स्थानीय स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए जम्मू के विभिन्न उद्योग संगठनों द्वारा आयोजित अपनी तरह के पहले कार्यक्रम ‘स्टार्टअप में उद्योग की भागीदारी’ को संबोधित करते हुए, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की देखरेख में भारत दुनिया के स्टार्टअप इकोसिस्टम का नेतृत्व करने के लिए तैयार है, लेकिन खेद है कि जम्मू और कश्मीर इसमें पिछड़ रहा है। उन्होंने कहा, जब प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 के अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में लाल किले की प्राचीर से “स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया” की घोषणा की थी, तब से इसकी पूरे देश में बड़े पैमाने पर शुरुआत की गई, लेकिन कुछ कारणों से इसे जम्मू-कश्मीर में वही गति प्राप्त नहीं हुई, भले ही 5-6 अगस्त 2019 से यहां नई व्यवस्था शुरू होने के बाद से स्थितियां बदलनी शुरू हो गई हैं।
केंद्रीय मंत्री ने कहा, यह तय है कि भारत बड़े पैमाने पर मौजूद अपनी अनन्वेषित क्षमताओं और अपार नवोन्मेष के साथ, दुनिया में अग्रिम पंक्ति की भूमिका निभाएगा और साथ ही उन्होने भविष्य के स्थायी विकास के लिए लंबे समय तक कायम रहने वाले स्टार्टअप पर जोर दिया। इसके लिए उन्होंने व्यापक एकीकरण के साथ उद्योग और सरकार को बराबर के भागीदार के रूप में काम करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के बीच का अंतर तेजी से खत्म होता जा रहा है और इसे बराबर सम्मान, समान हिस्सेदारी, समान भागीदारी और समान निवेश पर आधारित साझेदारी बनाना होगा।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा, स्टार्टअप के विकास के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने में उद्योग, सरकारी विभागों, शिक्षाविदों और स्वतंत्र संस्थानों के बीच अधिक एकीकरण और तालमेल महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि दीर्घकालिक स्टार्टअप भारत की भविष्य की अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक बनाए रखेंगे और आने वाले वर्षों में इसे वैश्विक दृष्टिक्षेत्र प्रदान करेंगे।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के तुरंत बाद कहा था कि लोगों तक पहुंचने के लिये न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन मूल सिद्धांत होगा। उन्होने साथ ही कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा था कि सरकार के पास कारोबार में बने रहने का कोई अर्थ नहीं है और सरकार की योजना विभिन्न प्रकार के उद्योगों के फलने-फूलने के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने की है।
इस भावना के अनुरूप सरकार ने स्टार्ट-अप इंडिया और स्टैंड-अप इंडिया पहल की शुरुआत की, जिसने बड़े शहरों से लेकर विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक आंदोलन का संचार किया। माननीय मंत्री ने कहा कि इस पहल के कारण भारत में स्टार्ट-अप की संख्या 2014 में 1100 से बढ़कर आज 40,000 हो गई है, जो कि एक बड़ी छलांग है।
डॉ जितेंद्र सिंह ने देश में स्टार्टअप के बढ़ने की गति के बारे में बात करते हुए कहा कि विभिन्न कारणों से जम्मू-कश्मीर में स्टार्टअप की गति शेष भारत की तुलना में धीमी रही है, लेकिन अब इसका प्रभाव विभिन्न कृषि-आधारित स्टार्टअप, बैंगनी क्रांति और फार्मा आदि सेक्टर के माध्यम से देखा जा सकता है। माननीय मंत्री ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न हिस्सों के युवा स्वेच्छा से अपना उद्यम शुरू करने के लिए सरकारी और कॉर्पोरेट सेक्टर की नौकरियां छोड़ रहे हैं, जिससे उनकी आय कई गुना बढ़ गई है।
संबोधन में डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पीएम के द्वारा कई भाषणों में ‘स्टार्टअप’ का बार-बार उल्लेख सरकार की मंशा को दिखाता है और सरकार स्टार्टअप को प्राथमिकता देती है।
