नई दिल्ली: भारतीय श्रम सम्मेलन (आईएलसी) के 46वें सत्र का कल नई दिल्ली के विज्ञान भवन में समापन हो गया, जहां तीन पक्षों के बीच दो दिन तक विस्तृत विचार विमर्श के बाद 5 चुने गये एजेंडा पर सिफारिशें के बारे में अन्तिम निर्णय लिए गए।
आईएलसी के अध्यक्ष और श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री बंडारू दत्तात्रेय ने अपने समापन संबोधन में देश के युवाओं के लिए बड़े स्तर पर रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए त्रिपक्षीय सहमति से सुधार प्रक्रिया के प्रति उनकी सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया। प्रत्येक एजेंडा पर अन्तिम निर्णय/सिफारिश पर सहमति यहां दी गई हैं:-
43वें, 44वें और 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन के निष्कर्षों/सिफारिशों के कार्यान्वयन विशेष रूप से अनुबंध श्रमिक, न्यूनतम मेहनताना और योजनाकर्मी और समिति की त्रिपक्षीय प्रक्रिया के निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:-
समिति ने 43वें, 44वें और 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों पर विस्तार से विचार-विमर्श किया और निष्कर्षों विशेष रूप से अनुबंध श्रमिक, न्यूनतम मेहनताना, योजना कर्मी और त्रिपक्षीय निष्कर्षों को कार्यान्वित नहीं किए जाने पर चिन्ता व्यक्त की गई। इसलिए एक मत से यह सिफारिश की गई कि पहले की गई सिफारिशों को तेजी से लागू करने के लिए ठोस उपाय किए जाने चाहिए। भागीदारों द्वारा समय-समय पर इनकी समीक्षा की जानी चाहिए।
”संगठित, गैर संगठित और प्रवासी अंतर्राष्ट्रीय श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा” पर सम्मेलन समिति की सिफारिशें
अगर आवश्यक हो तो बेहतर जीवन प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा समर्थन मजदूरी के साथ सामाजिक सुरक्षा के तहत सभी संगठित और गैर संगठित श्रमिकों के कवरेज के लिए सैद्धांतिक समझौता हुआ था। समिति ने सिफारिश की कि :
- गैर संगठित श्रमिकों की पहचान करने और पंजीकरण के लिए प्रक्रिया होनी चाहिए। इस उद्देश्य के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए और अगर आवश्यक हो तो सरकार द्वारा सीधे पंजीकरण किया जाना चाहिए।
- संगठित/गैर संगठित श्रमिकों के लिए योजनाओं को प्रभावी बनाना चाहिए।
- ऐसे गैर संगठित श्रमिकों के लिए बजटीय प्रावधान होने चाहिए जो किसी विशेष सामाजिक सुरक्षा योजना के अंतर्गत नहीं आते हों।
- गैर संगठित श्रमिकों के पंजीकरण की राशि केंद्र/राज्य सरकार द्वारा वहन की जानी चाहिए।
- भवन निर्माण उप कर और प्रशासनिक खर्चों के जरिए एकत्रित राशि का उचित उपयोग किया जाना चाहिए।
- समिति ने दोहराया कि आंगनवाड़ी/आशा/मध्यान्ह भोजन और अन्य ऐसे कार्यों से जुड़े कमिर्यों को ईएसआई/ईपीएफ के अंतर्गत लाया जाना चाहिए।
- ईएसआईसी के बारे में निम्नलिखित सिफारिशें की गई :-
ए. सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करने के िलये ईएसआईसी का िवस्तार करना। वर्तमान में जहां योजना लागू है उन सभी जिलों को पूरे तौर पर कवर किया जाना चाहिए।
बी. वर्तमान 10 सीमा रेखा प्रारूप को कम कर ईएसआईसी योजना का विस्तार गैर संगठित क्षेत्र के लिए करना चाहिए। स्वरोजगार से जुड़े व्यक्तियों को स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया जाना चाहिए।
सी. सभी राज्यों में ईएसआईसी को सीधे स्वास्थ्य सेवाएं देनी चाहिए और इसके तहत आने वाले लोगों से इलाज का खर्चा नहीं लिया जाना चाहिए।
डी. स्वास्थ्य सुविधाएं तेजी से बढ़ानी चाहिए : भौगोलिक आवश्यकता के आधार पर अस्पतालों और औषधालयों के निर्माण का फैसला करना चाहिए।
ई. निर्माण कार्य से जुड़े सभी श्रमिकों को ईएसआई के तहत कवर किया जाना चाहिए।
एफ. स्वास्थ्य लाभ के लिए 24 घंटे ईएसआई कवरेज।
- ईपीएफ के संदर्भ में सिफारिशें :-
ए. ईडीएलआई योजना की अतिरिक्त राशि से ईपीएस पेंशनधारियों के लिए चिकित्सा योजना।
