ब्रह्मांडीय अंतरिक्ष में उच्च ऊर्जा के कण आम तौर पर कम संख्या में होते हैं। लेकिन इलेक्ट्रॉनों के समकक्ष एंटीमैटर के उच्च ऊर्जा वाले कणों, जिन्हें पॉज़िट्रॉन कहा जाता है, की अधिक संख्या ने लंबे समय से वैज्ञानिकों को भ्रमित किया हुआ था। लेकिन अब उन्हें इस रहस्य का स्पष्टीकरण मिल गया है।
अनस्प्लाश के माध्यम से नासा द्वारा तस्वीर
वर्षों से खगोलविदों ने इलेक्ट्रॉन के समकक्ष एंटीमैटरया पॉज़िट्रॉन की अधिकता का अवलोकन किया है जिसमें 10 गीगा-इलेक्ट्रॉनवोल्ट्स या 10 जीईवी से अधिक की ऊर्जा होती है। एक अनुमान के अनुसार, यह 10,000,000,000 वोल्ट की बैटरी में धनात्मक रूप से आवेशित एक इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा है! हालांकि, 300 से अधिक जीईवी ऊर्जा वाले पॉज़िट्रॉन की संख्या खगोलविदों द्वारा अनुमान की गई संख्या की तुलना में कम है। 10 और 300 जीईवीके बीच की ऊर्जा वाले पॉज़िट्रॉन के इस व्यवहार को खगोलविद’पॉज़िट्रॉन अतिरेक’ कहते हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के बेंगलुरु स्थित एक स्वायत्त संस्थान, रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई), के शोधकर्ताओं ने जर्नल ऑफ़ हाई एनर्जीएस्ट्रोफिजिक्स में प्रकाशित एक नए शोध में इस रहस्य को सुलझाया है। उनका प्रस्ताव सरल है-मिल्की वे आकाशगंगा से गुजरते हुए कॉस्मिक किरणें उन पदार्थों से अंतःक्रिया करती है, जो अन्य कॉस्मिक किरणों, मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनों और पॉज़िट्रॉन, का उत्पादन करती हैं। इस शोध – प्रबंध के लेखक अग्निभा डे सरकार, सायन विश्वास और नयनतारा गुप्ता का तर्क है कि ये नई कॉस्मिक किरणें ‘पॉज़िट्रॉन अतिरिक्त’ प्रक्रिया की मूल हैं।
मिल्की वे में आण्विक हाइड्रोजन के विशाल बादल होते हैं। वे नए तारों के गठन की जगहें हैं और ये तारे सूर्य के द्रव्यमान से 10 मिलियन गुना बड़े आकार के हो सकते हैं। वे 600 प्रकाश-वर्ष की दूरी तक विस्तार कर सकते हैं। यानि इस दूरी को तय करने में प्रकाश को 600 वर्ष लगेंगे। सुपरनोवा विस्फोटों में उत्पन्न होने वाली कॉस्मिक किरणें पृथ्वी तक पहुंचने से पहले इन बादलों से होकर गुजरती हैं। कॉस्मिक किरणें आण्विक हाइड्रोजन के साथ अंतःक्रिया करती हैं और अन्य कॉस्मिक किरणों को जन्म दे सकती हैं। जब ये किरणें इन बादलों से होकर गुजरती हैं, तो उनका अपने मूल रूप से क्षय होता है और आपस में मिश्रण होता है और वे बादलों को ऊर्जा से लैस करके अपनी ऊर्जा खो देती हैंऔर दोबारा से सक्रिय हो सकती हैं। आरआरआई के शोधकर्ताओं ने खगोल भौतिकी से जुड़ी इन सभी प्रक्रियाओं का अध्ययन उस कोड के जरिए किया, जिसे उन्होंने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कोड का उपयोग करके कंप्यूटर में स्थापित किया था।
ये कोड मिल्की वे में मौजूद उन 1638 आण्विक हाइड्रोजन के बादलों के बारे में विचार करते हैं,जिन्हें अन्य खगोलविदों ने विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न तरंगदैर्ध्य में देखा है। आरआरआई में पीएचडीके छात्र और इस शोध के लेखकों में से एक,अग्निभा डे सरकार, ने बतायाकि, “हमने इसे व्यापक बनाने के लिए तीन अलग-अलग कैटलॉग का पालन किया है।”
संयुक्त कैटलॉग में हमारे सूर्य के निकट पड़ोस में दस आण्विक बादल होते हैं। ये गेलेक्टिक बादल खगोलविदों को एक महत्वपूर्ण इनपुट—– गीगा-इलेक्ट्रॉनवोल्ट वाली कॉस्मिक किरणों की संख्या – प्रदान करते हैं। ये उन्हें पृथ्वी तक पहुंचने वाले पॉज़िट्रॉन की अधिक संख्या निर्धारित करने में मदद करते हैं। शोधकर्ताओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले कंप्यूटर कोड, आस-पास के गेलेक्टिक आण्विक बादलों की सटीक संख्या को ध्यान में रखते हुए, गीगा -इलेक्ट्रॉनवोल्ट ऊर्जा में पॉज़िट्रॉन की देखी गई संख्या को पुन: उत्पन्न करने में सक्षम थे। अग्निभा डे सरकार ने कहा कि “हम उन सभी तंत्रों पर विचार करते हैं जिनके जरिए कॉस्मिक किरणें आण्विक बादलों के साथ अंतःक्रिया करती हैं ताकि आस-पास के आण्विक बादल पॉज़िट्रॉन अतिरेक की परिघटना में एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।”
यह कंप्यूटर कोड न केवल पॉज़िट्रॉन की अधिकता, बल्कि सही ढंग से प्रोटॉन, एंटीप्रोटोन, बोरॉन, कार्बन और कॉस्मिक किरणों के अन्य सभी घटकों के स्पेक्ट्रा को पुन: पेश करता है। अग्निभा डे सरकार ने विरोधाभासों में चलने वाले पल्सर का जिक्र करते हुए वर्तमान में उपलब्ध स्पष्टीकरणों के साथ इसकी तुलना करते हुए कहा, “हमारी पद्धति बिना किसी भी विरोधाभास के देखे गए सभी संख्याओं को बताती है।”
फिर भी, शोधकर्ताओं ने आण्विक बादलों की सरल ज्यामितीय संरचनाओं पर विचार किया।जबकि वास्तविक आण्विक बादलों में जटिल ज्यामिति होती है।उनकी योजना भविष्य के अपने काम में इन खामियों को दूर करने की है। उन्होंने कहा कि “आण्विक बादलों के अंदर अधिक यथार्थवादी वातावरण के साथ, किसी भी संदेह से परे अपने विचार को स्थापित करने के लिए हमारी योजनाअन्य उपग्रहों से प्राप्त और अधिक कॉस्मिक किरण से जुड़ेआंकड़े को शामिल करने की है।”
प्रकाशन लिंक: https://doi.org/10.1016/j.jheap.2020.11.001
विस्तृत विवरण के लिए अग्निभा डे सरकार(agnibha@rri.res.in), सायन बिस्वास (sayan@rri.res.in), नयनतारा गुप्ता (nayan@rri.res.in) –– रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, से संपर्क किया जा सकता है।a