उत्तराखण्ड: पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड में पहले से ज्यादा सुधरे बुनियादी ढांचे के विकास की गति अगर इसी तरह बनी रही तो अगले पांच साल में इस प्रदेश के खाद्य प्रसंस्करण, पर्यटन, प्राकृतिक औषधि तथा लघु एवं मध्यम उद्योग क्षेत्रों में रोजगार के पांच लाख नये अवसर उत्पन्न होंगे।
देश के शीर्ष उद्योग मण्डल ‘एसोचैम’ द्वारा राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के लिये अपने घोषणापत्र में शामिल करने के उद्देश्य से तैयार किये गये एजेण्डा में यह बात कही गयी है। यह एजेण्डा उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव मैदान में उतरने जा रहे सभी राजनीतिक दलों को सौंपा गया है।
प्रदेश के उद्योग क्षेत्र पर राज्य की श्रम शक्ति की निर्भरता के स्तर से पता लगता है कि रोजगार देने की इस क्षेत्र की क्षमता में वर्ष 2001 के मुकाबले उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जनगणना 2011 के अनुसार, प्रदेश की 3 प्रतिशत श्रमशक्ति अपने रोजगार के लिये उद्योग क्षेत्र पर निर्भर है, जबकि वर्ष 2001 में यह मात्र 2.3 प्रतिशत थी।
हाल के वर्षाें में उत्तराखण्ड में औद्योगिक क्षेत्र के प्रदर्शन में काफी सुधार हुआ है, और इस क्षेत्र में इस राज्य ने अन्य प्रदेशों के मुकाबले सबसे बेहतर प्रदर्शन किया। यहां तक कि उसने राष्ट्रीय औसत वृद्धि दर को भी पीछे छोड़ दिया है।
एसोचैम के एजेण्डा के अनुसार उत्तराखण्ड ने सकल राज्य घरेलू उत्पाद के मामले में वर्ष 2004-05 से 2014-15 के बीच 16.5 प्रतिशत (बेस प्राइस 2004-05) के हिसाब से प्रगति की। सभी राजनीतिक पार्टियों को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कच्चे माल के हिसाब से लघु एवं मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये।
एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव श्री डी.एस. रावत ने प्रदेश के विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरने जा रही राजनीतिक पार्टियों को अपने चुनाव घोषणापत्र में शामिल करने के सुझावों का दस्तावेज जारी करते हुए कहा कि अगर हम 2011-12 के नये बेस पर जीवीए (सकल मूल्य वर्द्धन) को देखें तो उत्तराखण्ड के औद्योगिक क्षेत्र की साल दर साल वृद्धि दर हमें बताती है कि राज्य में औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर पूरे देश की औसत विकास दर से बेहतर है। इस पर्वतीय प्रदेश ने वर्ष 2011-12 से 2015-16 के बीच 5.2 प्रतिशत की विकास दर हासिल की, वहीं, इसी अवधि में पूरे देश ने 4.4 प्रतिशत की औसत दर प्राप्त की।
उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन अगर सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में सेवा क्षेत्र के योगदान के राष्ट्रीय औसत से तुलना करें तो उत्तराखण्ड देश के उन कुछ राज्यों में शामिल है जहां के सेवा क्षेत्र का योगदान अपेक्षाकृत कम है। वर्ष 2014-15 में प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का योगदान कुल जीएसडीपी के 51 प्रतिशत के बराबर है, जोकि साल 2004-05 में 49.5 प्रतिशत था।
उत्तराखण्ड ने वर्ष 2004-05 से 2014-15 के बीच सेवा क्षेत्र में 12.3 प्रतिशत की साल दर साल वृद्धि दर प्राप्त की, जो देश के प्रमुख राज्यों में सबसे ज्यादा है।
अगर हम 2011-12 के नये बेस पर जीवीए को देखें तो प्रदेश के सेवा क्षेत्र की साल दर साल विकास दर हमें बताती है कि राज्य के सेवा क्षेत्र की विकास की गति राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। उत्तराखण्ड के सेवा क्षेत्र ने वर्ष 2011-12 से 2015-16 के बीच 7.5 प्रतिशत की वृद्धि दर प्राप्त की, वहीं इसी अवधि में पूरे भारत में यह औसत 7 प्रतिशत था।
उत्तराखण्ड के सेवा क्षेत्र ने वर्ष 2007-08 में 20.4 प्रतिशत की सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ दर प्राप्त की थी जो 2012-13 में फिसलकर 5.8 प्रतिशत तक आ गिरी। हालांकि उसके बाद इसमें सुधार हुआ। पिछले चार वर्षों के दौरान इस क्षेत्र द्वारा किये गये प्रदर्शन पर नजर डालें तो उसने वर्ष 2012-13 के 5.8 प्रतिशत के सबसे निचले स्तर से सुधार करते हुए 2013-14 में 7.6 प्रतिशत
