नई दिल्ली: केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने भू-जल के उपयोग में संयम बरतने की अपील की है। नई दिल्ली में आज अपने मंत्रालय की संसदीय परामर्श समिति की बैठक में मंत्री महोदया ने कहा कि देश के बड़े हिस्से में व्यापक पैमाने पर भू-जल का बिना सोचे समझे उपयोग करने से जलस्तर में काफी कमी आई है और जल की गुणवत्ता पर भी बुरा असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि कृषि, औद्योगिक उपयोग और पेयजल के लिए भू-जल की मांग बढ़ने, फसल के तरीकों में बदलाव और अधिक पानी की खपत वाली धान और नकदी फसलों को उगाने, शुष्क और अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में वर्षा की कमी, सूखे के दौरान अन्य सभी संसाधनों के कम होने पर भू-जल का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल और तेजी से शहरीकरण होने के परिणामस्वरूप प्राकृतिक पुनर्भरण के लिए जलदायी स्तर में तेजी से कमी आयी है, जो भू-जल स्तर में कमी के लिए जिम्मेदार है। मंत्री महोदया ने प्रधानमंत्री के पानी की प्रत्येक बूंद बचाने की अपील का उल्लेख करते हुए सभी सांसदों से अनुरोध किया है कि वे नरेन्द्र मोदी जी के जल बचाव अभियान में अपना सहयोग दें। उन्होंने कहा कि हमें वर्षा जल संचयन के इस अभियान को जन-जन तक पहुंचाना होगा, तभी “पर ड्रॉप मोर क्रॉप” का हमारा नारा सफल होगा।
स्थिति को गंभीर बताते हुए सुश्री भारती ने भू-जल के उपयोग में संयम बरतने के लिए जन जागरूकता आंदोलन का आह्वान किया है। मंत्री महोदया ने सदस्यों को जानकारी दी कि केंद्रीय भू-जल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने पिछले 10 वर्षों में जलस्तर में उतार-चढ़ाव का आकलन करने के लिए जलस्तर में बदलाव का दशकीय विश्लेषण किया गया। मॉनसून पूर्व (मार्च/अप्रैल/मई 2016) जलस्तर के आंकड़ों की दशकीय औसत (2006-2015) के साथ तुलना करने पर पाया गया कि अरूणाचल प्रदेश, गोवा, पांडिचेरी,तमिलनाडु और त्रिपुरा को छोड़कर देश के लगभग सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 50 प्रतिशत से अधिक कुंओं में ज्यादातर 0-2 मीटर तक भू-जल स्तर में कमी दर्ज की गयी। आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, दादरा और नागरहवेली, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा,कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के इलाकों में चार मीटर से अधिक की कमी देखी गई।
मंत्री महोदया ने बताया कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में भू-जल संसाधनों का विकास एकसमान नहीं है। देश के कुछ क्षेत्रों में भू-जल के उच्च सघन विकास के परिणामस्वरूप भू-जल का अधिक उपयोग किया गया, जिससे भू-जल स्तर में कमी आई है। 2011 में सीजीडब्ल्यूबी और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से कराये गये भू-जल संसांधनों के ताजा आंकलन के अनुसार देश का कुल वार्षिक पुनर्भरण भू-जल संसाधन अनुमानित 433 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है। कुल वार्षिक भू-जल उपलब्धता 398 बीसीएम आंकी गई है। 2011 के लिए पूरे देश का वार्षिक भू-जल खाका प्रतिवर्ष 245 बीसीएम आंका गया है। भू-जल विकास की स्थिति 62 प्रतिशत है।
