नई दिल्ली: कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने सितम्बर, 2019 में कंपनी कानून समिति का गठन किया था जिसे अन्य बातों के अलावा कंपनी अधिनियम, 2013 के विभिन्न प्रावधानों की गंभीरता के आधार पर उनका गैर-अपराधीकरण करने और देश में कंपनियों के लिए कारोबारी माहौल को और भी अधिक आसान बनाने के लिए अन्य संबंधित उपाय सुझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
समिति की रिपोर्ट आज केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण को सौंपी गई। यह रिपोर्ट कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय में सचिव श्री इंजेती श्रीनिवास द्वारा सौंपी गई जिन्होंने इस समिति की अध्यक्षता की थी। समिति के सदस्यों में ये शामिल थे: श्री टी. के. विश्वनाथन, पूर्व महासचिव, लोकसभा; श्री उदय कोटक, एमडी, कोटक महिंद्रा बैंक; श्री शार्दुल एस श्रॉफ, कार्यकारी चेयरमैन, शार्दुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी; श्री अमरजीत चोपड़ा, वरिष्ठ साझेदार, जीएसए एसोसिएट्स; श्री राजीव शेखर साहू, प्रमुख साझेदार, एसआरबी एंड एसोसिएट्स; श्री अजय बहल, संस्थापक एवं मैनेजिंग पार्टनर, एजेडबी एंड पार्टनर्स; श्री जी. रामास्वामी, साझेदार, जी. रामास्वामी एंड कंपनी; श्री सिद्धार्थ बिड़ला, चेयरमैन, एक्सप्रो इंडिया लिमिटेड; सुश्री प्रीति मल्होत्रा, ग्रुप प्रेसीडेंट, कॉरपोरेट कार्य एवं गवर्नेंस, स्मार्ट ग्रुप और श्री के.वी.आर. मूर्ति, संयुक्त सचिव, कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (समिति के सदस्य सचिव)।
समिति ने कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2019 के बाद इस दिशा में हुई प्रगति को ध्यान में रखा जिसके फलस्वरूप कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत 16 छोटी प्रक्रियागत/तकनीकी खामियों का गैर-अपराधीकरण करके उन्हें ‘दीवानी त्रुटियां’ मान लिया गया। समिति ने इस तरह की चूक में आपराधिकता को दूर करने के लिए एक सिद्धांत आधारित दृष्टिकोण अपनाया जिनका निर्धारण वस्तुपरक ढंग से हो सकता है और जिसमें धोखाधड़ी या व्यापक सार्वजनिक हित निश्चित तौर पर निहित नहीं है। समिति ने कुछ मामलों में प्रतिबंध लगाने के वैकल्पिक तरीकों पर भी गौर किया और इस बारे में अपनी सिफारिशें पेश कीं।
समिति ने रिपोर्ट के प्रथम अध्याय में 46 दंडात्मक प्रावधानों में संशोधन करने की सिफारिश की है, ताकि या तो आपराधिकता को दूर किया जा सके अथवा दंड को केवल जुर्माने तक ही सीमित किया जा सके या वैकल्पिक तरीकों के जरिए चूक में सुधार करने की अनुमति दी जा सके। इससे देश में आपराधिक न्याय प्रणाली की राह में मौजूद अवरोधों को और भी तेजी से हटाया जा सकेगा। अध्याय 1 में समिति की मुख्य सिफारिशें निम्नलिखित हैं:
- अधिनियम के तहत 66 शेष संयोजनीय मामलों में से 23 अपराधों को फिर से वर्गीकृत करें, इनका निपटारा आंतरिक अधिनिर्णय व्यवस्था के तहत हो और इसके तहत इस तरह की चूक (डिफॉल्ट) के लिए निर्णयन अधिकारी जुर्माना लगाए। इसके अलावा, जितनी पेनाल्टी लगाने की सिफारिश की जाएगी वह अधिनियम के तहत वर्तमान में लगाए जाने वाले जुर्माने से कम होनी चाहिए।
- कुल मिलाकर 7 संयोजनीय अपराधों को हटा दिया जाए, जेल की सजा के प्रावधान को हटाकर 11 संयोजनीय अपराधों में दंड को केवल जुर्माने तक ही सीमित किया जाए और 5 अपराधों के बारे में निर्णय वैकल्पिक व्यवस्थाओं के तहत लिया जाए।
- उन 6 प्रावधानों के तहत जुर्माने की राशि घटा दी जाए जिन्हें हाल ही में पारित कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2019 के जरिए आंतरिक अधिनिर्णय व्यवस्था में शामिल कर दिया गया है।
