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‘AMRUT’, ‘स्‍मार्ट शहर मिशन’ तथा ‘सबके लिए घर’ (शहरी) परियोजनाओं के शुभांरभ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए वक्‍तव्‍य

देश-विदेश

नई दिल्ली: आज इस एक छत के नीचे शहरी भारत इकठ्ठा हुआ है। Urban India. एक प्रकार से इस विज्ञान भवन में वे लोग बैठे हैं जिनके जिम्‍मे देश के करीब-करीब 40 प्रतिशत नागरिकों की सुख-सुविधा की जिम्‍मेवारी है। इस देश की 40 प्रतिशत जनसंख्‍या करीब-करीब 40 प्रतिशत जो या तो शहरों में जीवन गुजारा करती है या शहरों पर आधारित अपना जीवन गुजारा करती है। उनको क्‍वालिटी ऑफ लाइफ कैसे मिले, एक सामान्‍य मानव की जो प्राथमिक आवश्‍यकता है उसकी पूर्ति कैसे हो और जब पूरे विश्‍व का ध्‍यान भारत की तरफ है तो हम.. दुनिया जिन ऊंचाइयों पर पहुंची है उसे बराबरी करने की दिशा में और उसे आगे बढ़ने की दिशा में पहल कैसे करें, प्रारम्‍भ कैसे करें और किस दिशा में आगे बढ़ें। इन दोनों लक्ष्‍यों की पूर्ति को ध्‍यान में रखते हुए एक तरफ झुग्‍गी-झोपड़ी में जिन्‍दगी गुजारा करने वाला वो परिवार, एक तरफ रोजी-रोटी की तलाश में शहर की ओर आया हुआ मजबूर नागरिक और दूसरी तरफ बदलता हुआ वैश्विक परिवेश.. दो छोर की स्थिति में से हमें गुजरना है। हम इसलिए निराश हो करके नहीं बैठ सकते कि दुनिया तो बहुत आगे बढ़ चुकी, पता नहीं हम ये हो सकते हैं कि नहीं हो सकते हैं। हम उदास हो करके नहीं बैठ सकते कि ठीक है भई वो अपनी रोजी-रोटी के लिए आए हैं वो अपना गुजारा कर लेंगे। जी नहीं! हमारे देश के गरीबों को हम उनके नसीब पर नहीं छोड़ सकते। हमारा दायित्‍व होता है, हमारी जिम्‍मेवारी होती है और उन जिम्‍मेवारियों को निभाने के लिए अगर योजनापूर्वक अगर हम आगे बढ़ते है तो परिस्थितियां पलटी जा सकती है, परिस्थितियां सुधारी जा सकती है और लक्ष्‍य को प्राप्‍त किया जा सकता है।

इन बातों को ध्‍यान में रखते हुए इस शहरी जीवन में बदलाव लाने के लिए आप सबके साथ दो दिन विस्‍तार से विचार-विमर्श होने वाला है। यहां पर चुने हुए जन-प्रतिनिधि भी हैं और यहां पर शहरी क्षेत्रों का दायित्‍व संभालने वाले चाहे नगर पालिका हों, या महा-नगर पालिका हों उसके सरकारी अधिकारी भी हैं। हम सब मिल करके आगे बढ़ने का संकल्‍प करने के लिए आज इकट्ट्ठे हुए हैं।

हिन्‍दुस्‍तान के इतिहास में 25-26 जून कोई भूल नहीं सकता है। 40 साल पहले सत्‍ता सुख के खातिर देश को आपातकाल के बंधनों में बाध करके जेलखाना बना दिया गया था। देश में सम्‍पूर्ण क्रांति का सपना ले करके चल रहे जय प्रकाश जी नारायण के नेतृत्‍व में लाखों देशभक्‍तों को लोकतंत्र प्रेमियों को जेलों में बंद कर दिया गया था, अखबार पर ताले लग गए थे रेडियो वही बोलता था जो सरकार बोलती थी। ऐसे दिन थे 40 साल पहले! आज 25 जून को और 26 जून को हम मिल करके उन सपनों को संजोना चाहते हैं कि जहां पर हर नागरिक इस लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था के बीच फूले-फले, प्रगति करे, उसको अवसर मिले, उसको सुविधा मिले। उस दिशा में हम काम करने के लिए संकल्‍पबद्ध हो रहे हैं।