सुश्री भारती ने कहा कि भू-जल संसाधनों की सतत् उपयोगिता हासिल करने के लिए विकास गतिविधियों को प्रबंधकीय प्रक्रियाओं द्वारा संतुलित बनाये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा ‘विभिन्न जलीय भूगर्भीय स्थिति के तहत भू-जल विकास और प्रभावी प्रबंधकीय तरीके इजाद करने में वैज्ञानिक योजना की आवश्यकता है’। देश में भू-जल से संबंधित संगठनों के लिए भू-जल प्रबंधन सबसे बड़ी चुनौती है। सुश्री भारती ने कहा कि भू-जल आवश्यकता को प्रभावित करने वाले संगठनों और नीतियों की गतिविधियां प्राथमिकता वाले मुद्दों में परिलक्षित होने की आवश्यकता है जिसका उद्देश्य देश के प्रमुख इलाकों में भू-जल प्रबंधन के जरिये पानी सुरक्षा प्रदान करना है। मंत्री महोदया ने कहा कि भूजल प्रबंधन से जुड़े विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों की पहचान करने में केंद्रीय भूजल बोर्ड ने सक्रिय भूमिका निभायी है। उन्होंने कहा कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में भूजल संसाधनों के प्रबंधन में क्षेत्र विशेष और समस्या विशेष के आधार पर मिली-जुली रणनीति बनाने की आवश्यकता है।
जल संसाधन मंत्री ने कहा कि भू-जल संसाधनों में आ रही गिरावट को रोकने में महत्वपूर्ण प्रबंध के लिए भू-जल तथा वर्षा जल संचय को कृत्रिम रूप से रि-चार्ज करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने देश के विभिन्न हिस्सों में वर्षा जल संचय उपायों को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। उन्होंने सदस्यों को बताया कि उनके मंत्रालय ने सभी राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों को मॉडल बिल भेजा है ताकि राज्य भू-जल के नियमन और विकास के बारे में उचित कानून बना सके। इनमें वर्षा जल संचय का प्रावधान शामिल है। अब तक 15 राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों ने मॉडल बिल का अनुसरण करते हुए भू-जल कानून बनाया और लागू किया है। सुश्री भारती ने कहा कि सीजीडब्ल्यूबी ने भी ‘भारत में भू-जल को कृत्रिम रूप से रिचार्ज करने के लिए मास्टर प्लान’ का प्रारूप तैयार किया है। इसे तैयार करने में भू-जल विज्ञानिकों और विशेषज्ञों को शामिल किया गया है। मास्टर प्लान में देश में 79,178 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से वर्षा जल संचय तथा कृत्रिम रिचार्ज की अवसंरचना सुविधा तैयार करने का प्रावधान है ताकि 85 बिलियन क्यूबिक मीटर जल का उपयोग हो सके। सुदृढ किए गए भू-जल संसाधनों से पेयजल, घरेलू, औद्योगिक तथा सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता बढ़ेगी।
सुश्री भारती ने कहा कि केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों को भू-जल/वर्षा जल संचय के लिए कृत्रिम रिचार्ज प्रणाली को प्रोत्साहन देने और अपनाने का निर्देश दिया है। 30 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में वर्षा जल संचय को कानूनी रूप से बिल्डिंग बाईलॉज में आवश्यक बना दिया है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्री ने कहा कि हमारी सरकार ने सभी हितधारकों को शामिल करते हुए समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से देश में जल संरक्षण और प्रबंधन को मजबूत करने के लिए जल क्रांति अभियान की शुरूआत की है जिसने एक जन आंदोलन का रूप ले लिया है। उन्होंने कहा कि जल क्रांति का उद्देश्य जल सुरक्षा और विकास योजनाओं में पंचायती राज संस्थानोँ और स्थानीय निकायों सहित सभी हितधारकों की जमीनी स्तर पर भागीदारी को सुनिश्चित करना है।
सुश्री भारती ने कहा कि जल राज्यों का विषय है और भू-जल के उपयोग के नियमन के संबंध में उचित कानून बनाने का दायित्व संबंधित राज्य सरकारों का है। उन्होंने बताया कि 16 अन्य राज्य/केन्द्रशासित प्रदेशों ने मॉडल बिल को अपनाने और लागू करने की दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया है।