New Delhi: The Vice President of India, Shri M. Venkiah Naidu has said that connecting common man with the developmental journey of the country is crucial to build a strong nation. He was addressing the gathering after releasing the book titled “Ankaha Lucknow’ authored by Shri Lalji Tandon, in Lucknow, Uttar Pradesh today. The Governor of Uttar Pradesh, Shri Ram Naik, the Chief Minister of Uttar Pradesh, Yogi Adityanath, the Union Minister for Home Affairs, Shri Rajnath Singh, the Deputy Chief Ministers of Uttar Pradesh, Dr. Dinesh Sharma and Shri Keshav Prasad Maurya, and other dignitaries were present on the occasion.
The Vice President said that Shri Tandon has dedicated his life to Lucknow and made valuable contributions in the in developing the city in terms of economy, literarcy, cultural aspects. He also appreciated him for continuing former Prime Minister Shri Atal Bihari Vajpay’s literary legacy.
The Vice President termed the book Ankaha Lucknow as a great example of folk history writing. He urged citizens of Lucknow to revive their tradition and put in collaborative efforts in enhancing the legacy of the great city.
The Vice President said that everyone must be aware of the great traditions, glorious heritage and priceless heritage of the country so that the country can move forward on the path of desirable progress.
The Vice President said that taking development to the poorest of the poor is crucial to realise the Antyodaya dream of Deendayal Upadhyay ji.
“एक राजनैतिक कार्यकर्ता के रूप में मुझे लाल जी टंडन के साथ कार्य करने का अवसर कई बार मिला, किंतु उनके’लखनऊ निष्ठ’, और अवध के ‘संस्कृति पुरुष’ रूप से मेरा परिचय इस पुस्तक के माध्यम से ही हुआ है। हांलाकि जैसाकि हम सभी जानते हैं कि टंडन जी ने अपना जीवन लखनऊ के सामाजिक, आर्थिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक विकास मेंसमर्पित कर बहुमूल्य योगदान दिया है, जिसको समाज के सभी वर्गों ने सराहा है। टंडन जी के विशाल व्यक्तित्व के इसपहलू से हमें परिचित कराने के लिए मैं पुस्तक के संपादक श्री विनय जोशी और दिग्दर्शन प्रकाशन और टंडन जी कोशुभकामनायें एवं बधाई देता हूँ।
लखनऊ हमारे लोकप्रिय नेता पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल जी का कार्यक्षेत्र रहा है। टंडन जी की भांति हम सबको भी अटलजी का सान्निध्य और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ किंतु टंडन जी ने अटल जी के लखनऊ और उनकी साहित्य विरासत को भीअपनाया और समृद्ध किया है, इसके लिए भी मैं टंडन जी को शुभकामनायें देता हूँ।
मित्रों, इतिहास संग्रहालय(Museum) में ही नहीं अपितु जीवंत समाज की परंपराओं में बसता है। प्राय: इतिहाससामाजिक और राजनैतिक संघर्षों का दस्तावेज होता है। साझी सृजनात्मकता, सांस्कृतिक उत्कर्ष, सामुदायिक जीवनये विषय इतिहास में कहीं खो जाते हैं और इतिहास राजाओं और अभिजात्य जीवन का एक दस्तावेज बन कर रह जाताहै। इतिहास लेखन की इस प्रवृत्ति पर टंडन जी ने सटीक टिप्पणी की है – “इतिहासकारों की कृपादृष्टि रंगमहल कीकहानियों, बेगमों की कोठियों और षड़यंत्रों के प्रकारों, अय्याशियों पर केन्द्रित हो जाने से विशेषताओं से भरे लखनऊ कीविशेषताएं न जाने कहां दब गयीं और सामने आ खड़ी हुई विलासिता, कुटिलता, कुछ चंद इमारतें, कुछ चंद लोग।”