आज मुझे खुशी है कि कल ही हमने कैबिनेट में लोकनायक जय प्रकाश नारायण जी के स्‍मृति में एक राष्‍ट्रीय स्‍मारक बनाने का निर्णय किया है। जो लोकतंत्र प्रेमी नागरिकों के लिए हमेशा-हमेशा वो दिशा-दर्शक बनता रहेगा और विकास की सारी योजनाएं, यात्राएं जन-सामान्‍य के सहयोग से, जन-सामान्‍य की भागीदारी से कैसे आगे बढ़ें उस दिशा में हम निरंतर प्रयत्‍नरत रहना चाहते हैं। हमारे देश में करीब 500 शहर हैं। ज्‍यादातर गांव से रोजी-रोटी कमाने के लिए लोग आते ही चले जा रहे हैं। बहुत तेजी से हमारा urbanization हो रहा है। अच्‍छा होता आज से 25-30 साल पहले हमने urbanization को एक opportunity समझा होता, urbanization को एक अवसर माना होता। छोटी जगह में thickly populated लोग एक प्रकार से देश की economic के driving source होते है। उस शक्ति को हमने पहचाना होता और हमारे urban growth engine के रूप में हमारी विकास यात्रा में उसकी भूमिका को हमने जाना होता और इस प्रकार से उसको ताकत दी होती तो हम भी आज दुनिया के उन समृद्ध और प्रगतिशील शहरों की बराबरी कर पाए होते। लेकिन.. देर आए दुरुस्‍त आए। पहले क्‍या नहीं हुआ उसका रोना-धोना गाते रहेंगे तो बात बननी नहीं है। पुराने अनुभव बहुत बुरे हैं, मैं जानता हूं और उसी के आधार पर निराश बैठने की भी आवश्‍यकता नहीं है। अगर स्‍पष्‍ट vision के साथ लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के इरादे के साथ और नागरिक को केंद्र में रखते हुए अगर हम योजनाएं करते हैं, तो मैं नहीं मानता हूं कोई रुकावट आ सकती है|

यहां दो दिन में हमारे सामने कई शहरों के best practices के प्रत्‍यक्ष किए हुए कामों को प्रस्‍तुत किया जाएगा। अगर हैदराबाद taxation system में unprecedented growth कर सकता है, किसी भी प्रकार के नए taxes के बजाए भी collection में इतना improvement कर सकता है तो और शहर भी कर सकते हैं। अगर कर्नाटक solid waste management में, उसमें compost की प्रक्रिया के संबंध में अगर आगे बढ़ सकता है तो और शहर भी बढ़ सकते हैं। ऐसा नहीं है कि कोई ऐसी चीजों की यहां चर्चा यहां होने वाली है कि जो हमने कभी सुना भी नहीं सोचा भी नहीं, नहीं! हम उन्‍हीं चीजों को करना चाहते हैं जो ये देश कर सकता है और किसी ने करके दिखाया है। अब उसको हमने सब मिल करके आगे बढ़ाना है, आप देखिए देश का रुतबा बदल सकता है। अब छत्‍तीसगढ़ जैसा प्रदेश, माओवाद के कारण परेशानियों से जूझ रहा प्रदेश, जंगलों की रक्षा करने वाला एक बहुत बड़ा दायित्‍व वाला प्रदेश, उसने open defecation के खिलाफ एक बहुत बड़ा आंदोलन खड़ा किया है और उनकी कोशिश है कि हम छत्‍तीसगढ़ को open defecation से मुक्‍त कर देगें। एक लक्ष्‍य ले करके अगर नेतृत्‍व चल पढ़ता है तो स्थितियां बदली जा स‍कती है। बहुत कुछ हो रहा है। इस योजना के तहत उन सारे अनुभवों के आधार पर.. यानी कोई हवाई बातें नहीं हैं, उन अनुभवों के आधार पर एक कदम और कैसे आगे बढ़ाया जाए, पहले से कुछ अच्‍छा कैसे किया जाए, एक जगह पर होता है तो सब जगह पर कैसे हो | कुछ लोग करते हैं हम मिल करके सब लोग क्‍यों न करें उस भाव को पैदा करने का प्रयास। भारत जिस तेजी से urbanize हो रहा है, एक प्रकार से यूरोप का कोई छोटा देश देखें तो हिन्‍दुस्‍तान में हर वर्ष एक नया देश जन्‍म लेता है शहरों में, मतलब हमारे सामने कितनी बड़ी चुनौती है! उस चुनौती को पार करने के लिए हमें निश्चित योजनाओं के साथ आगे बढ़ना पड़ेगा। कुछ कानूनी बाधाएं होगी तो उसके रास्‍ते खोजने पड़ेगें, आर्थिक व्‍यवस्‍थाओं की भी व्‍यवस्‍था होगी उसके संबंध में स्‍थानीय इकाई राज्‍य सरकार, केंद्र सरकार सबने मिल करके एक मॉडल खड़ा करना होगा ताकि हम पैसों के कारण अटके नहीं।

