प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जब देश वासियों को संबोधित करते हुए ‘मेरे प्रिय परिवारजनों’ कहते हैं तो इसके मायने व्यापक हैं इस आत्मीय सम्बोधन के प्रकटीकरण का ही एक विन्यास है “परीक्षा पे चर्चा” ।
परीक्षा के कारण पिछले कई दशकों में छात्रों की मनोसामजिक स्थिति गंभीर रूप से प्रभावित होती रही है। माता-पिता, परिवार तथा सामजिक तत्वों के दबाव की स्थिति में छात्रों के लिए परीक्षा मात्र परीक्षा नहीं रह गई है, बल्कि परीक्षा को समाज में ऐसा रूप दे दिया गया है जो कि एकमात्र पैमाना है भविष्य तय करने का। हमने देश मे ऐसी गंभीर घटनाएँ भी देखीं जब तथाकथित विश्व स्तरीय स्कूल मे बड़ी कक्षा के एक बच्चे ने एक छोटे बच्चे की हत्या केवल इसलिए कर दी थी क्यूंकी वह परीक्षा स्थगित करवाना चाहता था जाने अनजाने में पूर्व की सरकारों द्वारा विषय की गंभीरता से मुह मोड़ना इस समस्या के पीछे एक प्रमुख कारण नजर आता है। हमारे सामने बहुत पहले से ही ऐसे उदाहरण आते रहे हैं जहां बच्चों ने परीक्षा के तनाव में आकर अपना जीवन समाप्त कर लिया है।
कालातंर में परीक्षा को ऐसा रूप दे दिया गया है, जिसके दबाव में बच्चे अपनी प्रतिभा से विमुख हो रहे हैं और अतिरिक्त दबाव से न तो वह अच्छे परीक्षार्थी बन पा रहे हैं और न ही अपने मनोबल को ऊंचा उठा पा रहे हैं, जिसकी दरकार किसी भी समाज के विकास का अधार है। इसके लिए जरूरी है ऐसी सोच की जो समाज से परीक्षा के प्रति दृष्टिकोण में बहुआयामी परिवर्तन करे।
दुनिया भर के विशेषज्ञों की सलाह है कि तनाव कम करने का सबसे सटीक तरीका इसके कारणों पर चर्चा करना ही है तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश मे एकल परिवारों के इस युग मे माता पिता भी अपनी व्यस्त दिनचर्या के चलते बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं तब बच्चों की दुनिया का एकाकीपन तोड़ने के लिए परीक्षा के तनाव पर उनसे बातचीत की शुरुआत करना ही एक बड़ी मनोसमाजिक चुनौती बन गयी थी ऐसे मे संवेदनशील प्रधानमंत्री जी स्वयं आगे आए और संवाद करने के अपने अनूठे कौशल का इस्तेमाल उन्होने देश के बच्चों की सबसे बड़ी समस्या को हल करने के लिए किया यह ठीक वैसा ही है जैसे परिवार का मुखिया संकटग्रस्त पारिवारिक सदस्य की मदद चुपके से कर देता है ज़रा सोचिए बच्चों के विकास के क्रम मे उनका पहली बार बोलना,चलना,स्वयं अपने काम करना भी अपने आप मे चुनौती से कम नहीं हैं परंतु परिवार के सभी सदस्य इन प्रयासों की असफलता मे उत्साह बढ़ाने साथ होते हैं तो जीवन के यह सभी पड़ाव उत्सव बन जाते हैं इस प्रकार का परीक्षण तो जीवन मे पल पल है फिर स्कूली परीक्षा से घबराना ही क्यों है ।
पहली बार अगर किसी के द्वारा इस विषय की गंभीरता को समझा गया को तो वह देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी हैं। वह इस बात से भलिभांति परिचित हैं कि हमारी भविष्य की पीढ़ी तभी अपनी संपूर्ण क्षमताओं का दोहन कर देश निर्माण की सहभागी बनेगी जब वह परीक्षा के डर में नहीं बल्कि परीक्षा को उत्सव के तौर पर देखेंगे। परीक्षा के प्रति नजरिए में बदलाव और उससे उत्पन्न होने वाले मनो सामजिक दबाव से बच्चों को निकालने के लिए माननीय प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया अभियान परीक्षा पे चर्चा अपने आपमें एक अनुठी पहल है, जो देशभर में परीक्षा की नई परिभाषा गढ़ रहा है। उनके द्वारा देश के इस अमृतकाल में बच्चों को ऐसा वातावरण दिया जाने का प्रयास किया जा रहा है जहां हर बच्चा अपनी क्षमताओं का पूर्ण इस्तेमाल कर देश को विश्व में प्रथम पायदान पर स्थापित करेगा।
उल्लेखनीय है कि परीक्षा का दबाव परीक्षा से नहीं बल्कि उन आकांक्षाओं से उत्पन्न होता है जो परिवारजनों और समाज के द्वारा बच्चों पर थोपी जाती हैं। सभी ओऱ से बच्चों के दिमाग में बस एक ही बात भर दी जाती है कि परीक्षा में उत्तम अंक लाना ही एकमात्र पैमाना है उनकी प्रतीभा को आंकने का। ऐसे में बच्चों पर पढ़ाई के साथ-साथ आकांक्षाओं का अतिरिक्त बोझ एक ऐसे वातावरण का निर्माण करता है जो बच्चों की प्रतिभा को फलने फूलने से रोकता है।
देश के बच्चों को परीक्षा के तनाव से बचाने की जिम्मेदारी माननीय प्रधानमंत्री जी ने उठाई है। साल दर साल परीक्षा पे चर्चा के माध्यम से वह देश में ऐसा वातावरण तैयार कर रहे हैं जहां परीक्षा नहीं बच्चों की प्रतिभा को निखारने के कार्य पर बल दिया जाए। यह प्रयासों का नतीजा है कि आज चाहे अभिभावक हो या शिक्षक सभी बच्चों से परीक्षा पर चर्चा कर रहे हैं ताकि यह तनाव का नहीं बल्कि उल्लास का विषय बने।
माननीय प्रधानमंत्री जी के पहल पर ही आज सभी अपने-अपने स्तर पर इस परीक्षा के वातावरण को उत्सव का वातावरण बनाने की दिशा में कार्यरत हैं। इसी कड़ी में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग परीक्षा पर्व के नाम पर पिछले 05 वर्षों से कार्यक्रम चला रहा है। जिसका एकमात्र उद्देश्य बच्चों को परीक्षा के तनाव से मुक्त करना है