विज्ञान आधारित स्टार्टअप पर विशेष जोर देते हुए माननीय मंत्री ने कहा कि विज्ञान आज हर घर और हर व्यक्ति के जीवन में प्रवेश कर गया है। उन्होंने कहा कि विज्ञान आधारित स्टार्टअप राष्ट्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था का भविष्य हैं। उन्होंने कहा कि स्टार्टअप के विकास और साक्षरता दर के बीच जरूरी नहीं कि कोई संबंध हो और साक्षरता दर से अलग देश में विज्ञान आधारित स्टार्टअप विकसित होंगे। उन्होंने आगे कहा कि भारतीयों में वैज्ञानिक सोच है जो देश में स्टार्टअप आंदोलन को आगे बढ़ाने में सहायक साबित हो सकती है और इस क्षमता को केवल अधिक जागरूकता और विभिन्न हितधारकों की मानसिकता में बदलाव के माध्यम से सही दिशा में ले जाने की आवश्यकता है।
स्टार्टअप्स के सतत विकास में उद्योग की आवश्यकता के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि उद्योग को आंदोलन में समान हिस्सेदारी और समान निवेश के साथ भागीदार बनने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उद्योग के साथ किसी भी साझेदारी को सार्थक होना चाहिए न कि केवल दिखावे के लिए, जिसमें समर्थन, अनुसंधान, वित्त पोषण, प्रशिक्षण, विचारों की खोज और बड़ी जिम्मेदारी शामिल होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह भी उद्योग की सामाजिक जिम्मेदारी का हिस्सा है और उद्योगपतियों को राष्ट्र निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाने का अवसर प्रदान करता है।
लंबी अवधि तक कायम रहने वाले स्टार्ट-अप बनाने की चुनौती के बारे में बात करते हुए डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि स्टार्ट-अप को आजीविका से जोड़ने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि स्टार्ट-अप को आजीविका से जोड़ने के लिए विज्ञान आधारित क्षेत्रों, गैर-विज्ञान क्षेत्रों और शैक्षणिक संस्थानों को मिलकर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह स्थानीय उद्योग की छुपी क्षमताओं को सामने लाकर किया जा सकता है। उन्होंने ऐसे स्थानीय उद्योगों जैसे डोडा में लैवेंडर, सांबा, कठुआ और रियासी में विकसित किए जा रहे बांस-क्लस्टर, ‘डॉक्टर ऑन व्हील्स’ नामक टेली-मेडिसिन पहल आदि के विभिन्न उदाहरण दिए। उन्होंने कहा कि उद्योग और सरकारी सहायता और निरंतर क्षमता निर्माण प्रदान करना अन्य महत्वपूर्ण कदम हैं जिससे स्टार्टअप को आजीविका के साथ जोड़ा जा सके ।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत में स्टार्ट-अप संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए तीन स्तरों पर सोच में बदलाव की आवश्यकता है। सबसे पहले, सरकार के स्तर पर उद्योग को एक सहयोगी के रूप में मानना, जैसा कि पीएम नरेन्द्र मोदी ने कहा है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से अंतरिक्ष-आधारित स्टार्टअप बढ़े हैं, वह इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण है कि सरकार अपनी सोच को किस तरह बदल रही है, जहां कम समय में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर आधारित 50 स्टार्टअप उभरे हैं। दूसरा, उन्होंने कहा कि स्टार्ट-अप के आपसी विकास को ध्यान में रखते हुए उद्योग के स्तर पर सोच में ये बदलाव लाने की जरूरत है कि उद्योग/अर्थव्यवस्था समग्र रूप से एक दूसरे पर निर्भर है। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण, “सरकारी नौकरी” मानसिकता से युवाओं की मुक्ति और ऐसे लोगों की सोच में बदलाव लाना जो स्टार्ट-अप की शुरुआत कर सकते हैं ये स्टार्टअप आंदोलन में बढ़त को प्रेरित करेगा और इसे नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। यह परिवर्तन ऐसे समाज जो कि नौकरियों, विशेष रूप से सरकारी नौकरियों के प्रति आसक्त है, में उद्यमशीलता की भावना को बढ़ावा देने के लिए कठोर जागरूकता पहल के माध्यम से संभव है,जो युवाओं को नौकरी चाहने वालों के बजाय नौकरी देने वाला बनने में सक्षम बनाता है।
उन्होंने कहा कि सोच में यह बदलाव उद्योग, सरकार और संस्थानों के तालमेल और जागरूकता पहल जैसे वर्क शॉप, क्षमता निर्माण पहल, मंथन सत्र और स्थानीय शिविरों के माध्यम से संभव बनाया जा सकता है।
कार्यक्रम को जम्मू-कश्मीर में उद्योग के दिग्गजों और प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय और उद्योग विभाग, जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों ने संबोधित किया, जिसमें राजेश पाठक, अनीता गुप्ता, सतीश कौल, ललित महाजन एवं अन्य शामिल थे।