आज पीपीपी मॉडल पब्लिक partnership का मॉडल करीब-करीब स्‍वीकृत हो चुका है उसको कैसे हम बल दें। हम ज्‍यादा से ज्‍यादा urban infrastructure के लिए foreign direct investment को कैसे लाएं। हम आर्थिक संसाधनों को विश्‍व में जहां से भी प्राप्‍त कर सकते हैं, कैसे प्राप्‍त करें, लेकिन निर्धारित समय में हम इन स्थितियों को कैसे बदलें।

किसी भी इंसान, गरीब से गरीब इंसान का एक सपना होता है उसका अपना घर हो और एक बार अगर खुद का घर हो जाता है तो फिर वो सपने संजोने लग जाता है। जब मकान मिलता है तो सिर्फ छत नहीं मिलती चार दीवारें नहीं मिलती है जब गरीब को घर मिलता है तो धीरे-धीरे उसके इरादें भी बदलने लग जाते हैं। घर मिलते ही मन करता है कि यार एक-आध दरी ले आयें तो अच्‍छा होगा। फिर मन करता है कि यार दो कुर्सी लाए तो अच्‍छा होगा। फिर करता है कि यार नहीं-नहीं टीवी मिल जाए तो अच्‍छा होगा, फिर लगता है ये सब करना है तो थोड़ी ज्‍यादा मेहनत करें तो अच्छा होगा फिर लगता है फालतू खर्चा करता था अब उसको थोड़ा पैसा बचाऊंगा, अगले महीने ये लाऊंगा। जीवन में बदलाव शुरू हो जाता है। और वही, self-motivation इन कारणों से आता है। हमारी कोशिश यह है सिर्फ मकान देना, यानी एक परिवार को जो कि बेघर है घर वाला बने इतना नहीं, उसको जीवन जीने की हैसियत देना, उसके मन में जीवन जीने की उमंग भरना, उसके जीवन में जीवन को साकार होने का आनंद देखने को मिले और आने वाले पीढि़यों को देने का सपना पूरा हो, ऐसा एक माहौल बनाने का इरादा है। शहरों में करीब-करीब दो करोड़ से ज्‍यादा परिवार, उनके लिए घर बनाने हैं। अब हमारा देश ऐसा है कि अगर नहीं बना तो जवाब मुझसे मांगा जाएगा। कोई उनसे जवाब नहीं मांगेगा कि ये दो करोड़ बेघर रहे क्‍यों। कोई नहीं मांगेगा, है देश का स्‍वभाव है, क्‍या करेंगे। हमें उसी से गुजारा करना है। लेकिन कोई कुछ कह देगा इस डर के कारण हम काम करना छोड़ दें तो देश का भला नहीं होगा। और इसलिए हमारा दायित्‍व बनता है कि हमारे गरीब परिवारों को घर मिले।

