नई दिल्ली: दूरसंचार विभाग रेडिएशन (विकिरण) नियमों का उल्लंघन कर मोबाइल टावर लगाने वाले टेलीकॉम ऑपरेटर्स और कंपनियों पर कार्रवाई करने में नाकाम रहा है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने इस बात का खुलासा करते हुए दूरसंचार विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर कई सवाल उठाए हैं। कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि टेलीकॉम कंपनियों पर 4,300 करोड़ रूपए का जुर्माना लगाया जाना था। लेकिन दूरसंचार नियामक संस्था हाथ पर हाथ धरे बैठी रही।कैग ने संसद में शुक्रवार को रिपोर्ट पेश की।
इसमें स्पष्ट किया गया है कि कई स्थानों पर मोबाइल टावर से निकलने वाले विकिरण की मात्रा काफी अधिक है। कैग ने साफ शब्दों में कहा कि दूरसंचार प्रवर्तन, संसाधन और निगरानी समिति (टीईआरएम) का प्राथमिक दायित्व टेलीकॉम ऑपरेटर्स द्वारा की जा रही किसी भी प्रकार की गड़बड़ी पर नजर रखना है। लेकिन वह इसमें पूरी तरह विफल रहा है।
– 2010 में दूरसंचार मंत्रालय ने टेलीकॉम ऑपरेटर्स से स्पष्ट कर दिया था कि टीईआरएम समितियां प्रतिवर्ष 10त्न नए मोबाइल टावर का परीक्षण करेंगी।
– 6,86,548 टॉवर थे 31 मार्च 2013 तक
– 45,697 टावरों की ही जांच नवंबर 2010 से मार्च 2013 तक
टर्म सेल जिन उद्देश्यों के लिए बनाई गई थी, वह उन्हें पूरा नहीं कर सकी. कई मामलों को तोे उसने छुआ तक नहीं।
– सुमन सक्सेना, उप नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
मोबाइल रेडिएशन नियमों के मुताबिक, सभी टेलीकॉम कंपनियों को अपने मोबाइल टावर को स्वप्रमाणित करना होता है। इसके बाद भी यदि ये टावर मानकों पर खरे नहीं उतरते तो जुर्माने का भी प्रावधान है। अब रिपोर्ट के मुताबिक 8 मई, 2010 तक 7,811 मोबाइल टावरों का स्वप्रमाणन नहीं हुआ था, जिसके आधार पर करीब 390 करोड़ रूपए का जुर्माना वसूला जाना चाहिए। 8 मई 2010 के बाद लगे 76,575 मोबाइल टावरों के भी स्वप्रमाणन नहीं हैं, इनसे भी करीब 3,828 करोड़ रूपए का जुर्माना बनता है। इसके अलावा 1,758 टावर ऎसे हैं, जिन पर अन्य नियमों के उल्लंघन का आरोप है। इनसे करीब 110 करोड़ रूपए की जुर्माना राशि बनती है।
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