नई दिल्ली: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने स्कूली बच्चों में जंक फूड की खपत और उसकी उपलब्धता की जांच करने के लिए एक समिति का गठन किया था। समिति ने बच्चों में बढ़ती मोटापे की समस्या के संबंध में जांच की है और अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी है। मंत्रालय ने राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद के निदेशक की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था, ताकि बच्चों की पहुंच के अंदर स्थित विभिन्न स्थानों पर बिकने वाले जंक फूड की उपलब्धता से संबंधित विषयों का अध्ययन किया जा सके। समिति में नीति आयोग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, आयुष विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारतीय मानक ब्यूरो, एफएसएसएआई, राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान, आईसीएमआर के प्रतिनिधि तथा पोषण एवं क्लीनिकल मनोविज्ञान/व्यवहार विज्ञान के विशेषज्ञ सदस्य हैं। समिति ने इस सप्ताह अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
समिति के सदस्यों ने बच्चों में बढ़ते मोटापे की घटनाओं और मधुमेह, उच्च रक्त चाप आदि संबंधी तमाम मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बच्चों में मनोवैज्ञानिक/व्यवहारिक गड़बड़ियों के नतीजों पर विस्तार से विचार व्यक्त किए हैं। इन गड़बड़ियों के कारण बच्चों में जंक फूड खाने, शरीर को कम पोषण मिलने और उनका आत्मविश्वास कम होने जैसी समस्याएं पैदा होती हैं।
समिति ने 23 देशों में जंक फूड के नियमन संबंधी कानूनों की समीक्षा की और इस बात की भी जांच की कि इस संबंध में भारत में क्या कानूनी उपाय उपलब्ध हैं। उनके अध्ययन के आधार पर कई सिफारिशें की गई हैं। समिति ने बच्चों के परिप्रेक्ष्य में जंक फूड की एक समेकित परिभाषा तैयार की है और सुझाव दिया है कि जो भी खाद्य सामग्री जंक फूड की परिभाषा में आती हों उन्हें स्कूल की कैन्टीनों में प्रतिबंधित कर दिया जाए। समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि जंक फूड की बिक्री करने वालों और खोमचे वालों को स्कूल के समय के दौरान और स्कूल से 200 मीटर के दायरे में इन्हें बेचने की अनुमति न दी जाए। समिति का सुझाव है कि उन दुकानों और रेस्त्रां को स्कूल से 200 मीटर के दायरे में जंक फूड उन बच्चों को बेचने से रोका जाए जो स्कूल की यूनीफॉर्म में हों। स्कूल कैन्टीनों को स्वीकृत खाद्य सामग्री की सूची उपलब्ध कराने का सुझाव भी दिया गया है। यह सुझाव भी दिया गया है कि पैकेट बंद खाद्य सामग्री पर इस आशय का लेबल चिपकाया जाए जिसमें यह लिखा हो कि यह खाद्य सामग्री “शिशुओं/बच्चों/गर्भवती और दुग्धपान कराने वाली माताओं तथा निर्दिष्ट बीमारियों से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए अनुपयुक्त” है।
स्कूली स्वास्थ्य कार्ड को दुरुस्त करने के संबंध में भी सिफारिशें की गई हैं और यह कहा गया है कि स्कूल स्वास्थ्य कार्ड में पोषण संबंधी पक्ष भी जोड़ा जाए तथा स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम का नाम बदलकर स्कूल स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यक्रम किया जाए। समिति ने स्कूल कैन्टीन के प्रबंधन और स्थापना संबंधित विस्तृत सिफारिशें की हैं और कहा है कि इस संबंध में विभिन्न हितधारक मंत्रालयों को संयुक्त रूप से इस अभियान का प्रोत्साहन और प्रचार करना चाहिए। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय रिपोर्ट का अध्ययन कर रहा है।