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पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जन्म दिवस पर हार्दिक बधाइयाँ

उत्तर प्रदेश

आर्थिक योजनाओं तथा आर्थिक प्रगति का माप समाज के ऊपर की सीढ़ी पर पहुँचे हुए व्यक्ति से नहीं, बल्कि सबसे नीचे के स्तर पर विद्यमान व्यक्ति से होगा! – दीनदयाल उपाध्याय

जगत गुरू भारत वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारण को साकार करेगा!

                दीनदयाल उपाध्याय जी एक दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ थे। इनके द्वारा प्रस्तुत दर्शन को ‘एकात्म मानववाद’ कहा जाता है जिसका उद्देश्य एक ऐसा ‘स्वदेशी सामाजिक-आर्थिक मॉडल’ प्रस्तुत करना था जिसमें विकास के केंद्र में मानव हो। दीनदयाल जी ने पश्चिमी ‘पूंजीवादी व्यक्तिवाद’ एवं ‘माक्र्सवादी समाजवाद’ दोनों का विरोध किया, लेकिन आधुनिक तकनीक एवं पश्चिमी विज्ञान का स्वागत किया। ये पूंजीवाद एवं समाजवाद के मध्य एक ऐसी राह के पक्षधर थे जिसमें दोनों प्रणालियों के गुण तो मौजूद हों लेकिन उनके अतिरेक एवं अलगाव जैसे अवगुण न हो। दीनदयाल जी के अनुसार पूंजीवादी एवं समाजवादी विचारधाराएँ केवल मानव के शरीर एवं मन की आवश्यकताओं पर विचार करती हंै इसलिए वे भौतिकवादी उद्देश्य पर आधारित हैं जबकि मानव के संपूर्ण विकास के लिए इनके साथ-साथ आत्मिक विकास भी आवश्यक है। साथ ही उन्होंने एक वर्गहीन, जातिहीन और संघर्ष मुक्त सामाजिक व्यवस्था की कल्पना की थी।

                आज विश्व की एक बड़ी आबादी गरीबी में जीवन यापन कर रही है। विश्व भर में विकास के कई मॉडल लाए गए लेकिन आशानुरूप परिणाम नहीं मिला। अतः दुनिया को एक ऐसे विकास मॉडल की तलाश है जो एकीकृत और स्थायी हो। एकात्म मानववाद ऐसा ही एक दर्शन है जो अपनी प्रकृति में एकीकृत एवं सतत् है। एकात्म मानववाद का उद्देश्य व्यक्ति एवं समाज की आवश्यकता को संतुलित करते हुए प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना है। यह प्राकृतिक संसाधनों के संतुलित उपभोग का समर्थन करता है जिससे कि उन संसाधनों की पुनः पूर्ति की जा सके।

                एकात्म मानववाद न केवल राजनीतिक बल्कि आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंत्र एवं स्वतंत्रता को भी बढ़ाता है। यह सिद्धांत विविधता को प्रोत्साहन देता है अतः भारत जैसे  विविधतापूर्ण देश के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त है। एकात्म मानववाद का उद्देश्य प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करना है एवं ‘अंत्योदय’ अर्थात समाज के निचले स्तर पर स्थित व्यक्ति के जीवन में सुधार करना है। इस प्रकार यह दर्शन भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में सदैव प्रासंगिक रहेगा। दीनदयाल जी द्वारा दिए गये विचार के आधारित ‘मिशन अंत्योदय’ ग्रामीण क्षेत्रों मे गरीब परिवारों के जीवन में बदलाव और आजीविका उन्नयन के लिए एक मॉडल फ्रेमवर्क है। इसके अंतर्गत राज्य शासन की अगुआई में विभिन्न सहभागी विभागों के समन्वित प्रयासों तथा इन विभागों की प्रचलित योजनाओं व वित्तीय संसाधनों के सामूहिक उपयोग द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों गरीबी कम करने के संदर्भ में वर्ष 2020 तक ठोस परिणाम प्राप्त किये जाने हैं।

