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पादप आनुवांशिक संसाधनों का संरक्षण मानवता की साझा जिम्‍मेदारी है: नरेन्‍द्र सिंह तोमर

देश-विदेश

नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) मुख्‍यालय, रोम में बीज संधि का उद्घाटन करते हुए भारत में किसान अधिकारों के बारे में विशिष्‍ट कानून के बारे में दुनिया को जानकारी दी। श्री नरेंद्र सिंह तोमर, केंद्रीय कृषि मंत्री, भारत सरकार ने रोम, इटली में खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवांशिक संसाधनों की अंतर्राष्ट्रीय संधि (आईटीपीजीआरएफए) के आठवें सत्र का उद्घाटन करते हुए 150 देशों के प्रतिनिधियों को सूचित किया कि पादप आनुवंशिकी संसाधनो का संरक्षण “मानवता की साझा जिम्मेदारी” है।

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   श्री तोमर ने कहा, “मैं उन देशों का भी प्रतिनिधित्व करता हूँ जहाँ खेती सामाजिक-अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जहां फसल की जैव विविधता जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और जिस देश के किसानों ने ऐसे फसल आनुवंशिक संसाधनों का निर्माण किया है जो दुनिया में प्रजनन का आधार बनते हैं”।

आईटीपीजीआरएफए जिसे बीज संधि के रूप में भी जाना जाता है, खाद्य और कृषि के लिए दुनिया के पादप आनुवंशिक संसाधनों (पीजीआरएफए) के संरक्षण, विनिमय और स्थायी उपयोग के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। साथ ही साथ यह इसके उपयोग से उत्पन्न होने वाले उचित और न्यायसंगत लाभ को साझा करता है। यह राष्ट्रीय कानूनों के अधीन किसानों के अधिकारों को भी मान्यता देता है। शासी निकाय (उच्चतम निकाय) सत्र द्विवार्षिक हैं और 8वें सत्र में 146 अनुबंधित पार्टियां, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, सिविल सोसाइटीज, किसान संगठनों, एफएओ के अधिकारियों और संयुक्त राष्ट्र संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। उद्घाटन समारोह में सुश्री टेरेसा बेलानोवा, कृषि मंत्री, इटली, मारिया हेलेना सेमेदो, उप महानिदेशक, एफएओ, सुश्री इरेन हॉफमैन, सचिव, खाद्य और कृषि के लिए आनुवंशिक संसाधनों पर आयोग ने भी भाग लिया। संयुक्त राज्य अमेरिका से सुश्री क्रिस्टीन डॉसन जो संधि की वर्तमान अध्यक्ष हैं, ने भी भाग लिया।

     कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने आगे स्पष्ट किया कि “खाद्य सुरक्षा की कीमत पर कोई समझौता संभव नहीं है”। सभी अंतर्राष्‍ट्रीय मंचों को यह नहीं भूलना चाहिए कि खाद्य सर्वोच्‍च मौलिक अधिकार है। विकसित देशों में “किसान उत्‍पादित खाद्य का अधिकार” सुनिश्‍चित करने की आवश्‍यकता है, इससे कभी भी समझौता नहीं किया जा सकता। समाज ने आदिकाल से प्‍लान्‍ट जेनेटिक संसाधनों के अस्‍तित्‍व को अक्षुण्‍य रखा है और अब यह उत्‍तरदायित्‍व हमारा है।

     किसानों के अधिकारों और पादप प्रजनको के अधिकारों की रक्षा के लिए भारतीय कानून “पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण (पीपीवीएंडएफआर) अधिनियम” की विशिष्टता के बारे में प्रतिनिधियों को सूचित करते हुए उन्होंने कहा, भारतीय कानून में, एक किसान को पीपीवीएंडएफआर अधिनियम 2001 के तहत ब्रांड नेम को छोड़कर संरक्षित प्रजाति के बीजों सहित उनको बचाकर रखने, इस्तेमाल करने, बोने, पुन: उनकी बुवाई करने, आदान प्रदान करने, आपस में बांटने अथवा बेचने का अधिकार प्राप्त है और हमारा विधान संधि के अनुच्छेद 9 के लिए पूरी तरह से अनुपालन करता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत, 138 किसानों / कृषक समुदायों को पादप जिनोम रक्षक पुरस्‍कार से सम्मानित किया गया है। भारत को पादप प्रजाति संरक्षण के लिए लगभग 16620 आवेदन प्राप्‍त हुए हैं जिनमें से 10920 (66) प्रतिशत केवल किसानों से प्राप्‍त हुए हैं। इसके अलावा पीपीवीएंडएफआर प्राधिकरण में लगभग 3631 प्रजातियों को पंजीकृत किया गया है जिनमें से 1597 (44 प्रतिशत) किसानों से संबंधित है।

    अनुबंधित पार्टियों को किसानों के अधिकारों पर तदर्थ तकनीकी विशेषज्ञ समूह (एएचटीईजी) द्वारा विकसित एक सूची (इनवेंटरी) का लाभ उठाना चाहिए जिसमें किसानों के अधिकारों के कार्यान्वयन में राष्ट्रीय उपाय शामिल हैं। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवांशिक संसाधनों की अंतर्राष्ट्रीय संधि के शासी निकाय के 7 वें सत्र के दौरान गठित एएचटीईजी में दो सह-अध्यक्ष थे और जिनमे से एक पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीवीएंडएफआर) के प्रतिनिधि (डॉ. आर.सी.अग्रवाल, रजिस्ट्रार जनरल) थे।

     उन्होंने आगे संधि की प्रासंगिकता पर “आनुवंशिक अनुक्रम सूचना” के समझौते को स्वीकार करने और बातचीत में “क्‍यों” के स्‍थान पर “कैसे करना है” का आग्रह किया। उन्होंने यह भी घोषणा की कि भारत 2021 में शासी निकाय के 9 वें सत्र की मेजबानी करेगा।

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