हाल के वर्षों में लोक परंपराओं, कथानकों, किंवदंतियों, आस्थाओं और विश्वासों पर आधारित लोक इतिहास लेखन कीपरंपरा प्रारंभ हुई है। यद्यपि इतिहासकारों में लोक इतिहास की स्वीकार्यता पर मतभेद हैं फिर भी लोक इतिहास, इतिहास लेखन की एक महत्वपूर्ण विधा है जो आम नागरिक के सरोकारों, उसके विश्वासों और चिंतन पर आधारित है।अत: लोक इतिहास सामाजिक जीवंतता और सृजनात्मकता का इतिहास है।
टंडन जी की पुस्तक लोक इतिहास लेखन का एक बेहतरीन उदाहरण है। लखनऊ को अवध की गंगा-जमनी तहजीब केकेंद्र के रूप में जाना जाता है। यह शहर सांस्कृतिक सौहार्द का अनूठा उदाहरण है, एक जागरूक नागरिक के रूप में टंडनजी ने इस शहर की समृद्ध परंपरा को जिया है। अपने लखनवी अनुभव के बारे में टंडन जी खुद लिखते हैं, ”………..जबबीते 80 वर्षों के एक-एक कदम को जोड़ता हूँ और जीवनभर जो देखा, सुना, समझा, भोगा उसको एक सूत्र में पिरोता हूँतो एक ऐसे अनंत प्रवाह में खुद को पाता हूँ जहाँ न पूर्वाग्रह है, न जाने-अनजाने चली आयीं संकीर्णतायें और न ही कोईदुराव, छिपाव है। जीवन के अनुभव रस के इस निर्मल प्रवाह ने ही मुझे लखनऊ के पवित्र स्वरूप को आत्मसात करने कीताकत दी।” एक नागरिक के रूप में टंडन जी के जीवन पर इस शहर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का कितना गहराप्रभाव है, यह बखूबी दर्शाता है।
टंडन जी ने इस पुस्तक को अवध के ‘आनंद-भाव’ को समर्पित किया है। इस पुस्तक के आरंभ में ही उन्होंने ‘छांदोग्यउपनिषद्’ के श्लोक को उद्धृत किया है जिसमें ईश्वर को आनंद-स्वरूप माना गया है। मेरा मानना है कि आदर्श नागरिकअपने समाज, संस्कार और परिवेश को ईश्वर रूप में पूजता है और नागरिक धर्म का पालन करता है। अवध की आनंदसंस्कृति के वाहक टंडन जी ने इस पुस्तक के माध्यम से अवध को ईश्वरत्व प्रदान किया है।
इस पुस्तक के द्वारा टंडन जी ने लखनऊ की इसी आनंद संस्कृति से परिचय कराया है। उनको ऐसा लगा कि लखनऊका परिचय सिर्फ नवाबी शानो शौकत और तहजीब तक सीमित रह गया है। इसलिए अवध के लंबे इतिहास के असीमितआयामों से लोगों का परिचय कराना ही इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है। टंडन जी ने लिखा भी है, “……जिस अवध मेंआम आदमी को प्रमुखता हासिल रही, तो उस 99 फीसदी जनता को क्या इतिहास में कोई स्थान नहीं देंगे।”
आम आदमी का इतिहास तथा अवध की संस्कृति में आम आदमी को केंद्र बिन्दु बनाकर, यही इस पुस्तक की प्रेरणा रहीहै। लखनऊ के इसी लोक चरित्र का चित्रण भी टंडन जी ने चार पंक्तियों में किया है –
“लखनऊ एक शहर और बाजार नहीं,
ये गुम्बद-ए-मीनार नहीं,
इसकी गलियों में मोहब्बत के फूल खिलते हैं
इसके कूचों में फरिश्तों के पते मिलते हैं।”
इस पुस्तक में लखनवी तहजीब को नवाबों के महलों से बाहर लखनऊ की गलियों और मोहल्लों में ढूँढ़ा गया है। यही इसपुस्तक की सार्थकता है।
