7 फरवरी, 2021 को उत्तराखंड के चमोली जिले में नंदा देवी के ग्लेशियर का एक हिस्सा टूट गया जिससे हिमस्खलन हुआ और अलकनंदा नदी प्रणाली में बाढ़ आ गई जिसमें हाइड्रोइलेक्ट्रिक स्टेशन बह गए और कई कर्मचारी फंस गए। गंगा नदी की बड़ी सहायक नदियों में शामिल धौली गंगा, ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी में अचानक दिन में आई बाढ़ से इस उच्च पर्वतीय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर तबाही हुई और भय का माहौल बना।
इस आकस्मिक बाढ़ में ऋषि गंगा हाइडल परियोजना के ठीक नीचे और तपोवन हाइडल परियोजना के लगभग दो किलोमीटर ऊपर जोशीमठ-मलारी रोड पर स्थित 90 मीटर में फैला आरसीसी पुल भी बह गया जो कि नीति सीमा तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता था। इस पुल के बह जाने से उत्तराखंड के चमोली जिले के 13 से अधिक सीमावर्ती गांवों में लोग फंस गए हैं।
इस स्थिति में सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने बचाव और पुनर्वास के लिए 100 से अधिक वाहनों/उपकरणों और संयंत्रों के साथ तुरंत कार्रवाई शुरू की। इनमें पृथ्वी पर चलने वाले लगभग 15 भारी उपकरण शामिल हैं जैसे कि हाइड्रॉलिक उत्खनक, बुलडोजर, जेसीबी, व्हील लोडर्स आदि। सीमा सड़क संगठन ने भारतीय वायु सेना की मदद से भी महत्वपूर्ण हवाई उपकरणों को अपनी कार्रवाई में शामिल किया। प्रोजेक्ट शिवालिक के 21 बीआरटीएफ के लगभग 200 जवान इस बचाव और पुनर्वास कार्य के लिए तैनात किए गए हैं।
प्रारंभिक रेकी के बाद, बीआरओ ने सभी आवश्यक मोर्चों पर संपर्क पुनर्स्थापित करने के लिए कार्य शुरू कर दिया। दूर के किनारों पर खड़ी चट्टानों और दूसरी ओर 25-30 मीटर ऊंचे मलबे/ढेर के कारण यह स्थल काफी चुनौतीपूर्ण था। हालांकि बीआरओ ने इन चुनौतियों पर जीत हासिल कर ली है और चौथे दिन पुल के आधार-निर्माण के लिए रास्ता साफ कर लिया है। बीआरओ जल्द से जल्द 200 फीट बैली पुल को बनाकर दोबारा संपर्क स्थापित करने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहा है। बीआरओ बचाव अभियान में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की सहायता भी कर रहा है। बीआरओ की शिवालिक परियोजना की कई टीमें इस क्षेत्र में बचाव अभियानों के लिए तैनात हैं।