बी. सीमा रेखा प्रारूप 20 से कम करके 10 कर कवरेज का विस्तार। ‘एलयूबी के सदस्यों ने इसका विरोध किया’।
सी. ईपीएफ अधिनियम के तहत अंतरराज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी श्रमिकों को लाना।
डी. ईपीएफ पेंशन बढ़ाई जानी चाहिए और इसे मूल्य सूचकांक के साथ जोडा जाना चाहिए।
- सभी श्रम कानूनों के लिए मजदूरी की परिभाषा एक समान होनी चाहिए।
- ऐसी प्रक्रिया होनी चाहिए कि मालिक सामाजिक सुरक्षा योगदान एकल खिड़की पर जमा करा सके।
- निर्माण कार्य से जुड़े श्रमिकों के लिए मालिक की ओर से अंशदान होना चाहिए।
- सामाजिक सुरक्षा के संदर्भ में आईएलसी के 43वें, 44वें और 45वें सत्र द्वारा लिए गए फैसलों का कार्यान्वयन।
हालांकि ईएसआई और ईपीएफ के लिए स्वैच्छिक योजनाओं का कर्मियों के प्रतिनिधिमंडल ने कड़ा विरोध किया जबकि मालिकों के प्रतिनिधिमंडल का कहना था कि ऐसा विकल्प होना चाहिए।
भुगतान योग्यता अंतिम सीमा, संतोषजनक कार्यसूचक द्वारा बोनस की सिफारिश पर नुकसान को दूर रख न्यूनतम बोनस के भुगतान के फैसले से शर्तें हटाना- समिति में हुए विचार-विमर्श से निकले प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:-
- सम्मेलन समिति बोनस अधिनियम के संशोधन पर- अंतिम सीमा योग्यता भुगतान पर शर्तों को हटाना। कार्यसूचक पर संतोषजनक काम होने पर नुकसान को शामिल किए बिना न्यूनतम बोनस देने के फैसले पर आईएलसीए 46वें सत्र के एजेंडा संख्या 3 पर विचार-विमर्श किया गया। समिति की अध्यक्षता हरियाणा सरकार के श्रम मंत्री केप्टन अभिमन्यु ने की जिसमें श्री ओम प्रकाश मित्तल, महासचिव, लघु उद्योग भारती (एलयूबी) और सुश्री मीनाक्षी गुप्ता तथा बी. बी. मलिक संयुक्त सचिव, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय क्रमश: उपाध्यक्ष एवं समिति के सदस्य सचिव शामिल थे। समिति में सभी हितधारकों (श्रमिक समूह, मालिक समूह और राज्य सरकार) के प्रतिनिधि थे।
- शुरूआत में समिति के अध्यक्ष ने सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया। उन्होंने पाया कि बोनस का मुद्दा काफी समय से लंबित है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि सभी साझेदार एक-दूसरे की स्थिति समझेंगे और राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर सिफारिशें देंगे। उपाध्यक्ष ने भी सभी सदस्यों का स्वागत किया इसके बाद सदस्य सचिव ने विषय की प्रस्तावना रखी। एजेंडा में निम्नलिखित तीन मुद्दे हैं:-
- गणना सीमा हटाना
- योग्यता सीमा हटाना और
III. संतोषजनक कार्यसूचक द्वारा बोनस की सिफारिश पर नुकसान को दूर रख न्यूनतम बोनस के भुगतान के फैसले।
- यह बताया गया कि पिछली बार सीमाओं (गणना सीमा- 3500 रुपए और योग्यता सीमा -10,000 रुपए) में संशोधन 2007 में किया गया था जो आईएलसी के 41वें सत्र की सिफारिशों पर आधारित था।
- समिति ने एजेंडा नंबर 3 के सभी पहलुओं पर गंभीरता से विस्तृत चर्चा की।
- श्रमिक संघों का यह मत था कि बोनस के भुगतान अधिनियम, 1965 के अधीन सभी उच्चतम सीमाएं (सीलिंग्स) अर्थात ग्राहयता सीमा, आकलन सीमा और देय बोनस की अधिकतम प्रतिशतता हटाए जाने की जरूरत है। उन्होंने यह मत भी जाहिर किया कि वे 20 अक्टूबर, 2014 को आयोजित त्रिपक्षीय बैठक में उन्होंने जो रूख अपनाया था उसे दोहराना चाहेंगे।
- नियोजकों के प्रतिनिधियों का यह मत था कि विभिन्न सीलिंग्स को पूरी तरह हटाने से औद्योगिक संबंध के मुद्दों में उछाल आएगा। उन्होंने कहा कि बोनस भुगतान अधिनियम, 1956 में कोई भी परिवर्तन करते समय कामगारों की उत्पादकता और नियोक्ता की भुगतान क्षमता को ध्यान में रखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वे सीलिंग्स और बोनस की गणना के लिए जीवन-यापन लागत के सूचीकरण के पक्ष में नहीं है। जैसा कि औद्योगिक विभाग अधिनियम के अधीन परिभाषित किया गया है ‘कर्मचारी’ शब्द के स्थान पर ‘कामगार’ शब्द स्थानापन्न किया जाना चाहिए। ग्राहयता और गणना के लिए निर्धारित सीमा की वर्तमान प्रणाली को कायम रखा जाना चाहिए।
