लखनऊ: धान की खेती
ऽ नर्सरी लगाने के 20 दिन के अन्दर एक छिड़काव ट्राइकोडर्मा का करें।
ऽ बीज शोधन हेतु 5 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से ट्राइकोडर्मा का प्रयोग किया जाये।
ऽ अधिक जल भराव वाले क्षेत्रों हेतु जहां एक मीटर से अधिक पानी लगा रहता है, धान की संस्तुत प्रजातियों यथा जलनिधि एवं जलमग्न की सीधी बुआई शीघ्र समाप्त करें। जहाॅं तक सम्भव हो ड्रमसीडर या जीरो-टिल-फर्टी-ड्रिल से ही बुआई करें। उन क्षेत्रों में जहां खेत में पानी 50 से 100 सेमी. तक कम से कम 30 दिन भरा रहता है रोपाई हेतु जल लहरी एवं जलप्रिया की नर्सरी यथाशीघ्र डालें।
ऽ सामयिक बाढ़ वाले क्षेत्रों हेतु बाढ़ अवरोधी, स्वर्णा सब-1 तथा कम जल भराव वाले क्षेत्रों हेतु जल लहरी एवं एन.डी.आर.-8002 प्रजातियों की नर्सरी डालें।
ऽ धान की मध्यम अवधि वाली प्रजातियां यथा नरेन्द्र धान-359, मालवीया धान-36, मालवीय धान-1, नरेन्द्र धान-2064, नरेन्द्र धान-2065, नरेन्द्र धान-2026 नरेन्द्र धान-3112-1 आदि की नर्सरी डालें।
ऽ संकर धान की प्रजातियों यथा एराइज-6444, 6201, जे.के.आर.एच.-401 (ऊसर हेतु भी संस्तुत) पी.एच.बी.-71, नरेन्द्र संकर धान-2,3, के.आर.एच.-2, पी.आर.एच.-10, यू.एस.-312, पूसा आर.एच.-10, वी.एस.आर.-202, आर.एच.-1531 आदि की नर्सरी डालें।
ऽ सुगंधित धान की प्रजातियों टाइप-3, कस्तूरी, पूसा बासमती-1, हरियाणा बासमती-1, बासमती-370, तारावडी बासमती, मालवीय सुगंध, मालवीय सुगंध 4-3, वल्लभ बासमती-22, नरेन्द्र लालमती, नरेन्द्र सुगंध आदि की नर्सरी डालें।
ऽ खैरा रोग जिंक की कमी के कारण नर्सरी में लगता है। इस रोग में पत्तियाॅं पीली पड़ जाती हैं जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं। खैरा रोग के नियन्त्रण हेतु 5 किग्रा. जिंक सल्फेट को 20 किग्रा. यूरिया अथवा 2.50 किग्रा. बुझे हुए चूने को प्रति हे. लगभग 1000 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।
ऽ सफेदा रोग लौह तत्व की कमी के कारण नर्सरी में लगता है। इस रोग में नई पत्ती कागज के समान सफेद रंग की निकलती है। सफेदा रोग के नियन्त्रण हेतु 5 किग्रा. फेरस सल्फेट को 20 किग्रा. यूरिया अथवा 2.50 किग्रा. बुझे हुए चूने को प्रति हे. लगभग 1000 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।
मक्का की खेती
ऽ अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए मक्का की देर से पकने वाली संकर प्रजातियों गंगा-11, सरताज, एच.क्यू.पी.एम.-5, प्रो-316 (4640), बायो-9681, वाई-1402, एच.क्यू.पी.एम.-8 तथा संकुल किस्म प्रभात की बुआई करें।
ऽ यदि बीज शोधित न हो तो बीज बोने से पूर्व 1 किग्रा. बीज को 2.5 ग्रा. थीरम से शोधित करना चाहिये या बीज को इमिडाक्लोप्रिड 2 ग्रा./किग्रा. से बीज को शोधित करना चाहिए।
अरहर की खेती
ऽ सिंचित क्षेत्रों में पश्चिमी उ.प्र. हेतु अरहर की अगेती संस्तुत प्रजाति पारस तथा सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु संस्तुत प्रजातियों यू.पी.ए.एस.-120, टा-21 तथा पूसा-992 की बुवाई शीघ्र समाप्त करें।
ऽ बुआई से पूर्व यदि बीज शोधित न हो तो एक किग्रा. बीज को 2 ग्रा. थीरम, एक ग्राम कार्बेन्डाजिम अथवा 4 ग्राम ट्राईकोडर्मा$1 ग्राम कारबाक्सिन से उपचारित करें। बुआई से पहले हर बीज को अरहर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें।
गन्ना की खेती
ऽ अंकुर बेधक कीट की रोकथाम के लिये फसल पर 15 दिन के अन्तराल पर तीन बार मेटासिड 50 प्रतिशत घोल 1.0 ली. को 625 ली. पानी में घोलकर प्रति हे. की दर से छिड़काव करें।
ऽ पायरीला का प्रकोप होने पर तथा परजीवी (इपीरिकेनिया मेलानोल्यूका) न पाये जाने की स्थिति में इण्डोसल्फान 35 प्रतिशत घोल 0.67 ली. प्रति हे. अथवा क्वीनालफास 25 प्रतिशत घोल 0.80 ली. प्रति हे. 625 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
बागवानी
