श्री अमिताभ ठाकुर निलम्बन की अवधि में पुलिस महानिदेशक कार्यालय से सम्बद्ध रहेगे तथा उनकी पूर्वानुमति के बिना मुख्यालय नही छोड़ेगे।
उल्लेखनीय है कि श्री अमिताभ ठाकुर,आईपीएस को उच्च न्यायालय, खण्डपीठ, लखनऊ द्वारा एक रिट याचिका के संबंध में पारित निर्णय में आदेशित किया गया था कि सरकारी सेवा में रहते हुए शासन की अनुमति प्राप्त किये बिना लोकहित याचिका योजित न की जाये। उच्च न्यायालय द्वारा यह भी निर्देशित किया गया कि शासन की अनुमति के बिना कोई भी लोकसेवक इस प्रकार की लोकहित याचिका दाखिल नहंीं करेगा जब तक संगत प्रकरण में उसके व्यक्तिगत हित अन्तर्निहित न हों।
श्री अमिताभ ठाकुर द्वारा नियम-विरूद्ध ढंग से और उच्च न्यायालय के उक्त निर्देशों की अवहेलना करते हुए अनेक याचिकायें योजित की गयी हैं। साथ ही श्री ठाकुर द्वारा अपने अधिकार-क्षेत्र के बाहर जाकर शासन एवं विभिन्न शासकीय विभागों के प्रकीर्ण प्रकरणों की स्वस्फूर्त जाँच बिना किसी अधिकार के तथा बिना सक्षम अधिकारी की अनुमति के की गयी तथा मीडिया के माध्यम से शासन की नीतियों एवं अधिकारियों के विरूद्ध बिना समुचित एवं औचित्यपूर्ण कारणों के बयानबाजी की गई। उनके इस आचरण से पुलिस विभाग में अनुशासनहीनता को बढ़ावा मिल रहा है तथा जनता में शासन व पुलिस विभाग की छवि धूमिल हुई है।
श्री ठाकुर के द्वारा नियमों की अवहेलना करते हुए बिना अनुमति के विभिन्न संगठनों की बैठकों में भाग लेने, सरकारी संसाधनों का दुरूपयोग करने, जनता को उकसाकर अथवा दिग्भ्रमित करके शासकीय अधिकारियों के कार्यो में बाधा पहुँचाने, पुलिस प्रशासन एवं शासन की छवि को धूमिल करने संबंधी क्रियाकलापों में संलिप्त होने, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विरूद्ध सार्वजनिक रूप से गरिमाविहीन एवं आपत्तिजनक टिप्पणी करने, मुख्यालय पुलिस महानिदेशक के सामने धरना देने, अखिल भारतीय सेवायें (आचरण) नियमावली, 1969 के अन्तर्गत वार्षिक सम्पत्ति विवरण त्रुटिपूर्ण एवं अनियमित ढंग से पे्रषित करने, अपनी शासकीय क्षमता एवं सरकारी संसाधनों का अनुचित प्रयोग करके सरकारी विभागों से सूचनाएँ प्राप्त कर उनके आधार पर अपनी पत्नी के माध्यम से तथा स्वयं भी जनहित याचिकाएँ दाखिल कराने के तथ्य भी शासन के संज्ञान में आये।