और 2014-15 में 7.9 प्रतिशत की दर प्राप्त की। वर्ष 2015-16 में सेवा क्षेत्र में सकल मूल्यवर्द्धन 11.8 प्रतिशत रहा।
श्री रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड में सेवा क्षेत्र के विकास का प्रदर्शन उत्साहजनक है और राज्य में इस क्षेत्र के विकास और विस्तार की प्रचुर सम्भावनाएं हैं। राज्य के नीति निर्धारकों को इस क्षेत्र को विस्तार देने का लक्ष्य तय करना चाहिये, ताकि इससे राज्य में अतिरिक्त आर्थिक तथा रोजगारपरक गतिविधियांे को बढ़ावा मिल सके।
उत्तराखण्ड का ठोस आर्थिक विकास होने से निवेशकों को राज्य में निवेश के प्रति प्रोत्साहन मिला है। उत्तराखण्ड में अदत्त निवेश का रुख हमें यह बताता है कि राज्य ने खासकर वर्ष 2012-13 के बाद ठोस आर्थिक प्रगति की है। वर्ष 2015-16 तक इस राज्य ने 23.7 प्रतिशत की सकारात्मक विकास दर के हिसाब से 1.45 लाख करोड़ रुपये की निवेश परियोजनाएं हासिल की हैं। हालांकि पूर्व में इसमें अत्यन्त तीव्र गिरावट आयी थी। वर्ष 2008-09 में राज्य में निवेश की दर 44.6 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2012-13 में शून्य से नीचे 3.9 प्रतिशत तक जा गिरी थी। हालांकि वर्ष 2013-14 से उत्तराखण्ड में निवेश की विकास दर राष्ट्रीय औसत से कहीं बेहतर है।
एसोचैम के एजेण्डा के अनुसार उत्तराखण्ड में वर्ष 2012-13 में विकास दर शून्य से नीचे 3.9 प्रतिशत रही थी। उसके बाद 2013-14 में विकास दर 1.9 प्रतिशत दर्ज की गयी, जो 2014-15 में बढ़कर 13.7 प्रतिशत और 2015-16 में 23.7 फीसद हो गयी। इसी दौरान वर्ष 2013-14 में भारत भर में निवेश आगमन की दर में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह वर्ष 2014-15 में 7.7 प्रतिशत तथा 2015-16 में 6.6 प्रतिशत रही।
उत्तराखण्ड में प्रक्रियाधीन परियोजनाओं का प्रतिशत वर्ष 2004-05 में 63.5 था, जो साल 2015-16 में घटकर 38.5 प्रतिशत हो गया। भारत तथा उसके ज्यादातर राज्यों के लिये परियोजनाओं के क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में लटके रहना वहां के नीति निर्धारकों के लिये चिन्ता का विषय है। सभी राज्य सरकारें तथा केन्द्र सरकार विभिन्न निवेश परियोजनाओं के प्रक्रियाधीन होने की दर में कमी लाने की कोशिश कर रही हैं और इसके लिये वे अनेक कदम उठा रही हैं।
बहरहाल, एसोचैम का एजेण्डा पत्र यह बताता है कि उत्तराखण्ड ने परियोजनाओं का तेजी से क्रियान्वयन किया है, इससे इस राज्य में परियोजनाओं के प्रक्रियाधीन होने की दर में उल्लेखनीय गिरावट आयी है।
उत्तराखण्ड की आबादी का एक बड़ा भाग काम करने लायक आयु वर्ग का है, इस वजह से यहां रोजगार के अवसरों की मांग काफी अधिक है। एसोचैम के अनुमान के अनुसार इस प्रदेश में लगभग 32.1 प्रतिशत आबादी 15 से 30 वर्ष आयु वर्ग की है।
इस आयु वर्ग के करीब 45 लाख लोग पहले से ही श्रमशक्ति का हिस्सा है। श्रमशक्ति की भागीदारी के मौजूदा स्तर की दर 38.6 प्रतिशत है, इसलिये 15-30 वर्ष आयु वर्ग की श्रमशक्ति भी इसी दर को प्राप्त करे, इसके लिये अगले पांच वर्षों में रोजगार के पांच लाख अतिरिक्त अवसर उत्पन्न करने की जरूरत होगी। उत्तराखण्ड को अगर रोजगार की सम्भावित मांग की पूर्ति करनी है तो उसे अपनी विकास दर को दोहरे अंकों में ले जाना होगा।
राज्य की अगली सरकार को इसे प्राथमिकता के तौर पर देखना होगा। इससे प्रदेश में निवेश सम्बन्धी गतिविधियां बढ़ेंगी। साथ ही निजी क्षेत्र को भी राज्य में निवेश के लिये प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
एसोचैम की स्पेशल टास्क फोर्स ने राज्य विधानसभा चुनाव से पहले अनेक ज्वलंत आर्थिक मुद्दों पर गहन विचार-मंथन के बाद उत्तराखण्ड को दोहरे अंकों वाली विकास दर प्राप्त करने के लिये एक ‘सस्टेनेबल एक्शन प्लान’ बनाया है। एसोचैम का मानना है कि यह राज्य अगर लगातार दोहरे अंकों में विकास दर हासिल करेगा तो उसे देश के अग्रणी राज्यों में शामिल होने में मदद मिलेगी।