नई दिल्ली: प्रधानमंत्री, श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में आज अगले चार वित्तीय वर्षों के लिए एक व्यापक नई यूरिया नीति 2015 के लिए अपनी मंजूरी दे दी है।इस नीति के कई उद्देश्य हैं जिनमें स्वदेशी यूरिया उत्पादन को बढ़ाने और यूरिया इकाइयों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने की बात है ताकि सरकार पर सब्सिडी का बोझ कम किया जा सके। ऊर्जा के क्षेत्र में बचत कार्बन पदचिह्न को कम करेगा और इस प्रकार अधिक पर्यावरण अनुकूल होगा। यह घरेलू क्षेत्र की 30 यूरिया उत्पादन इकाइयों को अधिक ऊर्जा कुशल बनने के लिए मदद करेगा और सब्सिडी बोझ को युक्तिसंगत बनाने और एक ही समय में अपने उत्पादन को अधिकतम करने के लिए यूरिया इकाइयों को प्रोत्साहित करेगा। यह नीति, किसानों को उसी अधिकतम खुदरा मूल्य पर यूरिया की समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने के साथ ही खजाने पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ को कम करेगी। इससे यूरिया क्षेत्र में आयात की निर्भरता भी कम होगी।
यूरिया इकाइयां दुनिया की बेहतरीन उपलब्ध तकनीक अपनायेंगी और विश्व स्तर पर और अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगी। इस प्रकार इस नीति से आगामी चार वर्षों में, उर्जा खपत के नये मानदंडों को अपनाने तथा आयात प्रतिस्थापन से 2618 करोड़ रूपये की सब्सिडी की प्रत्यक्ष बचत होगी और 2211 करोड़ रूपये की अप्रत्यक्ष बचत होगी।(कुल बचत 4829 करोड़ रूपये) साथ ही यह भी अनुमान है कि इससे हर साल 20 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्त उत्पादन होगा। नई यूरिया नीति से किसान, यूरिया उद्योग और सरकार सभी लाभान्वित होंगे।
इससे पहले सरकार ने सभी यूरिया इकाइयों के लिए एक समान कीमत पर गैस आपूर्ति के लिए गैस पूलिंग नीति को मंजूरी दी थी। सरकार ने इससे पहले जनवरी में ही यूरिया उत्पादकों को 100 प्रतिशत तक नीम लेपित यूरिया उत्पादन की मंजूरी देना और कम से कम 75 प्रतिशत घरेलू यूरिया उत्पादन का नीम लेपित उत्पादन अनिवार्य बनाना तय किया था ताकि किसानो को फायदा हो। नीम लेपित यूरिया की उतने ही खेत के लिए कम मात्रा की जरूरत होती है और ये अधिक उत्पादन देती है। सामान्य यूरिया के मुकाबले नीम लेपित यूरिया से भूमिगत जल में होने वाला प्रदूषण कम होता है क्योंकि नीम लेपित यूरिया में उपस्थित नाइट्रोज फसल को धीरे-धीरे मिलता है। नीम लेपित यूरिया औद्योगित प्रयोग के लिए ठीक नहीं होती है तो इससे यूरिया के अवैध तरीके से विभिन्न उद्योगों में भेजे जाने की संभावना कम होगी। किसानों के लिए यूरिया का अधिकतम खुदरा मूल्य उतना ही रखा गया है यानी स्थानीय करों को छोड़कर 268 रूपये प्रति में 50 किलोग्राम का बैग। किसान को नीम लेपित यूरिया के एक बैग के लिए केवल 14 की अतिरिक्त कीमत चुकानी होगी।
यूरिया की देश के विभिन्न भागों में समय पर और पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, सरकार हर महीने यूरिया आपूर्तिकर्ताओं के लिए दिशानिर्देश जारी करती रहेगी।
इससे पहले सरकार ने 26 लाख टन का अतिरिक्त उत्पादन करने के लिए बिहार में बरौनी और उत्तर प्रदेश में गोरखपुर में बंद यूरिया इकाइयों को पुनर्जीवित करने का फैसला किया था। तेलंगाना में बंद पड़ी रामागुंडम और ओडिशा में बंद पड़ी तालचेर यूरिया इकाई के पुनरुद्धार के लिए विभिन्न हितधारकों के बीच संयुक्त उद्यम समझौतों पर दिसंबर, 2014 और जनवरी, 2015 में हस्ताक्षर किए गए। इन दोनो इकाईयों के शुरू होने से घरेलू उत्पादन में 26 लाख टन की वृद्धि होगी।
इन सभी प्रयत्नों से यूरिया के लिए भारत की आयात निर्भरता काफी कम हो जाएगी। वर्तमान में भारत अपनी जरूरत के लिए कुल 310 लाख मीट्रिक टन में से करीब 80 लाख मीट्रिक टन यूरिया आयात करता है।
सरकार ने आज यह भी फैसला लिया कि फास्फेट और पोटाश आधारित खादों (22 ग्रेड जिसमें डीएपी, सिंगल सुपर फास्फेट, म्यूरिएट आफ पोटाश इत्यादि शामिल हैं) पर पोषक तत्व आधारित सब्सिडी के अंतर्गत वर्तमान सब्सिडी की दरों को वर्तमान सत्र के लिए पूर्ववत बनाए रखा जाएगा। डीएपी के सब्सिडी की दरें पहले की ही तरह 12350 रूपये प्रति मीट्रिक टन और एमओपी के लिए 9300 रूपये प्रति मीट्रिक टन होगी। बोरान और जिंक लेपित खादों के लिए अलग सब्सिडी बनाई रखी जाएगी।
पी एवं के खादों के परिवहन की योजना को मुक्त बना दिया गया है जिससे कि देश में किसी भी जगह किसी भी कंपनी की खाद मिल सके ताकि किसी खास क्षेत्र में किसी एक कंपनी के एकाधिकार को कम किया जा सके। खादों को ढोने के लिए रेल भाड़े में दी जाने वाली सब्सिडी को एकमुश्त आधार पर देना तय किया गया है ताकि कंपनियों को परिवहन लागत में किफायत हो। इससे किसानो को फायदा होगा और रेल नेटवर्क पर बोझ कम होगा। सरकार, देश के किसी भी हिस्से में जहां उर्वरकों की कमी हो रही हो, उर्वरकों की आपूर्ति के लिए खाद आपूर्तिकर्ताओं को कानूनी उपकरणों के जरिए निर्देशित करने के लिए स्वतंत्र होगी। हमारे यहां फास्फेटिक उर्वरक बनाने वाली 19 इकाइयां हैं और एसएसपी बनाने वाली 103 इकाइयां हैं। एमओपी की पूरी जरूरत (जो करीब 30 लाख मीट्रिक टन है) आयात से पूरी की जाती है, क्योंकि भारत में पोटाश हासिल करने का कोई संसाधन नहीं है। फास्फेट का 90 प्रतिशत आयात किया जाता है।
सब्सिडी का भुगतान केवल आपूर्तिकर्ताओं को ही होगा और वो भी तब जब उर्वरक जिलों पर पहुंच जाए और सब्सिडी का अंतिम बंदोबस्त खुदरा विक्रेताओं के यहां से प्राप्ति की पावती के बाद ही होगा। उर्वरक मिलने के छै महीने के अंदर संबंधित राज्य सरकारों को उर्वरक की गुणवत्ता का प्रमाण पत्र दे देना होगा। अगर गुणवत्ता ठीक नहीं हुई तो आपूर्तिकर्ता को सब्सिडी का भुगतान नहीं होगा।