- गैर-संयोजनीय मामलों में यथास्थिति रखी जाए।
अध्याय 2 में समिति ने ऐसी सिफारिशें की हैं जिनका उद्देश्य कानून का पालन करने वाली कंपनियों के लिए कारोबार करने में और अधिक सुगमता सुनिश्चित करना है। इनका उल्लेख नीचे किया गया है:
- सेबी के साथ सलाह-मशविरा कर विशेषकर बॉन्ड प्रतिभूतियों की सूचीबद्धता के लिए कंपनियों की विशेष श्रेणी को ‘सूचीबद्ध कंपनी’ की परिभाषा के दायरे से बाहर करने का अधिकार दिया जाए।
- किसी कंपनी के अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा उसकी संपत्ति को गलत ढंग से अपने कब्जे में रखने के लिए धारा 452 के तहत संबंधित अपराध के स्थान के आधार पर ट्रायल कोर्ट के क्षेत्राधिकार के बारे में स्पष्टीकरण दिया जाए।
- कंपनी अधिनियम, 1956 के पार्ट IXए (उत्पादक कंपनियां) के प्रावधानों को कंपनी अधिनियम, 2013 में शामिल करें।
- राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण की बेंच गठित करें।
- मुनाफे के अपर्याप्त होने की स्थिति में गैर-कार्यकारी निर्देशकों को पर्याप्त पारिश्रमिक का भुगतान करने की अनुमति देने के लिए प्रावधान करें, इसके लिए इन्हें उन प्रावधानों के साथ रखें जो इस तरह के मामलों में कार्यकारी निर्देशकों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक से संबंधित हैं।
- धारा 403(1) के तीसरे प्रावधान के तहत अतिरिक्त उच्च शुल्क लगाने से संबंधित प्रावधानों में ढील दें।
- धारा 446बी (छोटी कंपनियों और एक व्यक्ति वाली कंपनी के लिए अपेक्षाकृत कम पेनाल्टी) को उन सभी प्रावधानों पर लागू करें जिनके तहत मौद्रिक पेनाल्टी लगाई जाती है। यही नहीं, इसका लाभ उत्पादक कंपनियों और स्टार्ट-अप्स को भी दें।
- कुछ विशेष कंपनियों/कॉरपोरेट निकायों को धारा 89 (शेयरों में लाभप्रद रुचि की घोषणा) और अध्याय XXII (भारत के बाहर गठित कंपनियां) की प्रयोज्यता अथवा इसके दायरे से बाहर करें।
- धारा 62 के तहत राइट्स इश्यू में तेजी लाने के लिए समय सीमा कम करें।
- भारतीय रिजर्व बैंक के साथ सलाह-मशविरा कर धारा 117 के तहत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की विशेष श्रेणियों को भी कुछ विशिष्ट प्रस्तावों को दाखिल करने से छूट दें।
- उस प्रारंभिक सीमा को बढ़ाने का अधिकार दें जिसके तहत कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व के प्रावधान लागू हो जाते हैं।
- कुछ विशेष मामलों में वार्षिक रिटर्न और वित्तीय विवरण दाखिल करने में देरी होने पर पेनाल्टी न लगाएं।
इसके अलावा, समिति ने कुछ अन्य मुद्दों पर विचार-विमर्श करते वक्त यह महसूस किया कि इन पर अभी व्यापक सलाह-मशविरा आवश्यक है। समिति ने सिफारिश की कि बाद में इन पर गौर किया जा सकता है:
- अच्छी तरह से गौर करने के बाद क्षेत्रीय निदेशकों के ऑर्डर के खिलाफ राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में अपील करने का प्रावधान किया जा सकता है।
- सेबी के साथ विधिवत सलाह-मशविरा करने के बाद योग्य माने जाने वाले संस्थागत प्लेसमेंट (क्यूआईपी) के लिए प्राइवेट प्लेसमेंट संबंधी कुछ विशेष आवश्यकताओं से छूट दी जा सकती है।
- विधिवत सलाह-मशविरा करने के बाद निदेशकों को अयोग्य ठहराने से संबंधित प्रावधानों की समीक्षा की जा सकती है।
- विधिवत सलाह-मशविरा करने के बाद ऑडिट फर्मों पर रोक लगाने से संबंधित प्रावधानों की समीक्षा की जा सकती है।
समिति की रिपोर्ट की प्रति को कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किया जा रहा है।