दीनदयाल जी जन्म 25 सितम्बर 1916 में श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा के छोटे से गांव ‘नगला चंद्रभान’ में हुआ था। उनके पिता एक ज्योतिषी थे। जब वह तीन साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया और जब 8 साल के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया। वह माता-पिता के प्यार से वंचित हो गये। किन्तु उन्होंने अपने असहनीय दर्द की दिशा को बहुत ही सहजता, सरलता तथा सुन्दरता से लोक कल्याण की ओर मोड़ दिया। भारत माता की सेवा को ही उन्होंने माता-पिता के आशीर्वाद के रूप स्वीकार कर लिया। वह हंसते हुए जीवन में संघर्ष करते रहे।

अति मेधावी तथा बहुमुखी प्रतिभा के धनी दीनदयाल जी को पढ़ाई का शौक बचपन से ही था। इण्टरमीडिएट की परीक्षा में आपने सर्वाधिक अंक प्राप्त कर एक अति मेधावी छात्र होने का कीर्तिमान स्थापित किया। उन्होंने बी.ए. करने के बाद प्रयागराज बीटी करने चले गए। वह जीवनपर्यंन्त अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी व सत्यनिष्ठा को महत्त्व दिया। दीनदयाल जी की मान्यता थी कि हिन्दू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय संस्कृति हैं।

वह उदार तथा खुले मस्तिष्क के राष्ट्रवादी तो थे ही, इसके साथ ही साथ वे भारतीय राजनीति के पुरोधा भी थे। उनकी कार्यक्षमता और परिपूर्णता के गुणों से प्रभावित होकर डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी उनके लिए गर्व से कहते थे कि- ‘यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं’। आपके जुझारू व्यक्तित्व को यह शायरी पूरी तरह से अभिव्यक्त करती है – मंै कतरा हो के भी तूफां से जंग लेता हूं, मुझे बचाना समन्दर की जिम्मेदारी है। दुआ करें सलामत रहे मेरी हिम्मत, यह चराग कई आंधियों पे भारी है।

                विलक्षण बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों के स्वामी दीनदयाल जी देश सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उन्होंने कहा था कि ‘हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत माता है, केवल भारत ही नहीं। माता शब्द हटा दीजिए तो भारत केवल जमीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जाएगा। दीनदयाल जी की एक और बात उन्हें सबसे अलग करती है और वह थी उनकी सादगी भरी जीवनशैली। इतना बड़ा नेता होने के बाद भी उन्हें जरा सा भी अहंकार नहीं था। दीनदयाल जी की गणना भारतीय महापुरूषों में इसलिये नहीं होती है कि वे किसी खास विचारधारा के थे बल्कि उन्होंने किसी विचारधारा या दलगत राजनीति से परे रहकर राष्ट्र को सर्वोपरि माना। पंडित जी का जीवन हमें यह हिम्मत देता है – रख हौंसला वो मंजर भी आयेगा, प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा।

                एकात्म मानववाद के प्रणेता दीनदयाल जी का मानना था कि भारतवर्ष विश्व में सर्वप्रथम रहेगा तो अपनी सांस्कृतिक संस्कारों के कारण। दीनदयाल जी द्वारा दिया गया मानवीय एकता का मंत्र हम सभी का मार्गदर्शन करता है। उन्होंने कहा था कि मनुष्य का शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा ये चारों अंग ठीक रहेंगे तभी मनुष्य को चरम सुख और वैभव की प्राप्ति हो सकती है। उनका कहना था कि जब किसी मनुष्य के शरीर के किसी अंग में कांटा चुभता है तो मन को कष्ट होता है, बुद्धि हाथ को निर्देशित करती है कि तब हाथ चुभे हुए स्थान पर पल भर में पहुँच जाता है और कांटें को निकालने की चेष्टा करता है, यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। सामान्यतः मनुष्य शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा इन चारों की चिंता करता है। मानव की इसी स्वाभाविक प्रवृति को दीनदयाल जी ने एकात्म मानववाद की संज्ञा दी।

डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर दीनदयाल जी ने 21 सितम्बर 1951 को जनसंघ पार्टी की स्थापना की थी। एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान – नहीं चलेंगे’ के नारे गांव-गांव में गूंजने लगे। भारतीय जनसंघ ने इस आंदोलन को समर्थन दिया। भारतीय जनसंघ जो कि बाद में भाजपा बनी और आज विश्व में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है।

यह देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि इस महान देशभक्त का 11 फरवरी 1968 को तत्कालीन मुगलसराय स्टेशन के पास रहस्यमय ढंग से देहान्त हो गया। दीनदयाल जी के जन्मशती वर्ष पर मुगसराय का नाम बदलकर पं0 दीनदयाल जी के नाम उनकी स्मृति में रखा गया था। आप अन्तिम सांस तक जिन्दगी के परम सत्य की खोज में लोक कल्याण से भरे जीवन्त साहित्य की रचना करने तथा उसके अनुरूप एक कर्मयोगी की तरह साकार करने में जुटे रहे। ‘‘न जाने कौन सी दौलत थी उनके लहजे में, वो बोलते थे तो दुनिया खरीद लेते थे’। दीनदयाल जी ने अपने नाम को चरितार्थ करते हुए वह सारी मानवता के दीनदयाल बन गये थे।

देश भर के ग्रामीण परिवारों तक बिजली की पहुंच प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार ने दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना शुरू की है। यह योजना देश गांवों को निर्बाध बिजली उपलब्ध कराने के लिए लाई गई है। इस योजना से ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत वितरण की अवधि में सुधार होगा। इसके साथ ही अधिक मांग के समय में लोड में कमी, उपभोक्ताओं को मीटर के अनुसार खपत पर आधारित बिजली बिल में सुधार और ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की अधिक सुविधा दी जा सकेगी।

दीन दयाल अंत्योदय योजना तथा राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन का लक्ष्य शहरी गरीब परिवारों कि गरीबी और जोखिम को कम करने के लिए उन्हें लाभकारी स्वरोजगार और कुशल मजदूरी रोजगार के अवसर का उपयोग करने में सक्षम करना, जिसके परिणामस्वरूप मजबूत जमीनी स्तर के निर्माण से उनकी आजीविका में स्थायी आधार पर सराहनीय सुधार हो सके। इस योजना का लक्ष्य चरणबद्ध तरीके से शहरी बेघरों हेतु आवश्यक सेवाओं से लैस आश्रय प्रदान करना भी होगा। योजना शहरी सड़क विक्रेताओं की आजीविका संबंधी समस्याओं को देखते हुए उनकी उभरते बाजार के अवसरों तक पहुँच को सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त जगह, संस्थागत ऋण, और सामाजिक सुरक्षा और कौशल के साथ इसे सुविधाजनक बनाने से भी संबंधित है।

                दीनदयाल जी के समाज के अन्तिम व्यक्ति के विकास के सपने को साकार करने के लिए विगत अनेक वर्षों से महान विचारक श्री भरत गांधी संघर्षरत हैं। श्री भरत गांधी के लम्बे संघर्षपूर्ण जीवन तथा वैश्विक तथा मानवीय चिन्तन से वोटरशिप अधिकार के विचार ने जन्म लिया है। संविधान निर्माता डा. अम्बेडकर ने हमें अमीर-गरीब दोनों को एक समान वोट का अधिकार देकर राजनैतिक आजादी तो दे दी लेकिन आर्थिक आजादी के तहत वोटरशिप अधिकार का विचार उनके जेहन में उस समय नहीं आया। इस कारण से समाज में एक ओर खतरनाक हद का पार करती अमीरी दिखती है तो दूसरी ओर भयंकर गरीबी दिखाई दे रही है।

