नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम.वेंकैया नायडू ने युवा पीढ़ी के समक्ष भारत का ‘वास्तविक इतिहास’ प्रस्तुत करने का आह्वान किया है, क्योंकि उपनिवेशी शासकों द्वारा लिखे गए इतिहास में अनेक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।
पुणे, महाराष्ट्र में आज विख्यात पुरातत्वविद डॉ. जी.बी.देगलुरकर को पुण्यभूषण पुरस्कार से सम्मानित करते हुए श्री नायडू ने कहा कि दुर्भाग्यवश हमारी इतिहास की पुस्तकों में मां भारती के अनेक गौरवशाली सपूतों और पुत्रियों द्वारा दिए गए योगदान का उल्लेख नहीं किया गया है। इस पुरस्कार की स्थापना पुण्यभूषण फाउंडेशन द्वारा की गई है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय महत्व के 3,600 से ज्यादा राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सुरक्षा और संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इन संरचनाओं में सन्निहित देश के गौरवशाली इतिहास की रक्षा और संरक्षण करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा ‘वे सभी भारत के अतीत के निशानियां और हमारी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के प्रतीक हैं।’
श्री नायडू ने कहा, ‘पुरातात्विक स्थल वर्तमान तो अतीत से जोड़ने के पुल के रूप में काम करते हैं और मानवता के समक्ष अतीत के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं। पुरातत्व के पास इतिहास को ‘पुनर्निर्मित करने’ और उसमें ‘पुन: सुधार’ करने की अपार क्षमता मौजूद है।’
पुरातत्व के महत्व की चर्चा करते हुए श्री नायडू ने कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक का यह दायित्व है कि वह स्मारकों की रक्षा और संरक्षण करे तथा उन्हें आने वाली पीढि़यों के हवाले करे।
उपराष्ट्रपति ने सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की कंपनियों साथ ही साथ व्यक्तियों से पुरातात्विक स्थलों को गोद लेने और हमारी महान धरोहर को संरक्षित करने के कार्य में भाग लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों के संरक्षण में सरकार के प्रयासों को सशक्त बनाने के लिए जनता की भागीदारी महत्वपूर्ण है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब समय आ गया है कि अतीत को बेहतर ढंग से समझने के लिए इतिहास, पुरातत्व, मानव शास्त्र, मूर्ति विद्या, पुरालेख और समाज शास्त्र जैसे विभिन्न अकादमिक विषयों को एकत्र कर साहित्य , इतिहास और पुरातात्विक आंकड़ों में मजबूत सह संबंध स्थापित किया जाए। श्री नायडू ने कहा, ‘मुझे यकीन है कि इस दृष्टिकोण से हमें भारत के महाकाव्यों के मूल ग्रंथों और पुरातात्विक अध्ययन में मूलभूत योगदान देने में मदद मिलेगी। ’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि पुरातत्व से हमें केवल ‘अन्य’ सभ्यताओं की खोज करने में ही मदद नहीं मिलती बल्कि खुद को भी नये सिरे से तलाशने में मदद मिलती है। उन्होंने छात्रों के बीच स्मारकों और उनके महत्व के बारे में व्यापक जागरुकता उत्पन्न करने की आवश्यकता पर बल दिया। श्री नायडू ने स्कूलों और कॉलेजों से छात्रों का नजदीकी पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्मारकों का दौरा आयोजित करने और उन्हें उन स्मारकों से संबंधित गतिविधियों और उनके लिए चलाए जाने वाले स्वच्छता अभियानों में भाग लेने के लिए प्रेरित करने का अनुरोध किया।
श्री नायडू ने आगा खां ट्रस्ट जैसे स्वयंसेवी संगठनों की सराहना की, जिन्होंनें कुछ शहरों में स्मारकों के जीर्णोद्धार का दायित्व लिया और श्रीरंगम में श्रीरंगानाथ स्वामी मंदिर के संरक्षण और जीर्णोद्धार का कार्य दानदाताओं की सहायता से सरकार द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि इसी तरह के और भी प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
श्री नायडू ने इस अवसर पर ‘वीर माता’ श्रीमती लता नायर, स्वाधीनता सेनानी, मोहम्मद चांदभाई शेख, युद्ध में घायल हुए जवानों, श्री नायक फूल सिंह और श्री गोविंद बिरादर का सम्मान करने के लिए आयोजकों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, ‘मैं इस अवसर पर राष्ट्रवाद के इन महान सेनानियों तथा अनगिनत गुमनाम नायकों को सैल्यूट करता हूं, जिन्होंने मां भारती की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहूति दी।’
इस अवसर पर संचेती अस्पताल के संस्थापक डॉ. के.एच. संचेती, सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के संस्थापक, डॉ. एस.बी. मजूमदार, प्रख्यात शास्त्रीय गायक, डॉ. प्रभा अत्रे, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान, श्री चंद्रकांत बोर्डे, पुण्यभूषण फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. सतीश देसाई और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।