नई दिल्ली: हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर दैनिक जागरण द्वारा हिंदी को समृद्ध और मजबूत बनाने की मुहिम ‘हिंदी हैं हम‘ के अंतर्गत सानिध्य का आयोजन इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र दिल्ली में किया गया.कार्यक्रम में मुख्य अतिथि केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री भारत सरकार श्री नित्यानंद राय ने दैनिक जागरण के 75 वर्ष की प्रगतिशील यात्रा पर एक विशेष प्रदर्शनी उद्घाटन किया.इसके बाद दिनभर चले विभिन्न सत्रों में वक्ताओं में प्रसून जोशी , प्रो.सुधीश पचौरी, अब्दुल बिस्मिल्लाह, राम बहादुर राय ,प्रो. आनंद कुमार ,जैनेद्र सिंह, सच्चिदानंद जोशी एवं आरजे दिव्या आदि वक्ता शामिल हुए.
‘गाँधी और हिंदी’ सत्र में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने अपने विचार रखते हुए कहा “ महात्मा गाँधी ने हिंदी के लिये जो किया वह आज़ लोगों के नजरों से ओझल हो गया है .हमें आज़ यह जानने की आवश्यकता है कि गांधी जी ने हिंदी के लिये प्रचंड आन्दोलन किए .गाँधी जी कहा था कि अगर मुझे एक दिन के लिये तानाशाह बना दिया जाय तो मै हिंदी को राष्ट्रभाषा बना दूंगा. महात्मा गांधी ने दक्षिणी एवं पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिये कई कार्य किए.” वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने कहा “ गांधी जी ने हिंदी के लिये क्य़ा क्य़ा किया , हिंदी उनके आत्मा के कितने करीब थी आज़ ये बातें बहुत कम होती है”. समाजशात्री प्रो आनन्द कुमार ने कहा “भाषा की अपनी राजनीति और राजनीति की अपनी एक भाषा होती है .गाँधी जी जब दक्षिण अफ्रीका से भारत आए तो उनका एक सपना था कि भारत की एक राष्ट्रभाषा होनी चहिए .उन्होंने कहा था कि भारतीय संस्कृति के हिसाब से हिंदी भाषा भारत की एकता बनाए रखेगी.”
आज के अगले सत्र ‘हिंदी ,समाज और धर्म’ में हिन्दी साहित्य जगत के प्रसिद्ध उपन्यासकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा “ भाषा किसी जाति धर्म देश की नही होती है .हिंदी हिन्दू की भाषा और उर्दू मुस्लिम की भाषा का खेल अंग्रेजों द्वारा खेला गया खेल था .कैसे अंग्रेजो ने सर सयद और भारतेंदु हरीश चंद्र के बीच इस भाषा का खेल खेला वह जगजाहिर है.”हिन्दी साहित्यकार, आलोचक एवं विश्लेषक सुधीश पचौरी ने विषय पर बोलते हुए कहा “ भाषा पहले आयी और धर्म बहुत बाद में और भाषा का किसी धर्म विशेष कोई संबन्ध नही है .हिंदी की आज़ अपने ही क्षेत्र में बड़ी दयनीय दशा है हिंदी के पीछे कोई नही खड़ा है , हिंदी केवल बाजार के रूप में रह गया है .हिंदी कवि और लेखक भी आज़ उन्हें हिंदी कवि और लेखक कहने पर शर्म महसूस करते हैं. ऐसा क्यों हो रहा है, आपको किसी सत्ता और व्यक्ति विशेष से नफरत है तो क्य़ा उसके लिये आप अपनी मातृभाषा से नफरत करने लगोगे .हिंदी जैसी भी है हमारी मातृभाषा है , हा हिंदी मिलावटी है , भाषा और संस्कृति दोनों ही मिलावट के बिना नही चल सकते हैं.” डा. रमा , प्राचार्य हंसराज कॉलेज ‘ आज हिंदी के पीछे खड़े होने की नही हमें हिंदी के साथ चलने की जरूरत है .हर धर्म एक ही बात सीखता है कि हम सब में एकता होनी चहिए ‘ .