23 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

किसानों के लिए फसल चक्र लाभदायक है

उत्तर प्रदेश
लखनऊ: फसल चक्र किसानों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। भूमि की उर्वरता शक्ति को बनाये रखने के उद्देश्य से फसलों को अदल-बदल कर उगाने की प्रक्रिया कों फसल चक्र कहा जाता हैं। वर्तमान समय में खेती में उत्पादन एवं उत्पादकता में ठहराव या कमी आने के कारणों के अध्ययन से ज्ञात हुआ है, कि फसल चक्र न अपनाने से उपजाऊ भूमि का क्षरण जीवांश की मात्रा में कमी, भूमि से लाभदायक सूक्षम जीवों की कमी, मित्र जीवों की संख्या में कमी, हानिकारक कीटपतंगों की वृद्धि, खरपतवार की समस्या में बढ़ोत्तरी से फसल हानियाॅ होती है।

भूमि के जलधारण क्षमता में कमी, भूमि के भौतिक, रासायनिक गुणों में परिवर्तन, क्षारीयता में बृद्धि, भूमिगत जल का प्रदूषण, कीटनाशक दवाओं का अधिक प्रयोग तथा नाशीजीवों में उनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास प्रदेश की फसल उत्पादक प्रणाली धान-गेहूॅ, मृदा उर्वरता के टिकाऊपन को खतरे बढ़ गये है। इन सबको बचने के लिए फसल चक्र अपनाना बेहद जरूरी है। फसल चक्र में दलहनी फसलों में एक टिकाऊ फसल उत्पादन प्रक्रिया विकसित होती है।
किसान भाई फसल चक्र के निर्धारण में कुछ मूलभूत सिद्धान्तों को अवश्य ध्यान में रखे। अधिक खाद चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद चाहने वाली फसलों का उत्पादन करे। अधिक पानी चााहने वाली फसल के बाद कम पानी चाहने वाली फसल उगाना,  अधिक निराई गुड़ाई चाहने वाली फसल के बाद कम निराई गुडाई चाहने वाली फसल, उथली जड़ वाली फसल के बाद गहरी जड़ वाली फसलों को उगाना चाहिए। दलहन फसलों के बाद अदलहनी फसलों का उत्पादन,  अधिक मात्रा में पोषक तत्व शोषण करने वाली फसल के बाद खेत को परती रखना,  एक ही नाशी जीवों से प्रभावित होने वाली फसलों को लगातार नहींे उगाना चाहिए। फसलों का समावेश स्थानीय बाजार की माॅग के अनुरूप रखना चाहिए, फसल का समावेश जलवायु तथा किसान की आर्थिक क्षमता के अनुरूप करना चाहिए।
उत्तर प्रदेश में कुछ प्रचलित फसल चक्र इस प्रकार है, परती पर आधारित फसल चक्रः परती-गेहूॅ, परती-आलू परती-सरसों, धान-परती आदि। हरी खाद पर आधारित फसल चक्रः इसमें फसल उगाने के लिए हरी खाद का प्रयोग किया जाता है। जैसे हरी खाद-गेहूॅ, हरी खाद-धान, हरी खाद-केला, हरी खाद-आलू, हरी खाद-गन्ना, आदि। दलहनी फसलों पर आधारित फसल चक्र- मंूग-गेहूॅ, धान-चना, कपास-मटर-गेहूॅ, ज्वार-चना, बाजरा-चना, मूंगफली-अरहर, मूंग-गेहॅू, धान-चना, कपास-मटर-गेहूॅ, ज्वार-चना, बाजरा-चना, धान-मटर-गन्ना, मंूगफली-अरहर-गन्ना, मसूर-मेंथा, मटर-मेंथा  अन्न की फसलों पर आधारित फसल चक्रः मक्का-गेहूॅ, धान-गेहूॅ, ज्वार-गेहूॅ, बाजरा-गेहूॅ, गन्ना-गेहॅू, धान-गन्ना-पेड़ी, मक्का-जौ, धान-बरसीम, चना-गेहॅू, मक्का-उर्द-गेहॅू आदि।  सब्जी आधारित फसल चक्रः भिण्डी-मटर, पालक-टमाटर, फूलगोभी ़ मूली-बन्दगोभी़मूली, बैंगऩलौकी, टिण्डा-आलू-मूली, करेला, भिण्डी-मूली -गोभी-तरोई, घुईयां-शलजम-भिण्डी-गाजर,धान-आलू-टमाटर, धन-लहसुन-मिर्च, धान-आलू ़ लौकी इत्यादि हैं। फसल चक्र से लाभ निम्न है- किसी खेत में लगातार एक ही फसल उगाने के कारण कम उपज प्राप्त होती है तथा भूमि की उर्वरता खराब होती है, जिससे बचाव होता है।
फसल चक्र से मृदा उर्वरता बढ़ती है, भूमि में कार्बन-नाइट्रोजन के अनुपात में वृद्धि होती है। भूमि के पी.एच. तथा क्षारीयता में सुधार होता है, भूमि की संरचना में सुधार होता है, मृदा क्षरण की रोकथाम होती है, फसलों का बीमारियों से बचाव होता है, कीटों का नियन्त्रण होता है, खरपतवारों की रोकथाम होती है, वर्ष भर आय प्राप्त होती रहती है, भूमि में विषाक्त पदार्थ एकत्र नहीं होने पाते हंै। उर्वरक- अवशेषों का पूर्ण उपयोग हो जाता है, तथा सीमित सिंचाई सुविधा का समुचित उपयोग हो जाता है।

Related posts

Leave a Comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More