नई दिल्ली: सरकार ने कृषि एवं मनरेगा से संबंधित नीतिगत दृष्टिकोणों में समन्वय स्थापित करने के लिए मुख्यमंत्रियों का एक उप-समूह गठित किया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री इसके संयोजक हैं और आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं सिक्किम के मुख्यमंत्री तथा नीति आयोग के सदस्य श्री रमेश चंद इस उप-समूह के सदस्य हैं। वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने से संबंधित प्रधानमंत्री के विजन को ध्यान में रखते हुए ही इस उप-समूह का गठन किया गया है। इस विजन को साकार करने के लिए एक बहु-आयामी एवं समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। नीति आयोग की शाषी परिषद (गवर्निंग काउंसिल) की चौथी बैठक 17 जून को आयोजित की गई थी जिसमें सर्वसम्मति से लिए गए निर्णय के तुरंत बाद ही इस उप-समूह का गठन किया गया है। विचार-विमर्श के दौरान मनरेगा स्कीम का उपयोग करते हुए बुवाई-पूर्व एवं फसल कटाई-उपरांत उपायों पर विशेष जोर देते हुए विशिष्ट दृष्टिकोण पेश करने का सुझाव दिया गया, ताकि ऐसी टिकाऊ परिसंपत्तियों का सृजन किया जा सके जिससे कि किसानों की आमदनी दोगुनी हो सके और कृषि क्षेत्र में मुश्किलें कम हो सकें।
प्रधानमंत्री ने कृषि क्षेत्र और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) पर समन्वित नीतिगत दृष्टिकोण हेतु सात मुख्यमंत्रियों के उप-समूह के गठन के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को नामित किया। इसके बाद मुख्यमंत्रियों का उप-समूह गठित किया गया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री इसके संयोजक हैं। आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के मुख्यमंत्रियों तथा नीति आयोग के सदस्य श्री रमेश चंद को इस उप-समूह का सदस्य बनाया गया है। इस उप-समूह को नीति आयोग द्वारा आवश्यक सहायता प्रदान की जाएगी।
उपर्युक्त उप-समूह के विचारार्थ विषयों को निम्नानुसार तय किया गया है:
- बुवाई पूर्व और फसल कटाई उपरांत दोनों ही के लिए राज्य विशिष्ट उपायों के व्यापक विकल्प सुझाना, ताकि आमदनी, जल संरक्षण और कचरे से संपदा पर दिए जा रहे विशेष जोर को और बढ़ाया जा सके।
- मनरेगा के तहत विभिन्न कार्यों को वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य की प्राप्ति से जुड़ी आवश्यकताओं से पूरी तरह सुव्यवस्थित करना।
- मनरेगा से जुड़े विशिष्ट उपायों पर ऐसी सिफारिशें पेश करना, जिससे कि कृषि क्षेत्र में मुश्किलें कम हो सकें। इनमें कार्य की उपलब्धता, मजदूरी की दरें, सीजन विशेष कार्य, इत्यादि से संबंधित समस्याएं शामिल हैं।
- विशेषकर अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के परिवारों से जुड़े छोटे एवं सीमांत किसानों की आजीविका में विविधता के साथ-साथ विकास के लिए एक आजीविका स्रोत के रूप में मनरेगा की संभावनाएं तलाशना।
- आजीविका के लिए संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने हेतु मनरेगा और महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी), उत्पादक समूहों एवं उत्पाद कंपनियों से जुड़े आजीविका संबंधी विशेष जोर के बीच उचित समन्वय स्थापित करने के तरीके सुझाना।
- कोष का इष्टतम उपयोग, दक्षता, प्रभावकारिता एवं निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न विभागों में कार्यक्रम संबंधी संसाधनों के सफल सामंजस्य की संभावनाएं तलाशना।
उपर्युक्त उप-समूह अपने गठन की तिथि से तीन माह के भीतर रिपोर्ट पेश कर देगा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की सुविधा के अनुसार ही इस उप-समूह की पहली बैठक अगले माह होने की आशा है।