नई दिल्ली: मीडिया के कुछ वर्गों द्वारा देश में बाघों की मौतों का आंकड़ा कुछ इस प्रकार पेश किए जाने का मामला प्रकाश में आया है, जो देश में बाघ संरक्षण के प्रति असंतुलित दृष्टिकोण रखता है और स्पष्ट रूप से इस संबंध में भारत सरकार के प्रयासों को विफल करने और इस मुद्दे को सनसनीखेज बनाने का प्रयास है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का सांविधिक निकाय राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत करना चाहता है:
भारत सरकार के प्रयासों की बदौलत राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के जरिए बाघों को कगार से पुन:प्राप्ति के एक सुनिश्चित मार्ग पर लाया गया है, जो 2006, 2010, 2014 और 2018 में किए गए चार साल में एक बार होने वाले भारतीय बाघ अनुमान के निष्कर्षों से स्पष्ट है। ये परिणाम बाघों की 6 प्रतिशत स्वस्थ वार्षिक वृद्धि दर दर्शाते हैं, जो भारतीय संदर्भ में प्राकृतिक नुकसान की कमी को पूर्ण करते हैं और बाघों को पर्यावासों की क्षमता के स्तर पर बनाए रखते हैं। 2012 से 2019 की अवधि के दौरान देखा जा सकता है कि देश में प्रति वर्ष बाघों की मृत्यु औसतन लगभग 94 के आसपास रही है, जो कि वार्षिक स्तर पर प्राकृतिक तौर पर इनकी तादाद बढ़ने से संतुलित होती रही है, जैसा कि इस सुदृढ़ वृद्धि दर से उजागर होता है। इसके अलावा, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने वर्तमान में जारी केंद्र प्रायोजित योजना प्रोजेक्ट टाइगर के तहत गैर कानूनी शिकार पर काबू पाने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा चुका है, जैसा कि शिकार और जब्ती के पुष्ट मामलों में देखा गया है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने अपनी वेबसाइट के साथ-साथ समर्पित पोर्टल – www.tigernet.nic.in के माध्यम से नागरिकों को बाघों की मौत के आंकड़े उपलब्ध कराने के लिए पारदर्शिता के उच्चतम मानकों को बरकरार रखा है, ताकि लोग यदि चाहें तो उनका तार्किक मूल्यांकन कर सकें। 8 वर्षों की लम्बी समय सीमा के आंकड़ों की प्रस्तुति बड़ी संख्या बताकर भोले भाले पाठकों के मन में अवांछित भय उत्पन्न करने की मंशा की ओर इंगित करती है। इसके अलावा, इसमें इस तथ्य को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया है कि भारत में 60 प्रतिशत बाघों की मौत का कारण शिकार नहीं है।
यहां इस बात का उल्लेख करना भी उचित होगा कि एनटीसीए में एक समर्पित मानक संचालन प्रक्रिया के माध्यम से किसी बाघ की मौत का कारण बताने के लिए एक कठोर प्रोटोकॉल मौजूद है, जिसे राज्य द्वारा तस्वीरों और परिस्थितिजन्य सबूतों के अलावा शव परीक्षण रिपोर्ट, हिस्टोपैथोलॉजिकल और फोरेंसिक आकलन प्रस्तुत करने के माध्यम से साबित नहीं किए जाने तक अप्राकृतिक माना जाता है। इन दस्तावेजों के विस्तृत विश्लेषण के बाद ही बाघ की मौत का कारण बताया जाता है।
हालांकि इस बात की सराहना की जाती है कि इन रिपोर्टों में एनटीसीए की वेबसाइट पर उपलब्ध और आरटीआई के जवाब में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन इन्हें जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है, वह भय उत्पन्न करने का कारण बनता है और देश में बाघों की मृत्यु के संबंध में अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं और बाघों के संरक्षण के तहत हुई उनकी संख्या में वृद्धि को ध्यान में नहीं रखा गया है, जो भारत सरकार की केंद्रीय प्रायोजित योजना प्रोजेक्ट टाइगर के तहत एनटीसीए द्वारा संचालित निरंतर तकनीकी और वित्तीय हस्तक्षेप का परिणाम है।
मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि वह देश को उपरोक्त तथ्यों की सूचना देगा, ताकि इस मामले को सनसनीखेज न बनाया जाए और नागरिकों को ऐसा न लगे कि इसमें कोई खतरे की बात है।