iii. राज्य सरकार के प्रतिनिधियों का यह मत था कि बोनस की न्यूनतम सीमा (8.33 प्रतिशत) को जारी रखा जाना चाहिए। गणना करने और भुगतान सीलिंग्स के संबंध में सीमाओं के बारे में यह बताया गया कि उन्हें प्रस्ताव पर कोई टिप्पणी नहीं करनी है। उन्होंने आगे यह पाया कि इस संबंध में सांविधिक बोनस और उत्पादकता से जुड़े बोनस के मध्य जो अंतर है वह बिल्कुल उचित है।
- राज्य सरकार के प्रतिनिधियों ने यह सुझाव भी दिया कि केन्द्र सरकार को बोनस की वांछनीयता और बोनस की गणना की सीमाओं को विधायी प्रक्रिया के बजाय त्रिपक्षीय कार्यप्रणाली पर आधारित प्रशासनिक प्रक्रिया के माध्यम से अधिसूचित करने पर विचार करना चाहिए। बोनस का भुगतान अधिनियम, 1965 में तदनुसार उचित संशोधन किया जाना चाहिए।
केन्द्र/राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित या किए गए श्रम कानून संशोधनों के बारे में समिति के निष्कर्ष इस प्रकार है :
- समिति ने किसी श्रम कानून को बनाने या उसमें संशोधन करने से पहले देश में त्रिपक्षीय प्रक्रिया की कार्यविधि की ऐतिहासिक भूमिका को दोहराया।
- किसी श्रम कानून में संशोधन या उसे तैयार करने में तीन उद्देश्यों को ध्यान में रखा जाना चाहिए:-
2.
- कामगार के अधिकार और कल्याण,
- उद्यमों की सततता और रोजगार सृजन, और
iii. औद्योगिक शांति
- श्रम कानूनों की समयबद्ध तरीके से समीक्षा करने और उन्हें अद्यतन करने की जरूरत है।
- समिति ने यह सिफारिश भी की कि श्रम कानूनों में संशोधन की संपूर्ण प्रक्रिया के बारे में त्रिपक्षीय मंच पर विचार किया जाना चाहिए और त्रिपक्षीय बैठकों में ही बड़े और विशिष्ट प्रस्तावों पर विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।
46वें भारतीय श्रम सम्मेलन (आईएलसी) में ”रोजगार और रोजगार सृजन पर” समिति की सिफारिशें इस प्रकार हैं :-
- समिति ने पाया कि 43वें से 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन में रोजगार और रोजगारपरकता के बारे में की गई सिफारिशों को पूरी तरह लागू किए जाने की जरूरत है।
- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सूक्ष्म और लघु उद्योगों में रोजगार संभावनाओं की पहचान करते हुए रियायती वित्त आदि जैसी सुविधाओं के साथ कृषि आधारित सूक्ष्म और लघु उद्योगों को प्रोत्साहित करके स्थापित किया जाना चाहिए। इन उद्योगों द्वारा विनिर्मित उत्पादों के लिए केन्द्रीयकृत विपणन प्रणाली भी विकसित की जा सकती है।
- ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सार्वजनिक रोजगार सृजन कार्यक्रमों के लिए व्यय और सीमा रेखा बढ़ाई जाए।
- केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों में खाली पदों को समयबद्ध रूप से भरा जाए।
- त्रैमासिक रोजगार और बेरोजगार आंकड़ों को प्रकाशित करने क जरूरत पर जोर दिया गया।
- केन्द्र और राज्य सरकार रोजगार केन्द्रों के लिए ऑनलाइन प्रणाली अपनाने के लिए आगे बढ़ रही है इसलिए नेशनल कैरियर सर्विस (एनसीएस) के अधीन उनकी संशोधित भूमिका के लिए रोजगार केन्द्र अधिकारियों के क्षमता निर्माण की जरूरत है।
- डुप्लीकेशन रोकने के लिए केन्द्र और राज्य की पहलों का एकीकरण किए जाने की जरूरत है।
- प्रभावी मूल्यांकन के साथ रिकॉगनाइज़ेशन ऑफ प्रायर लर्निंग (आरपीएल) के लिए क्षेत्रों को बढ़ाने और उनका विस्तार करने की जरूरत है।
- व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए मूल्यांकनकर्ताओं की संख्या बढ़ाने और गुणवत्ता सुधारने की जरूरत। इसमें मूल्यांकनों के लिए आईटीआई फेकल्टी को भी शामिल करने पर विचार किया जाए।
- उन श्रम प्रधान उद्योगों और नए क्षेत्रों की पहचान करना जहां नवीकरणीय ऊर्जा और पुन:प्रयोज्य साधन की तरह रोजगार जुटाए जा सके और रोजगार से जुड़े प्रशिक्षण दिया जा सके।
- सार्वजनिक और निजी दोनों रोजगारों में महिलाओं के कार्यबल की भागीदारी बढ़ाने के लिए रणनीति बनाना।
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