केंद्रीय रसायन एवं उवर्रक मंत्री श्री डी. वी. सदानंद गौड़ा ने आज ऑर्गेनाइजेशन ऑफ फार्मास्युटिकल प्रोड्यूसर्स ऑफ इंडिया (ओपीपीआई) के दो दिवसीय वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन किया। केंद्रीय मंत्री ने इस सम्मेलन के दौरान लाइफटाइम अचीवमेंट और विशेष मान्यता पुरस्कारों का भी वितरण किया।
इस सम्मेलन में श्री गौड़ा ने कहा कि कोविड-19 महामारी वर्ष के दौरान भारतीय दवा क्षेत्र के योगदान को सुदृढ़ किया गया है। वैश्विक और भारतीय कंपनियों ने देश की सेवा के लिए अपने कदम रखें और प्रयासों को आगे बढ़ाया है। उन्होंने आगे कहा कि आम तौर पर भारत को ‘विश्व की फॉर्मेसी’ कहा जाता है। यह बात कोविड-19 महामारी के दौरान पूरी तरह सच साबित हुई, जब भारत ने विश्व के बाकी हिस्सों में महत्वपूर्ण जीवन रक्षक दवाओं के उत्पादन और निर्यात को जारी रखा।
श्री गौड़ा ने कहा कि इस वायरस को नियंत्रित करने के राष्ट्रीय प्रयासों का समर्थन करने के लिए बिना पूछे सभी कंपनियां इसके लिए सामने आ गईं और अपने विशेषज्ञता वाले क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने राज्य और केंद्र सरकारों की एजेंसियों के साथ मिलकर काम किया। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान आपूर्ति श्रृंखला में चुनौतियों के बावजूद आवश्यक दवाओं और चिकित्सकीय उपकरणों सहित अन्य संबंधित वस्तुओं को उनके योगदान द्वारा अलग-अलग तरीकों से सहज तरीके से उपलब्ध कराए गए थे।
इस कठिन समय के दौरान फार्मास्युटिकल उद्योग की भूमिका की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के समय भी देश के किसी भी हिस्से में दवाओं की कमी नहीं थी। पूरे संकट के दौरान फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज ने दवाओं और उपचार के लिए टेस्टिंग किटों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सरकार के साथ हाथ से हाथ मिलाकर काम किया।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि टीकाकरण की तत्काल जरूरत देशों को परेशान करने वाले हैं, हमने कई भारतीय और वैश्विक कंपनियों के प्रयोगशाला में जाने और आपसी सहयोग स्थापित करने के दृश्य देखे हैं। टीके के विकास के लिए उद्योग के सभी हिस्सों, वैश्विक कंपनियों, भारतीय कंपनियों, अनुसंधान संस्थान, सरकारी नियामक और टीके के विकास एवं नैदानिक परीक्षणों में सहयोग करने वाले अस्पतालों के सराहनीय प्रयास रहे हैं।
मंत्री ने कहा कि भारत ने फार्मास्युटिकल क्षेत्र और चिकित्सकीय उपकरणों के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह को बड़े पैमाने पर आकर्षित किया है। अधिक से अधिक विदेशी कंपनियां भारत में अपने अनुसंधान, विनिर्माण और नैदानिक परीक्षणों को स्थापित करना चाहती है।
दवाओं के निर्यात के विषय पर उन्होंने कहा कि यह एक तथ्य है कि विश्व के बाकी हिस्सों को भारत में निर्मित दवाएं मिलती हैं, इसलिए भारत की दवाओं के निर्यात में लगातार तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। यहां तक की भारतीय घरेलू बाजार में भी शानदार वृद्धि देखी जा रही है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि रिकॉर्ड के रूप में वर्ष 2019-20 में भारत से दवाओं का निर्यात 20 बिलियन डॉलर से अधिक था और यह उम्मीद की जा रही है कि चालू वित्तीय वर्ष (2020-21) में यह आंकड़ा बढ़कर 25 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगा। यह ऐसे समय हुआ, जब घरेलू बाजार पिछले वर्ष के 22 बिलियन डॉलर के स्तर को पार कर चुका है। वास्तव में यह क्षेत्र बहुत अधिक वृद्धि के लिए तैयार है।
उन्होंने कहा कि भारतीय फार्मा इंडस्ट्री में वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरने की क्षमता है। इस संदर्भ में सरकार ने अनुसंधान और विकास की गतिविधियों को सहयोग करने के लिए विश्व-स्तर के बुनियादी ढांचे, पूर्व अनुमोदित नियामक मंजूरी और उत्कृष्टता केंद्रों के साथ तीन थोक दवा पार्कों एवं चार चिकित्सकीय उपकरण पार्कों के विकास का निर्णय लिया है। केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि हम विश्व-स्तरीय गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन करें और अपने विनिर्माण सुविधाओं द्वारा वैश्विक गुणवत्ता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए फार्मास्युटिकल सेक्टर में अपनी स्थिति को मजबूत करें।
उन्होंने जोर देकर कहा कि हमारी सरकार प्रत्येक नागरिक को कम लागत वाली सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं को प्रदान करने को लेकर प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि इसके लिए कई योजनाएं हैं, लेकिन इनमें से दो योजनाएं- कम लागत वाली दवाओं के लिए प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) और गरीब नागरिकों के लिए कैशलेस हैल्थकेयर आयुष्मान भारत योजना ने नागरिकों विशेषकर गरीब और वंचितों की स्वास्थ्य की देखभाल से संबंधित खर्चों को काफी कम किया है।
अपने संबोधन को समाप्त करते हुए मंत्री ने कहा कि सहयोग, अनुसंधान और विकास से हम भविष्य में किसी भी स्वास्थ्य चुनौती का सामना कर सकते हैं और इस उद्योग को भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास इंजनों में से एक बना सकते हैं।