केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज NDMC कन्वेंशन सेंटर, नई दिल्ली में ‘महाराणा: सहस्र वर्षों का धर्मयुद्ध’ पुस्तक का विमोचन किया और कार्यक्रम को संबोधित किया। श्री शाह ने कहा कि भारतवर्ष के त्याग, बलिदान और संघर्ष को पारिभाषित करने वाली इस पुस्तक के लिय मैं इसके लेखक डॉ ओमेंद्र रतनु जी और इसके प्रकाशक प्रभात प्रकाशन को बधाई देता हूँ।
श्री शाह ने कहा कि मुझे कई लोगों ने पूछा कि आप क्यों इस पुस्तक के विमोचन में जा रहे हैं? मैंने कहा कि मैं क्यों न जाऊं? ‘महाराणा: सहस्र वर्षों का धर्मयुद्ध’ पुस्तक में देश को बचाने और बनाने के लिए बप्पारावल से लेकर महाराणा प्रताप कर सिसोदिया वंश के संघर्ष की कहानी है। हमने अपनी स्वाधीनता के लिए लगभग 1000 साल तक लड़ाई लड़ी जिसके कारण आज हम न केवल बचे हुए हैं बल्कि नया इतिहास लिख रहे हैं। मैं इस संघर्ष के सभी नायकों को नमन करता हूँ एवं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। डॉ रतनुजी का यह प्रयास विफल नहीं जाएगा। आजादी के अमृतकाल में ही मेवाड़ की वीरगाथा का प्रकाशन होना बहुत गर्व की बात है। मैं ओमेंद्र रतनुजी का धन्यवादी हूँ कि उन्होंने सिसोदिया वंश के 1000 साल के संघर्ष को हम सबके सामने रख दिया है। मैं डॉ रतनुजी को ये विश्वास दिलाता हूँ कि आपका प्रयास विफल नहीं जाएगा और ये हर्ष का विषय है कि आजादी के अमृतकाल में ही मेवाड़ की वीरगाथा आज गद्य रूप में प्रकाशित हो रही है।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि देश में अनेक स्थानों पर अनेकों वीर योद्धाओं, राजा-महाराजाओं ने देश की आन-बान और शान के लिए लड़ाई लड़ी है, मातृभूमि की रक्षा के लिए आक्रमणकारियों से वर्षों संघर्ष किया है। कई राजवंशों ने मिट्टी के लिए पीढ़ियों तक लड़ाइयां लड़ी हैं। इतिहास सरकारों के आधार पर नहीं बल्कि सत्य घटनाओं पर चलते हैं। मैं आज भी कहना चाहता हूँ कि इतिहास पुस्तकों का मोहताज नहीं है। यह रात में आकाश में चमकती बिजली की तरह है जो रात के अंधेरे में भी उजाला बिखेर देती है। हमें टीका टिप्पणी छोड़कर अपने गौरवशाली इतिहास को जनता के सामने रखना चाहिए, जब हमारा प्रयास बड़ा होगा तो झूठ का प्रयास खुद ही छोटा हो जायेगा, इसलिए हमें हमारा प्रयास बड़ा करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। झूठ पर टीका-टिप्पणी करने से भी झूठ प्रचारित होता है। हमें अपना इतिहास लिखने से कोई नहीं रोक सकता। हम किसी के मोहताज नहीं हैं, हम अपना इतिहास खुद लिख सकते हैं मैं डॉ ओमेंद्र रतनुजी को उनके इस साहसिक प्रयास के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि किसी भी समाज को अपना उज्ज्वल भविष्य बनाना है तो अपने इतिहास से प्रेरणा और सीख लेकर आगे का रास्ता प्रशस्त करना चाहिए। कुछ लोगों ने इतिहास को इस तरह लिखा कि देश में निराशा का माहौल पनपा लेकिन ये भारत भूमि एक ऐसी भूमि है जहां निराशा टिक ही नहीं सकती। हम यदि इस पुस्तक को बारीकी से देखें तो कई चीजें दिखाई पड़ेगी। हमने अपने इतिहास को सही से जाना ही नहीं। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मालूम होता है कि बप्पारावल ने उस समय राजाओं को साथ लेकर किस तरह इस्लामी आततायियों से लोहा लिया था और अरब हमलावरों को दिन में तारे दिखाने का काम किया था। ऐसे वीर थे बप्पारावल। उनके इस साहसिक और वीरोचित प्रयास ने लगभग 500 वर्षों तक देश की पश्चिमी सीमा को आक्रमण से मुक्त रखा। हालांकि कच्छ के कोने से कई हमले हुए भी लेकिन हर बार आक्रमणकारियों को उन्होंने वापिस भेजा। इसी तरह रावलखुमान ने भी कई बार विदेशी आक्रांताओं को बाहर खदेड़ने का काम किया हालांकि इतिहास ने उनके साथ कभी भी न्याय नहीं किया। रावलरत्न सिंह और रावलखुमान के कालखंड में भी लगभग 40 राजवंशों को एकत्रित कर मजबूत विरोध यहाँ से हुआ था। महाराणा लक्ष्यसिंह, राणाकुंभा, राणासांघा और महाराणा प्रताप तक, सभी के कालजयी इतिहास को संजोने का काम डॉ ओमेंद्र रतनुजी ने किया है।