आजादी के 75 साल हो रहे वर्ष 2022 में। उन आजादी के दीवानों का नाम लेते हुए हमें रोमांच होता है। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू को याद करते हैं तो लगता है, कैसा बलिदान था! गांधी सरदार उनकी विरासत को देखते हैं तो लगता है कितना कष्‍ट झेला था। उन्‍होंने जो सपने देखें थे उन सपनों में क्‍या ये भी एक सपना नहीं था कि आजाद कि हिन्‍दुस्‍तान में हर परिवार के पास अपना घर हो? मैं मानता हूं आजादी के जब 75 साल मना रहे हैं तब, हमारे भीतर एक आवाज उठनी चाहिए कि मेरे देश में कोई गरीब ऐसा न हो कि जिसको फुटपाथ पर या झुग्‍गी-झोपड़ी पर जिन्दगी गुजारने के लिए मजबूर रहना पड़े ये हम बदलेंगे। यह हमारा दायित्‍व है और एक बार इस मिजाज को लेकर यहां से निकलेंगे तो रास्‍ते आप मिल जाएंगे। आज शहरों का विकास कैसे हो रहा है? आप किसी भी शहर में जाकर पूछिए बहुत कम शहर ऐसे मिलेंगे कि जहां पर पांच साल के बाद शहर कैसा होगा उसका कोई खाका कागज पर मिलेगा। दस साल के बाद कैसा शहर होगा उसका खाका कागज पर नहीं मिलेगा। जो Private property developer हैं, उनको तो पता होता है कि शहर इतना बढ़ेगा, इस दिशा में बढ़ेगा फिर वो वहां जमीन ले लेगा, योजनाएं डाल देगा। मकान तो खड़े कर देगा लेकिन जिंदगी जीने योग्‍य व्‍यवस्‍था पहुंचती नहीं है। न रोड बनता है, न बिजली पहुंचती है, न drainage की व्‍यवस्‍था होती है। लोग आते हैं, पैसे देकर मकान भी लेते हैं। बाकी व्‍यवस्‍था होती नहीं क्यों? क्‍योंकि शहर के नेतृत्‍व ने शहर नहीं बनाया कुछ property dealer ने शहर को बढ़ाया है। ये जो mismatch है उस mismatch को बदलना है। शहर कैसा बढ़ेगा, कब जाएगा कहां, किस रास्‍ते आगे बढ़ेगा, west में बढ़ेगा आगे East में बढ़ेगा, समाज के छोटे से छोटे व्‍यक्ति के लिए भी उसमें क्‍या जगह होगी, ये Plan, जब तक शहर का नेतृत्‍व दीर्घ दृष्टि के साथ नहीं करता है ये स्थिति बनी रहेगी।

हम इस AMRUT योजना के माध्‍यम से ये एक बदलाव चाहते हैं। शहर खुद अपना सोचने लगे, शहर अपनी योजनाएं बनाने लगे, और कहां जाना कैसे जाना है, उसका फैसला शहर करे। जरूरत के आधार पर वो चलता जाए, बढ़ता जाए, और बाद में व्‍यवस्‍थायें विकसित कर रिकॉर्ड के involvement आ जाता है encroachment आ जाता है, Road नहीं होती है ट्रैफिक की समस्या आती है। पानी नहीं बिजली नहीं, सारी समस्‍या हम झेलते रहते हैं, और ये हर शहर के अगल-बगल में आपको देखने को मिलेगा कि किसी ने उसको बना दिया और बाद में उस शहर को गोद लेना पड़ता है और वो बहुत तकलीफ वाला होता है। हमने इसकी योजना क्‍यों नहीं करनी चाहिए।

