तकलीफ, खून की उल्टी, मानसिक स्थिति में बदलाव और देखने की क्षमता में आंशिक नुकसान। |
डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की जिम्मेदारियां
कोविड – 19के मरीजों को छुट्टी देते समय, उन्हें म्यूकोर्मिकोसिस के शुरुआती लक्षणों या संकेतों के; जैसे कि चेहरे का दर्द, अवरोध, अत्यधिक डिस्चार्ज, दांतों का ढीला होना, सीने में दर्द और सांस की कमी बारे में बतायें। |