30 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

हिंदी लाओ नहीं, अंग्रेजी हटाओ: डाॅ. वेद प्रताप वैदिक

Bring no Hindi, English Remove Dr. Ved Pratap Vaidik
देश-विदेश

विश्व हिंदी दिवस और हिंदी दिवस हर साल आते हैं और चले जाते हैं। इन सरकारी दिवसों से जनता का कोई लेना-देना नहीं होता। न सरकार कोई नया संकल्प करती है और न ही जनता ! दोनों चाहें तो एक-दूसरे को प्रेरित कर सकते हैं लेकिन दोनों के दिलो-दिमाग गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं। हिंदी के नाम पर कोरा कर्मकांड हो जाता है। भारत की भाषा के सिंहासन पर सत्तर साल से अंग्रेजी महारानी बनी बैठी है और उसके चरणों में पड़ी हुई नौकरानी की तरह हिंदी सिसक रही है। हिंदी को आगे बढ़ाने की लंबी-लंबी बातें हांकने में सभी उस्तादी दिखाते हैं लेकिन किसी की हिम्मत नहीं पड़ती कि वह यह कहे कि भाषा के सिंहासन से अंग्रेजी को अपदस्थ करो। ऐसा कहने में नेता डरते हैं, क्योंकि हमारे लगभग सभी नेता अर्धशिक्षित हैं। वे बस टूटी-फूटी अंग्रेजी जानते हैं और अन्य विदेशी भाषाओं में तो वे बिल्कुल शून्य हैं। उन्हें यह पता ही नहीं कि किसी स्वतंत्र राष्ट्र में विदेशी भाषाओं की भूमिका क्या होनी चाहिए। विदेशी भाषाएं रहें लेकिन कहां रहें? पुस्तकालयों में रहें, विदेश नीति में रहें, विदेश-व्यापार में रहे, मौलिक अनुसंधान में रहें और खूब रहें लेकिन भारत के सरकारी कामकाज में, न्याय में, संसद में, जन-जीवन में, बच्चों की शिक्षा में, घर-परिवार में, नौकरियों की भर्ती में, व्यापार-व्यवसाय में विदेशी भाषा द्धअंग्रेजीद्ध की जरूरत ही क्या है? दुनिया के किसी शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र में विदेशी भाषा को वह स्थान नहीं है, जो भारत में अंग्रेजी को है। अब जरुरी यह है कि भाजपा सरकार संसद में एक विधेयक ऐसा लाए, जिसमें अंग्रेजी का सह-राजभाषा का पद समाप्त किया जाए। देश के हर कामकाज में से अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त की जाए।यह मांग अपने आपको राष्ट्रवादी कहनेवाले सांसद खुद क्यों नहीं करते? जहां तक जनता का सवाल है, वह अपना सारा कामकाज हिंदी और अपनी मातृभाषाओं में शुरू क्यों नहीं कर देती? सबसे पहले तो प्रत्येक भारतीय को अपने हस्ताक्षर स्वभाषा में करना चाहिए। अपनी चिट्टòी-पत्रों, निमंत्रण-पत्र, लेन-देन आदि भी अंग्रेजी में करना बंद करना चाहिए। बाजारों में लगे अंग्रेजी नाम-पटों को पोत देना चाहिए। सरकारी काम-काज से अंग्रेजी का जादू-टोना खत्म करने के लिए यह जरुरी है कि नौकरशाही के सिर पर चढ़े अंग्रेजी के भूत को पटक मारने का साहस करना चाहिए। अपने नेताओं की मानसिक गुलामी दूर करने के लिए धरने, प्रदर्शन और जुलूस क्यों नहीं आयोजित किए जाएं? इस वक्त हिंदी लाने की नहीं, अंग्रेजी को हटाने की जरूरत है। वह हटी कि हिंदी अपने आप आ जाएगी।

Related posts

Leave a Comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More