                अन्र्तोंदय के विचार को सारे विश्व में पहुंचाने के लिए श्री भरत गांधी (वर्तमान में विश्वात्मा के नाम से जाने जाते है) पूरा करने के लिए जी-जान से प्रयासरत है। उनके वोटरशिप अधिकार को देश में व्यापक समर्थन मिल रहा है। वोटरशिप अधिकार के अन्तर्गत देश के प्रत्येक वोटर के खाते में कुछ धनराशि सीधे डाली जानी चाहिए। ऐसे करने से बहुत सारी व्यक्तिगत, सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं का हल निकाला जा सकता है। जगत गुरू भारत के इस दिशा में कदम बढ़ने से सारे विश्व को ऐसा करने की अभूतपूर्व प्रेरणा मिलेगी।

                पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल जी के ‘विश्व शांति के हम साधक हैं जंग न होने देंगे, युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे। हम जंग न होने देंगे…! के सपने को सच करने के लिए इस महान दिवस पर हम 130 करोड़ भारतवासियों से यथाशक्ति योगदान देने की मार्मिक अपील करते हंै। हाल के समय में ईरान के विरूद्ध अमेरिका की आक्रामकता तेजी से बढ़ी है और ईरान पर हमले की संभावना भी बढ़ी है। यमन के युद्ध में बहुत से निर्दोष लोग पहले से मारे जा रहे हैं। वेनेजुएला में कुछ समय पहले गृह युद्ध जैसी स्थिति का संकट बन गया था व यह संभावना आज तक बनी हुई है। लीबिया में गृह युद्ध जैसी स्थिति के दुष्परिणाम पड़ोस के उन अफ्रीकी देशों को भी झेलने पड़े हैं जहां पहले ही निर्धनता व अभाव का संकट बहुत गहरा है।

                पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कश्मीर को लेकर आये-दिन परमाणु युद्ध की धमकी देकर विश्व में आतंक फैला रहे हैं। युद्ध के समय कितने इंसान मारे जाते हैं इस पर तो ध्यान दिया जाता है लेकिन कितने पूरी तरह बेगुनाह पशु-पक्षी व अन्य जीव-जन्तु मारे जाते हैं, इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता। युद्ध के विरूद्ध सारे विश्व में प्रबल जनमत तैयार करने की आवश्यकता है। शक्तिशाली भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा।

                दीनदयाल जी का मानना था कि भारत की सांस्कृतिक विविधता ही उसकी असली ताकत है और इसी के बूते पर वह एक दिन विश्व मंच पर अगुवा राष्ट्र बन सकेगा। कई साल पहले उनके द्वारा स्थापित यह विचार आज वल्र्ड लीडर्स के रूप में स्थापित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के द्वारा किये जाने वाले विश्व व्यापी दृष्टिकोण तथा वसुधैव कुटुम्बकम् से ओतप्रोत विचारों में साकार हो रहा है।

                दीनदयाल जी के पग चिन्हों पर चलते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ंने जब से देश की बागडोर अपने हाथों में ली है, तब से भारतीय संस्कृति की शिक्षा को आधार मानते हुए सारे विश्व में इसके प्रसार के लिए वे ‘अग्रदूत’ की भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। श्री मोदी न केवल भारतीय संस्कृति के ज्ञान को माध्यम बनाकर विश्व समुदाय को जीवन जीने का नवीन मार्ग बता रहे हैं, बल्कि भारत को एक बार फिर जगत गुरू के रूप में स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस दृष्टिकोण को श्री मोदी ने ‘माय आइडिया आॅफ इंडिया’ के रूप में कई बार संसार के समक्ष भी रखा है।

आज भारत की सांस्कृतिक विरासत पूरी दुनिया को प्रकाशमान कर रही है और शायद वह दिन दूर नहीं जब भारत विश्व मंच पर पूरी दुनिया को राह दिखाने वाला होगा। आइये, हम सब मिलकर उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम की भारत की अपनी सभ्यता, संस्कृति तथा संविधान के अनुरूप न्याय आधारित वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाने का संकल्प लें।

लेखक प्रदीप कुमार सिंह
पंजीकृत उ प्र न्यूज फीचर्स एजेन्सी

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