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नमामि गंगे कार्यक्रम के लिए चाचा चौधरी को शुभंकर घोषित किया गया

देश-विदेश

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की 37वीं कार्यकारी समिति की बैठक में, श्री राजीव रंजन मिश्रा, महानिदेशक, एनएमसीजी की अध्यक्षता में, चाचा चौधरी को नमामि गंगे कार्यक्रम का शुभंकर घोषित किया गया और उत्तर प्रदेश व बिहार में कुछ प्रमुख परियोजनाओं पर चर्चा और समीक्षा की गई।

एनएमसीजी अपने संपर्क और जनसंचार प्रयासों के तहत किशोरों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, क्योंकि वे परिवर्तनों के प्रेरक हैं। इस दिशा में एक उठाते हुए एनएमसीजी ने कॉमिक्स, ई-कॉमिक्स और एनिमेटेड वीडियो बनाने और वितरित करने के लिए डायमंड टून्स के साथ समझौता किया है। इस सामग्री को गंगा और अन्य नदियों के प्रति किशोरों के व्यवहार में बदलाव लाने के उद्देश्य से तैयार किया जाएगा। इस परियोजना के लिए कुल अनुमानित बजट 2.26 करोड़ रुपये है। श्री अशोक कुमार सिंह, कार्यकारी निदेशक (ईडी), परियोजनाओं ने परियोजना का विवरण सामने रखा और बताया कि चाचा चौधरी शुभंकर गंगा के कायाकल्प को जमीनी स्तर पर सक्रिय बनाने में उपयोगी हो सकता है। शुरुआत में, इन कॉमिक्स को शुरुआत में हिंदी, अंग्रेजी और बंगाली भाषाओं में लाया जाएगा। श्री राजीव रंजन मिश्रा ने कहा, “एनएमसीजी हमेशा से युवाओं और बच्चों पर विशेष ध्यान देते हुए सामुदायिक जुड़ाव लाने में शामिल रहा है। यह समझौता इसी दिशा में एक और कदम होगा।”

श्री दीपक कुमार सिंह, प्रधान सचिव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार, ने बिहार में गंगा के बाढ़ वाले मैदानों की आर्द्रभूमियों के संरक्षण और सतत प्रबंधन के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया। परियोजना के प्रमुख घटकों में आर्द्रभूमि के ब्यौरे (वेटलैंड इन्वेंट्री) और आकलन, आर्द्रभूमि प्रबंधन योजना, आर्द्रभूमि की निगरानी और क्षमता विकास और संपर्क अभियान शामिल होंगे। 2.505 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ यह परियोजना 100 प्रतिशत केंद्र द्वारा वित्त पोषित होगी। प्रस्ताव का उद्देश्य बिहार के गंगा से जुड़े 12 जिलों में बाढ़ वाले मैदानों की आर्द्रभूमियों के प्रभावी प्रबंधन के लिए ज्ञान का आधार और क्षमता विकसित करना है, ताकि आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की दीर्घकालिक व्यवस्था और जैव विविधता वाले आवासों को संरक्षित किया जा सके। उन्होंने गंगा में मिलने वाली डॉल्फिन के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सरकार स्थानीय मछुआरों को संवेदनशील बनाने का काम कर रही है। श्री राजीव रंजन मिश्रा, महानिदेशक, एनएमसीजी ने सुझाव दिया कि डॉल्फ़िन संरक्षण का लक्ष्य पाने में सीआईएफआरआई जैसे अन्य हितधारकों के साथ साझेदारी से लाभ हो सकता है। डॉ. रितेश कुमार, निदेशक (आर्द्रभूमि), अंतरराष्ट्रीय दक्षिण एशिया ने भी आर्द्रभूमि परियोजना के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

डॉ. प्रवीण कुमार मुटियार, निदेशक तकनीकी, एनएमसीजी ने “प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश में नालों को रोकने और मोडने और सीवेज ट्रीटमेंट कार्यों” के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) प्रस्तुत की। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य प्रतापगढ़ से साई नदी में मिलने वाले प्रदूषण भार घटाने के साथ-साथ नदी की जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र और सामान्य साफ-सफाई में सुधार लाना है। यह क्षेत्र के समग्र सौंदर्य को भी बढ़ाएगा। इस परियोजना के प्रमुख घटकों में नदी में छोड़े जाने वाले नालों के अपशिष्ट जल को मौजूदा एसटीपी तक लाने के लिए रोकना और मोड़ना, नालों को एसटीपी से जोड़ने के लिए 12.472 किलोमीटर सीवर लाइन बनाना (इनमें से 7.60 किलोमीटर पहले से बन चुकी है और शेष 4.872 किलोमीटर का निर्माण प्रगति पर है), दो अलग-अलग नालों के लिए कम लागत वाली उपचार प्रक्रियाओं पर आधारित दो अलग-अलग एसटीपी और रेलवे लाइन के समानांतर बहने वाले रामलीला नाले के लिए प्रस्तावित आर्द्रभूमि प्रौद्योगिकी पर आधारित कम लागत का एक ऑनसाइट ट्रीटमेंट शामिल होगा। इस परियोजना में वर्तमान मुख्य पंपिंग स्टेशन की मरम्मत, इंटरमीडिएट पंपिंग स्टेशन और इलेक्ट्रिक पावर सबस्टेशन का निर्माण भी शामिल है। परियोजना की अनुमानित लागत 39.67 करोड़ रुपये है, जिसमें 15 साल तक संचालन और रखरखाव शामिल है। इस परियोजना को पहले 2006 में मंजूरी मिली थी, लेकिन सिर्फ एसटीपी का ही निर्माण पूरा हुआ था, जो चालू नहीं हो पाया था। जैसा कि एनएमसीजी ने दूसरे चरण में गंगा की सहायक नदियों के कायाकल्प पर काम करना शुरू कर दिया है, इस परियोजना का एक दशक से अधिक समय के बाद दोबारा आकलन हुआ और एक नए दृष्टिकोण के साथ शुरुआत की गई।

राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम लिमिटेड (एनबीसीसी) ने कार्यकारी समिति की बैठक में “सिमरिया, बरौनी, बिहार में घाट और श्मशान के विकास” के लिए संशोधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) प्रस्तुत की। एनबीसीसी परियोजना स्थल के लिए क्षेत्र सर्वेक्षण का काम पहले ही पूरा कर चुकी है और इसने 20 महीने में लागू होने पर परियोजना की कुल लागत 11.92 करोड़ रुपये आने का अनुमान लगाया है। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म स्थान होने के कारण सिमरिया का ऐतिहासिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि कवि ने गंगा के इस तट पर काफी समय बिताया था और अपनी कुछ बेहतरीन कविताएं लिखी थीं। यह घाट कल्पवास के लिए भी लोकप्रिय है। कल्पवास एक प्राचीन परंपरा है, जिसमें माघ मेले के दौरान श्रृद्धालु घाटों पर रहते हैं, गाते हैं और ध्यान लगाते हैं। एक प्रसिद्ध मंदिर के आसपास गंगा के किनारे एक और महत्वपूर्ण स्थान बालूघाट में एक अन्य घाट के निर्माण को अनुमति दी गई थी।

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