हमारे देश में शहरों के विकास के लिए एक तरफ हम स्‍वच्‍छ भारत की बात जब लेकर आए, मैं मानता हूं कि सरकार से लोग दो कदम आगे हैं, स्‍वच्‍छ भारत के काम में, कहीं सरकार कम नजर आती हैं, लोग ज्‍यादा नजर आते हैं। मैं विशेष रूप से मीडिया का आभारी हूं। मैं देख रहा हूं, वरना मुझे याद है कि 15 अगस्‍त को जब स्‍वच्‍छ भारत की बात कहकर निकला तो मुझे डर लगता था। ये रोज मेरे बाल नोच लेंगे। यहां कूड़ा है, यहां कचरा है, लेकिन मैं आज उन सबको सलाम करता हूं जिन्‍होंने ऐसा नहीं किया उन्‍होंने नागरिकों को train करने का काम उठाया और सभी मीडिया के लोग कर रहे हैं। अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं, लोगों को समझा रहे हैं कि क्यों, क्‍यों कूड़ा यहां है तुम यहां क्यों नहीं फेंकते हो।

मैं समझता हूं जब इतिहास लिखा जाएगा मीडिया के स्‍वच्‍छ भारत के अभियान का जो नेतृत्‍व जो आज मीडिया कर रहा है, देश में बदलाव लाने का कारण बनेगा। मैं, मैं देख रहा हूं। बदला जा सकता है ये और आज हमारे यहां Solid waste management, waste water treatment.. हमारा विकास ऐसा नहीं हो सकता कि जो शहर और गांव के बीच संघर्ष पैदा करेगा। हमारा विकास ऐसा होना चाहिए कि जो शहर और गांव एक-दूसरे के पूरक होना चाहिए। अगर शहर को पानी चाहिए, गांव वालों को पानी मिले या नहीं मिले, शहर को तो पानी देना ही पड़ेगा और पीने के पानी की एक बात ऐसी होती है, जहां मानवता का विषय होता है तो कोई बोल भी नहीं पाता है, क्‍या इसके उपाय नहीं है, क्‍यों न हम waste water treatment करें और वो पानी गांवों को खेतों में वापिस करें तो किसान भी परेशान नहीं होगा गांव भी परेशान नहीं होगा और शहर को पीने का पानी चाहिए उसकी उपलब्धता की भी कभी तकलीफ नहीं होगी। हम ये चिंता क्‍यों न करें, हम Solid waste management करके Compost बनाने के पीछे हैं। organic fertilizer तैयार करने की दिशा में क्‍यों काम न करें। वही fertilizer हम नजदीक के गांवों को दें। हमने देखा है कि बड़े शहर, बड़े शहर के आस-पास के 30-40 किलोमीटर के जो गांव होते हैं, वो ज्‍यादातर सब्‍जी की खेती करते हैं, ज्‍यादातर। क्‍योंकि उनको तुरंत सुबह-सुबह मार्केट मिल जाता है, शहर में उनका daily आधार पर चलता है बाजार। अगर हम organic fertilizer, compost fertilizer जो शहरों के कूड़े-कचरे से हम बनाते हैं, वो अगर हम गांव में दे दें, तो जो सब्जी मिलेगी वो organic सब्‍जी मिलेगी। अगर हमारा ये input cost कम होगा तो सब्‍जी भी सस्‍ती आएगी। सब्‍जी सस्‍ती आएगी तो गरीब आदमी भी 100 ग्राम सब्‍जी खाता है, तो दो सौ ग्राम खाएगा और सब्‍जी ज्‍यादा खाएगा तो Nutrition के problem solve होंगे Health के problem solve होंगे। ultimately बजट के Burden कम होते जाएंगे सुविधाएं बढ़ती जाएंगी। लेकिन हम अगर ये सोच करके काम करें तो ये काम बढ़ सकता है और इसलिए हमारे शहरों का विकास का Model है और इसलिए जो AMRUT योजना है इसमें इन बातों पर बल दिया गया है कि हम इन बातों को कैसे करें plan way में आगे बढ़े, गरीबों को घर मिले, जन-सामान्‍य को जीवन जीने की सुविधा मिले।