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा यदि हम अपने इतिहास को सच्चाई और अपने दृष्टिकोण से लिखने का प्रयास करें तो अभी बहुत देर नहीं हुई है। लड़ाई लंबी है लेकिन यह जरूरी है कि हम अपने इतिहास को सबके सामने रखें। देवायुर के संग्राम की इतिहास में कहीं चर्चा नहीं होती। कई गौरवशाली गाथाओं पर समय की धूल पड़ी थी, उस धूल को ढंग से हटाकर घटनाओं की तेजस्विता को सब लोगों के सामने लाने का काम हमें करना चाहिए। हमारे यहाँ कई तेजस्वी साम्राज्य स्थापित हुए लेकिन इतिहास लिखनेवालों ने केवल मुग़ल साम्राज्य की ही चर्चा की। पाण्ड्य साम्राज्यने 800 वर्षों तक शासन किया तो अहोम साम्राज्य ने असम को लगभग 650 साल तक स्वतंत्र रखा। अहोम ने खिलजी से लेकर औरंगजेब सबको हराया। दक्षिण भारत के पल्लव राजवंश ने लगभग 600 साल तक, चालुक्य ने 600 वर्षों तक, मौर्या वंश ने अफगानिस्तान से लेकर श्रीलंका तक लगभग 550 वर्षों तक, सातवाहन ने 500 वर्षों तक तो गुप्तवंश ने 400 सालों तक शासन किया। समुद्रगुप्त ने पहली बार भारत की कल्पना को चरितार्थ करने का प्रयास और इसमें सफलता भी प्राप्त की। इस पर संदर्भ ग्रन्थ लिखने की परम आवश्यकता है। हमें अपना गौरवशाली इतिहास जनता के सामने रखना चाहिए। यदि हमें लगता है कि इतिहास गलत लिखा हुआ है तो हम इसे सही करने का प्रयास करें। भारत सरकार भी इस दिशा में इनिशिएटिव ले रही है लेकिन इतिहास यदि समाज जीवन के इतिहासकार लिखते हैं तो सही लिखा जाता है। विजयनगर, मौर्य, गुप्त, मराठों ने काफी समय तक संघर्ष किया। पंजाब में सिख गुरुओं ने लड़ाइयाँ लड़ी तो वीर दुर्गादास राठौड़ ने अकेले दम पर वीरता का अदम्य साहस प्रस्तुत किया। बाजीराव पेशवा ने अटक से कटक तक भगवा लहराया लेकिन इन सबके जीवन के साथ इतिहास ने न्याय नहीं किया। अगर वीर सावरकर नहीं होते तो 1857 का बहुत सारा सच भी छिपा ही रह जाता। आज भी रानी पद्मिनी का जौहर देश के हर व्यक्ति को गौरव के साथ जीने का सम्मान देता है। आत्मरक्षा के लिए सर्वोच्च्च बलिदान की प्रथा भारत में वर्षों से चली आ रही है। हार और जीत के कारण इतिहास नहीं लिखा जाता लेकिन उस घटना ने परिणाम क्या छोड़ा, इस पर लिखा जाता है। जीतने वाले कई बार हारे हुए होते हैं, बाद में यह प्रस्थापित भी हो जाता है।
श्री शाह ने कहा कि दुनिया के अलग अलग कोनों में जीते सभी आक्रमणकारियों को भारत आकर रुकना पड़ा। आज फिर से दुनिया के सामने गौरव से खड़े होने का समय आ गया है। समाज में जब जनजागृति की चिंगारी फैलती है और जब वह जनजागृति की चिंगारी आग में बदलती है, तभी समाज का गौरव जागरुक होता है। आज हमारी संस्कृति को दुनियाभर से स्वीकृति मिल रही है। इतिहास के विद्यार्थी 1000 साल के अपराजित संघर्ष और बलिदान को जरूर पढ़ें, जरूर जानें। आज हम यहाँ खड़े हैं और यहाँ खड़े होने के लिए अतीत में संघर्ष की क्या-क्या कीमतें चुकाई हैं, इसका आत्मबोध होना चाहिए। हमारे पूर्वजों ने हजारों साल तक अपनी संस्कृति, भाषा और धर्म के लिए जो लड़ाई लड़ी है वो व्यर्थ नहीं गयी, आज देश फिर से सम्मान के साथ खड़ा हो रहा है।