मित्रों, मेरा भी मानना है कि एक आम आदमी को जब हम देश की विकास यात्रा से जोड़ेंगे, तभी हम एक मजबूत राष्ट्रका निर्माण कर सकते हैं। और मुझे इस बात का बेहद संतोष है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस दिशा में प्रयासरत हैंताकि गरीब से गरीब और विकास की पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति का कल्याण हो सके और दीनदयाल उपाध्याय जीकी अन्त्योदय की सोच को हम साकार कर सकें।
इस पुस्तक में राम के अवध की लक्ष्मणपुरी से लखनौती और फिर लखनऊ तक के उत्कर्ष को 13 विभिन्न आयामों मेंविस्तृत कर के 34 अध्यायों में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें लखनऊ के नागरिकों की आस्था और सौहार्द, लखनऊ केआनंद और मनोरंजन, लखनऊ के सांस्कृतिक उत्कर्ष में गोमती नदी का महत्व, लखनऊ के प्राचीन मंदिर, बाग औरइमारतें, उसका नवाबी इतिहास, आज़ादी की लड़ाई में आम लोगों की भागीदारी, लखनऊ की बेमिसाल सहिष्णुता आदिको सम्मिलित किया गया है।
पुस्तक के अध्याय “शौर्य की भूमि” में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लखनऊ के आम नागरिक के शौर्य काविस्तृत विवरण है। यह इतिहास का अन्याय ही है कि लखनऊ की नवाबी तहजीब को ही प्रमुखता दी गई, लेकिनलखनऊ के अनजान आम नागरिकों की शौर्य गाथा को गौण रखा गया। नवाबी विलासिता किंवदतिंयों का विषय बनगई पर अनाम वीर इतिहास में भुला दिये गये। टंडन जी ने उदा देवी और राजा जियालाल जैसे वीरों के स्मारक स्थापितकरवाये और लखनऊ के इतिहास में उन्हें समुचित सम्माननीय स्थान दिया। यह टंडन जी की देश की आजादी कीलड़ाई में आम नागरिकों की भूमिका और उनके बलिदान के प्रति सच्ची श्रद्धा और उनकी इतिहास निष्ठा को दर्शाता है।
पुस्तक में एक स्थान पर लखनऊ के सामान्य नागरिकों में स्वच्छता की आदत का जिक्र भी किया है कि किस प्रकारलखनऊ निवासी सुबह अपने घरों के आसपास के परिवेश को साफ करते थे; किस प्रकार मल्लाह गोमती को निर्मलरखने में सहयोग करते थे तथा किस प्रकार कुओं और जल स्रोतों में कोयला और आंवला डाल कर, उन्हें साफ कियाजाता था।
मित्रों, तीन टीलों और अस्सी गांवों का लखनऊ आज एक महानगर है। देश के बड़े राज्य की राजधानी है। इसके क्षेत्र मेंउत्तरोत्तर विस्तार हुआ है। यहाँ पर परम्परा और आधुनिकता का समृद्ध सामंजस्य रहा है। आधुनिक लखनऊ आजएक स्मार्ट सिटी बन रहा है। लेकिन स्मार्ट सिटी होने के साथ स्वच्छता भी आवश्यक है। जिस शहर में नागरिकों नेसफाई को सांस्कृतिक परंपरा के रूप में अपनाया हो, वह शहर स्वच्छता सर्वेक्षण में 269 वें स्थान पर रहे, यह बात लालजी टंडन जैसे ‘लखनऊ-निष्ठ’ नागरिकों को स्वीकार नहीं होगी, विशेषकर आज जब स्वच्छता अभियान पूरे देश में एकआन्दोलन का रूप ले रहा है। अत: मैं शहर के नागरिकों से आग्रह करूँगा कि वे अपनी परंपरा को पुनर्जीवित करें और इसमहान शहर को स्वच्छ बनाने में परस्पर सहयोग करें।