जो स्‍मार्ट सिटी का concept है उन स्‍मार्ट सिटी जो बनेगी ये पहली बार स्‍मार्ट सिटी योजना ऐसी है कि जिसमें शहरों का निर्णय भारत सरकार नहीं करेगी। शहरों को स्‍मार्ट बनाने का राज्‍य सरकार नहीं करेगी। शहरों को स्‍मार्ट बनाने का निर्णय वो शहर का नेतृत्‍व, वो शहर के नगारिक, वे शहर के municipality के लोग तय करेंगे। थोपा नहीं जाएगा, आवाज नीचे से उठनी चाहिए और इसलिए पहली बार हिन्‍दुस्‍तान में challenge route के आधार पर स्‍मार्ट सिटी बनाने का निर्णय किया है। दुनिया के कई देशों ने ये प्रयोग किया है। कुछ पैरामीटर तय किये गए हैं और जो शहर इस पैरामीटर को पूर्ति करेगा वो entry पाएगा इस स्पर्धा में। फिर उसकी दूसरी exam देनी पड़ेगी फिर उसको पार करेगा तो select होगा, जब select होगा तो फिर भारत सरकार, राज्‍य सरकार मिल करके उस शहर की ताकत को जोड़ करके उसको स्‍मार्ट सिटी बनाने की दिशा में आगे बढ़ेगी। अगर ये योजना ऊपर से आएगी तो क्‍या होगा? ये काम क्‍यों नहीं हुआ है, वो दिल्‍ली वालों ने नहीं किया है, ये काम क्‍यों नहीं किया वो हमारे राज्‍य सरकार वाले नहीं करते, नहीं ! ये नीचे से होना है और कहीं पर कोई कठिनाई न आए उस दिशा में आगे बढ़ना है।

