अमृतसरः अमृतसर में वाघा बॉर्डर पर रोज होने वाली बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी के लिए तैनात पाकिस्तान रेंजर्स के जवानों में एक सिख भी
शामिल हो गया है। यह जवान जब गुरुवार शाम को बीटिंग द रिट्रीट में नजर आया तो उसका उत्साह बढ़ाने के लिये दोनों तरफ के लोगों ने जोरदार तालियों के साथ उसका स्वातगत किया।
पाकिस्तान रेंजर्स में ड्यूटी पर तैनात जवान (अमरजीत सिंह) ने क्या कहा ?
– बीटिंग रिट्रीट में पाकिस्तान की तरफ से शामिल इस जवान का नाम अमरजीत सिंह है।
– अमरजीत गुरुनगरी ननकाना साहिब के रहने वाले हैं।
– उन्होंने कहा – वे अपने वतन की सेवा में हाजिर हैं। ड्यूटी के दौरान अगर वे शहीद होते हैं तो ये उनके लिए फख्र की बात होगी।
– अमरजीत 2009 से पाकिस्तान रेंजर्स में हैं। रेंजर्स एकेडमी की उस साल की बैच से पासआउट 763 जवानों की बैच में अमरजीत शामिल थे।
पाकिस्तानी फौज में शामिल हुए पहले सिख: हरचरण सिंह
– ननकाना साहब के ही रहने वाले हरचरण सिंह पाकिस्तान की आर्मी में शामिल हुए पहले सिख हैं।
– 2005 में हरचरण पाकिस्तानी फौज में इंटर सर्विस सिलेक्शन बोर्ड का एग्जाम पास कर आए।
– उनसे पहले कोई सिख पाकिस्तानी आर्मी में नहीं था।
– इसी तरह 2009 में ज्ञान चंद पाकिस्तान की फॉरेन सर्विस में शामिल किए गए पहले हिंदू थे।
– वहीं, वजीरिस्तान में 2013 में एक हिंदू सैनिक अशोक कुमार ने पाकिस्तानी आर्मी की तरफ से लड़ते हुए जान गंवाई थी।
– पाकिस्तानी फौज ने उन्हें शहीद का दर्जा देने से इनकार कर दिया था। इस पर काफी विवाद भी हुआ।
बीटिंग द रिट्रीट क्या है ?
– वाघा बॉर्डर पर 1959 से बीटिंग द रिट्रीट की शुरुआत हुई थी।
– इसका गवाह बनने के लिए दोनों देशों के हजारों लाेग हर रोज जुटते हैं।
– यह वाघा बॉर्डर पर हर शाम दोनों देशों के झंडे उतारने का प्रोग्राम होता है।
– 1965 और 1971 में भारत-पाक की जंग के दौरान यह रिट्रीट नहीं हुई थी।
– बंटवारे के बाद से सालों से तनाव भरे माहौल के बीच भी इस दोस्ती काे बीटिंग रिट्रीट के जरिए जाहिर किया जाता है।
– यह सेरेमनी करीब 156 सेकंड चलती है। इस दौरान, दोनों देशों के जवान मार्च करते हुए बॉर्डर तक आते हैं।
– पाकिस्तान की ओर से रेंजर्स और भारत की ओर से बीएसएफ के जवान इसमें शामिल होते हैं।
– इस दौरान दोनों देशों के गार्ड नाक से नाक की बराबरी तक आते हैं।
– जवान मार्च के दौरान अपने पैर जितना ऊंचा ले जाते हैं, उसे उतना बेहतर माना जाता है।
– दोनों देशों के जवान जितनी बार जोर से चिल्लाते हैं, दर्शकों की भीड़ उतना ही उनका हौसला बढ़ाती है, ताकि जवान एक-दूसरे से बेहतर प्रदर्शन कर सकें।