ऽ फलों के नये बाग लगाने के लिये उपयुक्त खेत का चयन एवं रेखांकन कर गड्ढों की ख्ुादाई कर गड्ढे में खाद-उर्वरक की उपयुक्त मात्रा तथा नीम की खली व मिट्टी की समान मात्रा मिलाकर जमीन से लगभग 1 फीट ऊॅंचा भराई करें।
ऽ आम के परिपक्व फलों की तुड़ाई 8-10 मिमी. लम्बी डंठल के साथ करें, जिससे फलों पर चेप न लगने पाये। इससे स्टेम इण्ड राॅंट बीमारी नहीं लगती, पकने पर फल दाग रहित आकर्षक होते हंै तथा भण्डारण क्षमता 2-3 दिन बढ़ जाती है। तुड़ाई के समय फलों को चोट व खरोच न लगने दें तथा मिट्टी के सम्पर्क से बचायें।
ऽ फलों की तुड़ाई के लिए उपोष्ण बागवानी संस्थान द्वारा विकसित तुड़ाई यंत्र उपयुक्त है जिससे प्रति घण्टे 800-1000 फल तोड़े जा सकते है। यह यंत्र संस्थान में उचित मूल्य पर उपलब्ध है।
ऽ पौध प्रवर्धन हेतु आम में ग्राफ्टिंग का कार्य करें।
सब्जियों की खेती
ऽ खरीफ सब्जियों यथा बैंगन, मिर्च एवं फूलगोभी की अगेती किस्मों की नर्सरी में बुआई करें।
ऽ भिण्डी व लोबिया की बुआई करें।
ऽ सब्जियों में यथासम्भव जैव नाशिजीवियों का ही प्रयोग करें।
ऽ हल्दी एवं अदरक की बुआई 15 जून तक अवश्य पूर्ण कर लें।
ऽ वर्षाकालीन सब्जियों यथा लौकी, तोरई, सेम, काशीफल व टिण्डा की बुआई करें।
पशुपालन
ऽ बड़े पशुओं में गला घोटू बीमारी की रोकथाम हेतु एच.एस. वैक्सीन से तथा लंगड़िया बुखार की रोकथाम हेतु वी.क्यू. वैक्सीन से टीकाकरण करायें। यह सुविधा सभी पशु चिकित्सालय पर उपलब्ध है।
ऽ पशुओं को लू से बचाने के लिए दोपहर में छायादार स्थान पर बाॅंधें तथा सुबह एवं सायंकाल में ही चराई करायें।
ऽ पशुओं को पर्याप्त मात्रा में साफ पानी पिलायें।
ऽ पशुओं को मुरझाया हुआ हरा चारा (विशेष रूप से ज्वार) ना खिलायें क्योंकि इसमें एच.सी.एन. तत्व (जहरीला तत्व) की अधिकता से पशु बीमार हो सकते हैं।
ऽ वर्तमान मौसम में तापमान अधिक होने के कारण पशुओं में डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती हैं। इससे बचाव हेतु पशुओं को खनिज-लवण मिक्चर खिलायें।
मत्स्य पालन
ऽ तालाब निर्माण का उपयुक्त समय है जो किसान नये तालाब बनाना चाहते हों या अपने तालाब का सुधार कार्य कराना चाहते है वे 20 जून तक निर्माण कार्य पूरा करा लें तथा आगामी मौसम में मत्स्य पालन की तैयारी करें।
ऽ कतला, रोहू एवं नैन प्रजातियों में मेच्योरिटी आ गई है। तालाब का जलस्तर 5 से 6 फुट बनाये रखें। जिन मत्स्य बीज उत्पादकों ने अभी तक नर्सरियों को तैयार नही किया है वे शीघ्र नर्सरियों को तैयार कर लें।
ऽ कतला, रोहू, नैन प्रजातियों का उत्प्रेरित प्रजनन का समय आ गया है। हैचरी स्वामी मानसून के आगमन संबंधी पूर्वानुमान पर विशेष ध्यान दें। 20 जून से कतला, रोहू, नैन मत्स्य प्रजातियों का उत्प्रेरित प्रजनन करायें साथ ही आवश्यकतानुसार सिल्वर कार्प एवं ग्रास कार्प मत्स्य प्रजातियों का उत्प्रेरित प्रजनन भी करायें।
ऽ निजी क्षेत्र की कुछ हैचरियों पर उत्प्रेरित प्रजनन के मध्यम से मत्स्य बीज का उत्पादन प्रारम्भ कर दिया गया है। इच्छुक मत्स्य पालक अपने तालाबों में मत्स्य बीज का संचय करायें।
ऽ जो भी मत्स्य पालक मत्स्य बीज उत्पादन की प्रक्रिया से जुड़े हैं वे अपनी नर्सरी की तैयारी कर लें।
ऽ पूरे प्रदेश में जल संसाधन विभाग द्वारा तालाब को गहरा कराये जाने की योजना चलाई जा रही है। ग्रामसभा के तालाब जो पट्टे पर हैं तथा कम गहराई के हैं उन्हें गहरा कराने के लिए जिलाधिकारी को आवेदन करें।
ऽ थाई माॅंगुर मछली पालना प्रतिबन्धित है। इसको न पाला जाये।
रेशम पालन
ऽ टसर बीजागारों मंे संरक्षित कोयों मंे प्यूपा को जीवित रखने के लिए ठण्ड बनाये रखें।
वानिकी
ऽ गड्ढा भरान 15 जून तक पूर्ण कर लें। वृक्षारोपण हेतु आवश्यक पौधे प्राप्त कर लें। पौधों के रोपण अथवा बिक्री हेतु ले जाने से पूर्व तक खुले क्षेत्र में सिंचाई करें।
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