मैं समझता हूं यहां पर आये हुए सभी महानुभवों के लिए ये चुनौती है उस चुनौती को स्‍वीकार कीजिए और जो पैरामीटर तय हो उस स्पर्धा में आइये जीत करके आगे निकलिए और एक बार जब.. जीवन में स्‍पर्धा हर जगह पर होती है। आप मेयर भी बनते हैं तो स्‍पर्धा से ही तो बनते हैं, किसी ने ऊपर से तो नहीं बैठा दिया आपको। आप कहीं नौकरी लेने जाते हैं तो वहां भी तो competition होती हैं आप competition को पार करते हैं तो select होते हैं तो हमारे शहरी विकास में भी competition आवश्‍यक है। उस competition को ला करके स्‍मार्ट सिटी बनाने का प्रयास है। कभी-कभी कुछ लोग माथापच्‍ची इसी में खपा रहे हैं कि स्‍मार्ट सिटी चीज है क्‍या? बहुत.. बहुत ज्‍यादा दिमाग खपाने की जरूरत नहीं है। हम.. मान लीजिए किसी रेलवे स्‍टेशन पे गये, और जो पूछताछ वाला व्‍यक्ति वहां बैठा है उसको दो सवाल पूछने हैं और उसने हमको चार-पांच सवालों के जवाब दे दिए जो कि हम पहले उसको पूछने के लिए सोचकर गए थे लेकिन वो समझ जाएगा कि उनको ये पूछना है, वो जवाब दे तो हम कहें यार ये बड़ा स्‍मार्ट आदमी है। मेरी आवश्‍यकता से भी वो एक कदम आगे है, मेरे हिसाब से ही यही स्‍मार्ट सिटी है कि जो नागरिकों की आवश्‍यकता है उससे दो कदम हम आगे चललें, उसकी जो आवश्‍यकता है, आप मांगोगे हाजिर है, आप चाहोगे, हम सोच रहे हैं, आपका सुझाव है हां हमारी योजना बन रही है- दो कदम आगे है। आप देखिए देखते-देखते smart city बन जाएगी। technology है environment friendly development है। हमने प्रकृति के साथ जीना है energy saving यह हमारी स्‍वाभाविक व्‍यवस्‍था है walk to work ये concept लाना पड़ेगा वरना एक जगह पर रहता है और रोज डेढ़ घंटा वो travelling करता है फिर नौकरी पर जाता है तो उसकी maximum energy travelling में जाती है बची-खुची का में लगती है, तो वो काम कैसा होगा। अगर उसकी energy saving होती है। walk to work का concept develop धीरे-धीरे हमारे यहां होता है और एक composite व्‍यवस्‍था विकसित होती है कि जहां सबकुछ available हो साइकिल पर भी जाए तो अपना काम हो जाए। हमने इस प्रकार के मॉडल को develop करना ही होगा और जब ये develop करेंगे तो अपने आप शहर के भीतर कई छोटे-छोटे शहर बन जाते हैं। वो एक प्रकार से पूर्ण शहर बन जाते है। हम उस विचार को ले करके कैसे आगे बढ़ें तो smart city के concept को हमने आगे बढ़ाना है। चाहे housing for all की बात हो, चाहे हमारे 500 नगरों को प्राणवान बनाना है, अमृतमय बनाना है चाहे दुनिया की बराबरी करने वाले हमारे smart city की दिशा में कदम उठाना है। एक composite योजना के साथ urban India का हमारा विज़न क्‍या है, उसको ले करके हम आएं और ये योजना सरकार में बैठ करके कागज पर बनाई हुई योजनाएं नहीं हैं। शायद हिंदुस्‍तान में इतनी बड़ी मात्रा में consultation पहले कभी नहीं हुआ होगा, जितना consultation इस योजना को चरितार्थ करने के लिए लगाया गया है। सभी प्रकार के stake holders को इसमें जोड़ा गया है। उनसे पूछा गया, उनसे जानकारी ली गई है। उनकी समस्‍याओं को समझा गया है और उसको चरितार्थ करने का प्रयास किया है। financial world को भी, उनको भी विश्‍वास में लिया, बताइए कैसे होगा। real estate developers है उनको भी पूछा गया कि बताइए, भई कैसे आगे बढ़ सकते है जो कानूनविद हैं.. कि जिसके कारण कानूनी समस्‍याएं न आएं, उनसे पूछा गया। दुनिया में जो अच्‍छा हुआ है जिन्‍होंने अच्‍छा किया है उनको भी साथ जोड़ा गया है। इस क्षेत्र में जिन-जिन की पहचान है दुनिया में उन सबकी सलाह ली गई है और इन सबसे विचार-विमर्श करके black and white में चीजों को प्रस्‍तुत करने का प्रयास किया है। एक बार ये चीजें तैयार हुई हैं, अब आगे बढ़ने में देर नहीं।

ये सरकार consumer की सुरक्षा इस पर सजग है। Parliament में एक बिल already हमारा गया हुआ है, इस अवसर पर चर्चा होगी हमारी। वरना हमारे देश में चाहे अनचाहे ये जो builder lobby है उनकी छवि काफी गिरी हुई है और गरीब आदमी अपनी जिंदगी का पूरा पैसा उसमें लगाता है यानी उसके जीवन की वो एक ही घटना होती है और फिर जब वो लुट जाता है तो उसका तो सब लुट जाता है। ये छोटे-छोटे गरीब consumer को protect करने के लिए संसद में कानून लाया गया है ये आने वाले सत्र में पारित होगा तो हम विकास चाहते हैं, घर को जोड़ना भी चाहते है लेकिन साथ-साथ हम सामान्‍य नागरिकों की आवश्‍यकताओं की पूर्ति को ध्यान देना चाहते हैं।