लखनऊ सौहार्द, इल्मी-तहजीब, शिक्षा और आध्यात्मिकता का केंद्र रहा है।राम के अवध ने नागरिकों, सूफीसंतों, साधुओं, संन्यासियों, नानकशाही संगतों और चर्चों का सम्मान और आदर किया है। यह भूमि अमृतलाल नागर, भगवतीचरण वर्मा, पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों की रही है। शहर की समृद्ध साहित्यिक परंपरा है।साम्प्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता और कटुता लखनऊ के मिजाज में नहीं है। यह शहर ‘सर्वधर्म समभाव’ की बेजोड़ मिसाल है। यहाँ के प्रख्यात बुद्धिजीवी मुंशी नवल किशोर ने एशिया की पहली प्रिंटिंग प्रेस स्थापित की जहाँ हिंदू धार्मिक ग्रंथों को उर्दू और फारसी में अनुवाद करा कर प्रकाशित किया गया। यहाँ अवध की बेगम ने पुत्र जन्म पर हनुमान मंदिरका निर्माण कराया और हनुमान के नाम पर अपने बेटे का नाम ही ‘मिर्जा मंगलू’ रख दिया। यहाँ मुहर्रम के ताजियाजलूसों में पारंपरिक रूप से हिंदू भी श्रद्धापूर्वक शिरकत करते हैं तो वहीं मुस्लिम कलाकार जन्माष्टमी उत्सव में भागलेते हैं।
सांप्रदायिक सौहार्द जिस शहर की जीवंत परंपरा रही हो, जहाँ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में हिंदू और मुस्लिम आमनागरिकों ने बेगम हजरत महल के नेतृत्व में अंग्रेजों से लोहा लिया हो, जहाँ अकेली वीरांगना उदा देवी ने 27 अंग्रेजों कोढेर किया हो और जहाँ राजा जियालाल जैसे वित्त मंत्री ने अपने बेटे का बलिदान देकर भी राज्य के खजाने को अंग्रेजोंद्वारा लूटे जाने से बचाया, वहाँ बाद के वर्षों में सांप्रदायिकता वैमनस्य का विष फैलने से इस शहर और देश को भारीनुकसान उठाना पड़ा।
मित्रों, यह संतोष का विषय है कि विभाजन के बाद भी लखनऊ ने अपनी तहज़ीब और धार्मिक सौहार्द को बनाये रखा है।इस सहृदय शहर ने बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आये लोगों को सहारा दिया, जिनमें सुनील दत्त और राजेंद्र कुमार जैसेमशहूर अभिनेता भी थे। इस शहर को प्रख्यात संगीतकार नौशाद साहब और कृष्ण बिहारी नूर जैसे साहित्यकारों नेसौहार्दता का संस्कार दिया है।
लखनऊ हुनरमंद शिल्पकारों की नगरी है जिन्होंने इस शहर की शोहरत में वृद्धि की। इस पुस्तक में टंडन जी ने शहर की साहित्यिक विधाओं जैसे किस्सागोई और ख्यालगोई का जिक्र भी किया है। वस्तुत: यह पुस्तक लखनऊ के इन्हीं हुनरमंद आम नागरिकों की जीवंतता को समर्पित है।
यह पुस्तक अवध के बारे में एक आवश्यक संदर्भ ग्रंथ है जो पाठकों को अवध के आम जीवन के विभिन्न आयामों सेपरिचित करायेगी। टंडन जी ने स्वयं ईमानदारी से स्वीकार भी किया है कि “अवध के इतिहास के बारे में मेरी जो राय हैवह किसी इतिहासकार की नहीं बल्कि एक संवेदनशील लखनऊवासी की है।” टंडन जी अवध के इतिहास को यहाँ के जनसामान्य की धरोहर मानते हैं और इस पुस्तक की रचना उन्होंने इसी धरोहर के वारिस के रूप में की है।
मित्रों, हमारे देश की प्राचीनकाल से ही एक महान सभ्यता और समृद्ध संस्कृति के रूप में पूरे विश्व में एक विशेष पहचान रही है, जो हम सभी के लिए गर्व का विषय है। इसलिए यह जरूरी है कि हम अपनी महान परम्पराओं, शानदार विरासतऔर अमूल्य धरोहरों के प्रति जागरूक रहें और उसे कायम रखें ताकि देश वांछनीय प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ सके।टंडन जी का यह प्रयास इस दिशा में एक प्रशंसनीय कदम है और मैं आशा करता हूँ कि उनका यह प्रयास पाठकों औरशोधकर्ताओं को अवध के बारे में और जानने के लिए प्रेरित करेगा। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मैं इस पुस्तक कालोकार्पण करता हूँ और अवध की तहजीब के वाहक हर लखनऊवासी का अभिनंदन करता हूँ।