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आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (एएमसीडीआरआर) के उद्घाटन समारोह में केन्‍द्रीय गृह मंत्री का भाषण

देश-विदेश

नई दिल्ली: केन्‍द्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह द्वारा आज यहां आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (एएमसीडीआरआर) -2016 के उदघाटन समारोह में दिए गए भाषण का मूल पाठ निम्‍नलिखित है-

‘माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी, मंगोलिया गणराज्‍य के उप प्रधानमंत्री माननीय श्री खुईल्‍सुख, नेपाल के उप प्रधानमंत्री माननीय श्री बिलेन्‍द्र निधिजी, मंच पर उपस्थित सम्‍मानित सहयोगी, एशिया और एशिया-प्रशांत देशों के प्रतिष्ठित प्रतिनिधि, संयुक्‍त राष्‍ट्र संगठनों, सिविल सोसाएटी संगठनों के प्रतिनिधि, भारत की स्‍थानीय निकायों के प्रतिनिधि, देवियों और सज्‍जनों आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर सातवें एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के अवसर पर आप लोगों का भारत में स्‍वागत करते हुए मुझे अति हर्ष हो रहा है। मैं मंत्रियों, स्‍थानीय और सरकारों के सम्‍मानित प्रतिनिधियों का आभार व्‍यक्‍त करता हूं, जो अपनी व्‍यस्‍तता के बावजूद हमारे न्‍यौते पर इस कार्यक्रम में शामिल हुए हैं। आज एकत्रित सभा से सुदृढ़ और सुरक्षित विश्‍व के लिए प्रतिबद्धता नजर आ रही है। मुझे उम्‍मीद है कि मेरे मंत्रालय द्वारा यहां नई दिल्‍ली में आपके ठहरने के लिए किये गये आरामदायक प्रबंध आपको पसंद आए होंगे। मुझे आशा है कि आप सभी यहां खुशी से रहेंगे और परिणाम तथा सीखने की दृष्टि से आपकी यात्रा लाभदायक होगी।

दोनों प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही हैं। आपदाओं से विशेषरूप से एशिया क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित है। विश्‍व की दस आपदाओंमें से आठ एशिया में हुई हैं, जिसका विश्‍व की दो तिहाई आाबदी पर बुरा प्रभाव पड़ा है। हमें विश्‍वास है कि आपदा से निपटना सरकारों, व्‍यावसायिक समुदाय, गैर सरकारी क्षेत्र और व्‍यक्तियों सहित समाज के सभी वर्गों की जिम्‍मेदारी है। आपदा की स्थिति से निपटने में सुधार के लिए अगर हम सभी मिलकर साझी भावना से कार्य करें, तो हमारा वह प्रयास किसी एक क्षेत्र की व्‍यक्तिगत कोशिश से अधिक प्रभावी होगा। इसलिए हमारे क्षेत्र में सेंडाइ फ्रेमवर्क कायन्वित करने में पहले महत्‍वपूर्ण कदम के तौर पर यह सही समय पर महत्‍वपूर्ण सम्‍मेलन है।

आपदाओं से हमारी अर्थव्‍यवस्‍था बहुत ज्‍यादा प्रभावित होती है, इससे हमारे विकास संबंधी प्रयासों को करारा झटका लगता है और इससे भी गंभीर बात यह है कि उन परिवारों के दुखों की कोई कल्‍पना नहीं की जा सकती, जिनके प्रियजन आपदाओं के शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा शोक-संतप्‍त परिवार को अपने घर एवं आजीविका के भारी नुकसान का भी सामना करना पड़ता है। मेरे विचार में आपदाओं की संभावनाओं और फिर इसके बाद इस मानवीय त्रासदी के असर को न्‍यूनतम करना राज्‍य एवं इसके नागरिकों के बीच होने वाली संविदा का एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। ध्‍यान देने योग्‍य बात यह है कि इस सम्‍मेलन के एजेंडे में विभिन्‍न विषयों को कवर किया गया है, जिनमें जोखिम प्रबंधन, विश्व धरोहरों को आगे भी अक्षुण्‍ण बनाए रखना और आपदा जोखिम न्‍यूनीकरण में निजी क्षेत्र की सहभागिता भी शामिल हैं।

मैं एक ऐसे राज्‍य से वास्‍ता रखता हूं और उस राज्‍य का मुख्‍यमंत्री रह चुका हूं जहां भूकंप एवं बाढ़ दोनों ही आने का अंदेशा सदा बना रहता है। मैं इन आपदाओं से होने वाली तबाही का गवाह बन चुका हूं और मैं इस बात से अवगत हूं कि इस तरह के बेरोकटोक होने वाले निर्माण कार्यों से वह जोखिम और भी ज्‍यादा बढ़ जाता है, जो जलवायु परिवर्तन जैसे कारणों से उत्‍पन्‍न होता है। अत: यह अत्‍यंत संतोष की बात है कि हमारा फोकस आपदा प्रबंधन के बजाय अब आपदा जोखिम को कम करने पर हो रहा है। अब यह बात अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर स्‍वीकार की जा चुकी है कि आपदा जोखिम कम करने के प्रयासों को अवश्‍य ही सुनियोजित तरीके से संबंधित नीतियों, योजनाओं एवं कार्यक्रमों में एकीकृत किया जाना चाहिए जिससे कि सतत विकास के साथ-साथ गरीबी उन्‍मूलन भी संभव हो सके।

