नई दिल्ली: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्य सभा में लंबित नालंदा विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2013 को वापस लेने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना अक्टूबर, 2009 में थाईलैंड में आयोजित चौथी पूर्व एशिया शिखर बैठक में जारी संयुक्त प्रेस वक्तव्य के आधार पर की गई थी। प्रेस वक्तव्य में एक गैर सरकारी, अलाभकारी, धर्मनिरपेक्ष और स्वशासी अंतरराष्ट्रीय संस्थान स्थापित करने को समर्थन दिया गया था। इसके बाद संसद द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 पारित किया गया और यह 25 नवंबर, 2019 से प्रभावी हुआ।
वर्तमान प्रस्ताव राज्य सभा में नालंदा विश्वविद्यालय (संशोधन), 2013 को वापस लेने से संबंधित है। 26 अगस्त, 2013 को राज्य विधेयक सभा में प्रस्तुत विधेयक का उद्देश्य नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के कुछ प्रावधानों में संशोधन करना और कुछ नए प्रावधान जोड़ना था।
नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के अनुच्छेद 7 के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय के गवर्निंग बोर्ड का गठन कर लिया गया है और यह भारत के माननीय राष्ट्रपति की स्वीकृति से 21.11.2016 से प्रभावी है। प्रस्तावित संशोधनों पर आगे बढ़ने के लिए कोई अंतिम निर्णय लेने से पहले नालंदा विश्वविद्याल के गवर्निंग बोर्ड के साथ संशोधन विधेयक पर विचार-विमर्श की आवश्यकता होगी। वर्तमान गवर्निंग बोर्ड संपूर्ण नालंदा विश्वविद्याल अधिनियम, 2010 पर नए सिरे से भी विचार कर सकता है और जहां कही भी आवश्यक हो संशोधनों/जोड़ो का सुझाव दे सकता है।
सितंबर, 2014 में विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज द्वारा विश्वविद्याल में शिक्षण कार्य का शुभांरभ किया गया था। भारत के माननीय राष्ट्रपति विश्वविद्यालय के विजि़टर हैं। डॉ. विजय भटकर विश्वविद्यालय के चांसलर और प्रोफेसर सुनैना सिंह कुलपति हैं। अभी विश्वविद्यालय के तीन अध्ययन केंद्रों – स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज़, स्कूल ऑफ इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट स्टडीज़ और स्कूल ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज़ – में 116 विद्यार्थी हैं। इनमें 21 देशों के 35 अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थी शामिल है।