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सभी जूट उत्‍पादक राज्यों की सरकारों से जूट के बीज, उर्वरक और अन्य सहायक कृषि उपकरणों की आवाजाही, बिक्री और आपूर्ति की अनुमति देने को कहा

देश-विदेश

नई दिल्ली: कपड़ा मंत्रालय ने लॉकडाउन के दौरान जूट मिलों के बंद होने के कारण खाद्यान्नों की पैकेजिंग के संकट को हल करने और गेहूं उत्‍पादक किसानों की उपज की रक्षा करने के लिए उन्‍हें वैकल्पिक पैकेजिंग बैग प्रदान करने के लिए एचडीपीई/ पीपी बैग की अधिकतम स्‍वीकृति योग्‍य सीमा में ढील देते हुए 26 मार्च 2020 की 1.80 लाख गांठों से 6 अप्रैल 2020 को 0.82 गांठ और बढ़ाकर उसे 2.62 लाख कर दिया है।

यह कदम मुख्य रूप से गेहूं किसानों के हितों की रक्षा के लिए उठाया गया है क्योंकि अप्रैल के मध्य में अनाज पैकिंग के लिए तैयार होने की संभावना है। हालाँकि, सरकार ने कुछ नियमों के साथ यह ढील देने के बारे में विचार किया है कि लॉक डाउन अवधि समाप्त होने के बाद जब जूट मिलों में जूट के थैलों का उत्पादन शुरू हो जाएगा, तो खाद्यान्न की पैकेजिंग के लिए जूट के थैलों को प्राथमिकता दी जाएगी। कपड़ा मंत्रालय ने लॉकडाउन अवधि के दौरान जूट किसानों की मदद करने के लिए सभी जूट उत्‍पादक राज्य सरकारों को पत्र लिखकर जूट के बीज, उर्वरक और अन्य सहायक कृषि उपकरणों की आवाजाही, बिक्री और आपूर्ति की अनुमति देने को कहा है। सरकार जूट पैकेजिंग सामग्री कानून (जेपीएम), 1987 के प्रावधानों के माध्यम से जूट किसानों और श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और यह जूट बैग में खाद्यान्न की पैकेजिंग का लगभग 100 प्रतिशत सुरक्षित अधिकार प्रदान करता है।

कोविड-19 से संबंधित लॉकडाउन ने जूट मिलों में काम प्रभावित किया है जिससे जूट बैग का उत्पादन बाधित हुआ है। चूंकि जूट मिलर्स राज्य खरीद एजेंसियों (एसपीए) और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की आवश्यकताओं को पूरा करने की स्थिति में नहीं हैं, जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में लगे हुए हैं, इसलिए, सरकार ने मजबूर होकर हस्‍तक्षेप किया है और वैकल्पिक उपाय करके समस्‍या के निवारण में लगी हुई है।

भारत सरकार किसानों और उनकी उपज के बारे में गंभीर रूप से चिंतित है। रबी फसल की कटाई होने वाली है। पैकेजिंग बैग की भारी मात्रा की आवश्यकता होगी। खाद्यान्नों को मुख्य रूप से जेपीएम कानून के तहत जूट के बोरों में भरा जाता है। कोविड​​-19 लॉकडाउन के कारण, जूट मिलें जूट बैग का उत्पादन करने में असमर्थ हैं, इसलिए गेहूं किसानों को परेशानी से बचाने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था अपरिहार्य है।

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