हम सभी यह बात नि:संदेह जानते हैं कि आपदा जोखिम में कोई भी राजनीतिक सीमा नहीं होती है। इनमें वे जोखिम भी शामिल हैं जो मानवीय कारणों से उत्‍पन्‍न होते हैं: किसी एक क्षेत्र में आने वाली आपदाओं का असर दूसरे क्षेत्रों पर भी पड़ सकता है। अत: यह संतोषजनक बात है कि आज हम यह स्‍वीकार करते हैं कि आपदा जोखिम न्‍यूनीकरण और आपदा राहत के लिए द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग की सख्‍त जरूरत है, जिसमें साझेदारियां भी शामिल हैं। क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग की इसी भावना को ध्‍यान में रखते हुए ही भारत ने आपदा में कमी और इसके प्रबंधन के प्रयासों में अन्‍य देशों विशेषकर अपने पड़ोसी देशों की भरपूर सहायता की है और आगे भी हमारा देश इसके लिए सदा तैयार रहेगा। हम समस्‍त जरूरतमंदों को प्रौद्योगिकी, राहत विशेषज्ञता एवं क्षमता निर्माण के मामले में अपनी ओर से सर्वोत्‍तम चीजें मुहैया कराते हैं। हम इस मामले में क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं।

भारत में हमारे पूर्वजों ने हमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा दी है, जिसका मतलब यही है कि पूरी दुनिया एक परिवार है, जिसमें समस्‍त मनुष्य, पौधें, पशु, पक्षी और प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं। आपसी जुड़ाव का यह प्राचीन बोध आज और भी ज्‍यादा प्रासंगिक एवं आवश्‍यक हो गया है।

भारत में आपदाओं का सामना राष्‍ट्रीय, राज्‍य एवं जिला यानी सभी स्‍तरों पर किया जाता है। सभी आपदाओं के प्रबंधन के लिए समुचित योजनाओं, कानूनी ढांचे एवं वित्‍तीय व्‍यवस्‍थाओं के साथ व्‍यापक एवं समग्र नीतियां बनाना इनके प्रबंधन से जुड़ी किसी भी रणनीति का आवश्‍यक तत्‍व है। इसमें राज्‍यों की भूमिका बड़ी महत्‍वपूर्ण होती है, क्‍योंकि उन्‍हें ही सबसे पहले भीषण नुकसान होता है। हम नि:संदेह राज्‍यों द्वारा इस दिशा में किए जाने वाले प्रयासों को अपनी ओर से भरपूर सहायता देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

भारत ने आपदा जोखिम के साथ-साथ जान-माल, आजीविका एवं स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं और विभिन्‍न लोगों, कारोबारियों, समुदायों एवं देशों की आर्थिक, भौतिक, सामाजिक, सांस्‍कृतिक एवं पर्यावरणीय परिसम्‍पतियों में होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। जून, 2016 के प्रथम दिन प्रधानमंत्री ने एशिया की प्रथम राष्‍ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना पेश की थी। इस योजना में आपदा जोखिम की व्‍यवस्‍था को और ज्‍यादा मजबूत करने की रूपरेखा का उल्‍लेख किया गया है। इस योजना में विकास योजनाओं को आपदा जोखिम न्‍यूनीकरण में मुख्‍य रूप से शामिल करते हुए आपदा जोखिम में कमी करने संबंधी रूपरेखा का भी जिक्र किया गया है।

एएमसीडीआरआर एकजुट होने और सेंडाई रूपरेखा के क्रियान्‍वयन की जरूरत का अहसास कराने के लिहाज से एक अनूठा अवसर है। हमने अपनी स्‍थानीय एवं राज्‍य सरकारों के अनेक अधिकारियों को आमंत्रित किया है, जो आपसे बहुत कुछ साझा करने के साथ-साथ आपसे बहुत कुछ सीखेंगे। एएमसीडीआरआर के आयोजन से पहले हमारे अनेक शैक्षणिक एवं प्रशिक्षण संस्‍थानों ने पूर्वावलोकन कार्यक्रम आयोजित किए थे, ताकि आपदा से जुड़े मुद्दों पर सहभागिता बढ़ सके और समाज के सभी तबकों की क्षमताओं को एकजुट किया जा सके।

समापन से पहले हम ‘सेंडाई रूपरेखा के क्रियान्‍वयन से जुड़ी एशियाई क्षेत्रीय योजना’, इसके लक्ष्‍यों एवं प्राथमिकताओं को अपना भरपूर समर्थन देने का संकल्‍प लेते हैं। हम आपदाओं से बचाव के लिहाज से एक ज्‍यादा सुरक्षित और सक्षम एशिया एवं विश्‍व के निर्माण के लिए सेंडाई रूपरेखा के लक्ष्‍यों को पाने हेतु क्षेत्र के देशों के साथ मिल-जुलकर काम करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त करते हैं।’

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