मुझे विश्‍वास है कि आज, 25 जून, ये शहरी भारत, विज्ञान भवन में एकत्र हो करके आधुनिक भारत के निर्माण के लिए वैज्ञानिक तौर-तरीके से आगे बढ़ने का संकल्‍प ले करके आगे बढ़ेगा। नगर-पालिका, महानगर पालिका का जो नेतृत्‍व आया है मैं उनसे गुजारिश करना चाहता हूं यहां सब राजनीतिक दल के लोग होंगे, यहां सभी राजनीतिक पृष्‍ठभूमि के लोग होंगे लेकिन एक बात निश्चित है हम जब इतिहास पढ़ते हैं तो उन बातों को गौर करते हैं कि फलाना राजा था 5 साल ही उसको कार्यकाल मिला था लेकिन उसने अपने राज्‍यकाल में ये दो चीजें अच्‍छी करके गया था | 200 साल के बाद भी लोग उसको याद करते हैं 100 साल के बाद भी अच्‍छा उनके कार्यकाल में ये काम हुआ था, उनके कार्यकाल में उनके कार्यकाल में ये तालाब बना और शहर की पानी की समस्‍या हल हुई थी। उनके कार्यकाल में डेढ़ सौ साल पहले स्‍कूल बना था, स्‍कूल में से इतने बड़े-बड़े लोग तैयार हुए। जिसको शासन का अवसर मिलता है उनकी पहचान पचासों साल के बाद भी.. कौन सा अच्‍छा काम करके गये उससे तो नापी जाती हैं| मैं उन नगर-पालिकाओं के अध्‍यक्षों से कहना चाहता हूं। मैं उन महा नगर-पालिकाओं के अध्‍यक्ष से कहना चाहता हूं कल्‍पना कीजिए कि आप 80 साल के उम्र के होंगे आपका पोता उंगली ले पकड़ कर आपके साथ चलता हो तो आपके दिल में इच्‍छा क्‍या होगी। जरा कल्‍पना कीजिए मैं दावे से कहता हूं कि आपके दिल में इच्‍छा ये होगी कि जो छोटा पोता जो ज्‍यादा कुछ समझता नहीं उंगली पकड़कर वहां ले जाएंगे और कहेंगे देखिए ये भवन हैं न मैं जब अध्‍यक्ष था न तो मैंने बनाया था। ये जो गांव में तालाब है न, मैं जब अध्‍यक्ष था न मैंने बनाया था। हर किसी की ख्‍वाहिश होनी चाहिए कि अपने कार्यकाल में अपने शहर को कुछ अच्‍छा नजराना दे करके जाए। आपकी जीवन की सफलता उसमें है। आपकी जीवन की सफलता उस बात में नहीं है कि आपने कितने लोगों को पराजित किया कितनी बार चुनाव जीतकर आये। कितनी बार गठजोड़ करके सत्‍ता को हासिल किया। ये सफलता का मानदंड नहीं होता है। सफलता का मानदंड ये होता है कि जिस जनता जनता जनार्दन की आपको अवसर दिया है उनके लिए क्‍या करके गये, अगर ये मन में संकल्‍प ले करके जाते हैं ये इरादा ले करके जाते हैं कि मुझे पांच साल का कार्यकाल मिला है मुझे तीन साल का कार्यकाल मिला है जनता जनार्दन ने मुझे अवसर दिया है। मैं मेरे नागरिकों के लिए ये करके जाऊंगा और उसका जो संतोष मिलेगा ना अद्भुत संतोष होगा। अद्भुत संतोष होगा। जीवन भर जीने के लिए वो आपके लिए एक बहुत बड़ा अवसर बना हुआ होता है। अपने पोते के पोते भी अगर आपके आंखों के सामने हैं तो आपका मन करेगा कि आप अपना achievement उसको बता कर जाएं, ये आपका सपना रहता है।

आपके दिल में भी वो सपने जगें, आप भी कुछ करने के लिए कृतसंकल्‍प हों। अर्थात प्रयत्‍न करके शहर के जीवन में बदलाव लाएं। वहां के सामान्‍य से सामान्‍य नागरिक के जीवन में बदलाव लाएं इन शुभकामनाओं के साथ मैं आज के इस अवसर पर विभाग के सभी लोगों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं ताकि देश के शहरी जीवन में बहुत ही अल्‍प समय में बदलाव आये और 2022 में जब देश आजादी के 75 साल मनाता हो तब हमारे शहरों में भी हर परिवार में स्‍वतंत्रता की आनंद की अनुभूति दें उसको हम सफलतापूर्वक पार करें इसी शुभकामनाओं के साथ बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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