नई दिल्ली: केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने देश में बांधों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत को रेखांकित किया है।
आज नई दिल्ली में बांध पुनर्वास एवं सुधार परियोजना से प्राप्त सबक पर आयोजित एक कार्यशाला का उदघाटन करते हुए उन्होंने कहा कि देश में जो बड़े बड़े बांध बनाए है उनका समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। सुश्री भारती ने कहा कि इन बांधों में एकत्र किये गए पानी का हम समुचित उपयोग नहीं कर पा रहे है। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय की बांध पुनर्वास एवं सुधार परियोजना को एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम बताते हुए उन्होंने कहा कि आज ज्यादा जरूरत इस बात की है हम देश में नए जलाशयों के निर्माण से पहले से मौजूदा जलाशयों का सौ प्रतिशत इस्तेमाल सुनिश्चित करें।
बांधों के निर्माण में जो खामियां रह गई उनसे सबक लेकर उन्हें भविष्य में ना दोहराएं। केदारनाथ विभिषिका का उल्लेख करते हुए सुश्री भारती ने कहा कि हमें उससे भी बहुत सबक लेने है। केदारनाथ से ऊपर स्थित गांधी सरोवर का सीमेंटीकरण करते समय उसमें से प्राकृतिक निकास की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। इस वजह से जब उसमें एकाएक भारी मात्रा में पानी आया तो उसने प्राकृतिक आपदा का रूप ले लिया जो केदारनाथ विभिषिका के रूप में सामने आई। इसलिए इन सब बातों को देखते हुए यह बहुत जरूरी है कि हम जलाशयों और बांधों की सुरक्षा को लेकर बहुत सचेत रहे। उन्होंने कहा कि आज की परिस्थितियों में किस प्रकार से बांधों की समुचित सुरक्षा की जा सके इसके लिए समुचित प्रशिक्षण भी जरूरी है।
सुश्री भारती ने कहा कि ‘’कार्यशाला में आये सभी राज्यों के प्रतिनिधियों से मैं आग्रह करूंगी कि हम जब भी नये निर्माणों की ओर बढ़े, तो उससे पहले हमारे जो मौजूदा बांध है, उनकी सुरक्षा को लेकर शत- प्रतिशत आश्वस्त हो जाएं। हमें यह भी देखना चाहिए कि वह अपनी क्षमताओं के अनुरूप कार्य कर रहे हैं या नहीं, उससे क्या-क्या संभावित संकट उत्पन्न हो सकते है, उससे रिसाव कैसे रोके जा सकते है, दूसरे वाटर बॉडिज के साथ उनका संपर्क कहीं बाधित तो नहीं हो रहा। इन सभी चीजों को बहुत गंभीरतापूर्वक देखना है।‘’
देश की अपार जल संपदा का उल्लेख करते हुए सुश्री भारती ने कहा कि यदि हम इसका समुचित उपयोग कर पाये तो देश को बाढ़ और सूखे जैसी समस्याओं से लगभग निजात मिल जाएगी और देश के कृषि क्षेत्र को सिंचाई के लिए समुचित जल उपलब्ध हो सकेगा। उन्होंने कहा कि राज्य अपने बांधों को लेकर निरंतर सतर्क रहें। मंत्री महोदया ने कहा कि जलाशयों से पानी छोड़ते समय हमें अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है ताकि ऐसा करते समय निचले इलाकों में रहने वालों को अतिरिक्त पानी से कोई नुकसान ना पहुंच पाये। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एकाएक बड़ी मात्रा में पानी छोड़ने से होने वाली दुर्घटनाओं को ना होने दिया जाए।
सुश्री भारती ने कहा कि ‘’मैं चाहती हूं कि हम बांध पुर्नवास और सुधार परियोजनाओं के बारे में जो कुछ भी दिशा-निर्देश तैयार करें उन्हें समुचित ढ़ग से लागू भी करवा पायें। मुझे उम्मीद है कि इस कार्यशाला से निकले विचार-विमर्श से बांध पुर्नवास और सुधार परियोजना को एक नई दिशा मिलेगी। सुश्री भारती ने कहा कि ‘’जिन राज्यों ने इस कार्यक्रम को अभी तक लागू नहीं किया है मैं उन राज्यों के मुख्यमंत्रियेां से बातचीत करके यह सुनिश्चित करूंगी कि वह अपने राज्यों में शीघ्रताशीघ्र इसे लागू करें। इस बारे में मेरे मंत्रालय ने यह फैसला किया है कि राज्यों के साथ बेहतर तालमेल के लिए क्षेत्रीय स्तर पर भी इस तरह की कार्यशालाएं आयेाजित की जाएंगी।‘’
बांध पुर्नवास एवं सुधार परियोजना की हिंदी वेबसाइट का भी शुभांरभ किया। उन्होंने द्वितीय राष्ट्रीय बांध सुरक्षा सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए प्रपत्रों के एक संकलन और बांध से संबंधित आपात सुरक्षा योजनाओं से संबंधित दिशा निर्देशों के एक संकलन का भी विमोचन किया।
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण राज्य मंत्री प्रो. सांवर लाल जाट, मंत्रालय के सचिव श्री शशि शेखर, मंत्रालय के विशेष सचिव डॉ. अमरजीत सिंह और केद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष श्री धनश्याम झा ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा आयोजित इस एक दिवसीय कार्यशाला में बांध के प्रचालन और रखरखाव की निगरानी से जुड़े 16 राज्यों के प्रतिनिधि तथा विशाल बांधों के स्वामित्व से जुड़े अन्य संगठनों के पदाधिकारियों ने भाग लिया। देश में बांधों की सुरक्षा के महत्व को महसूस करते हुए, भारत सरकार ने बांध पुनर्वास एवं सुधार परियोजना की वर्ष 2012 में शुरूआत की। यह परियोजना सात राज्यों में लगभग 250 बांधों की स्थिति में सुधार लाने के लिए प्रारंभ की गई है।
समस्त राज्यों में, बदहाल स्थिति में मौजूद कई विशाल बांधों के पुनर्वास की तत्काल आवश्यकता के बारे में विविध मंचों पर चिंता जाहिर की जाती रही है, ताकि उनकी सुरक्षा और प्रचालन संबंधी दक्षता सुनिश्चित की जा सके। इन पुराने विशाल बांधों के पुनर्वास से जुड़े कई मामलों की जटिल प्रकृति को देखते हुए, यह महसूस किया गया है कि बेहतर यही होगा कि बांधों की सुरक्षा संबंधी चिंताओं के बारे में संवेदनशील बनाने और बहुत बड़े कार्य का उत्तरदायित्व ग्रहण करने के लिए कार्यनीतियों का निर्धारण करने में बांध पुनर्वास एवं सुधार परियोजना कार्यान्वयन से प्राप्त अनुभव का उपयोग किया जाए। तदुनुसार, इस विषय पर इस कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला में देश में विशाल बांधों की बदहाल स्थिति दूर करने में प्राप्त अनुभव और बांधों के पुनर्वास के लिए बांध पुनर्वास एवं सुधार परियोजना के कार्यान्वयन के तीन वर्षों के दौरान प्राप्त सबक पर चर्चा की गई। इस कार्यशाला से प्राप्त होने वाली सिफारिशों से बड़े पैमाने पर होने वाले पुनर्वास कार्यों के लिए कार्यनीतियां निर्धारित करने और इस विशाल कार्य के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक तकनीकी,प्रबंधकीय और वित्तीय संसाधनों के प्रबंधन में सहायता मिलेगी।
भारत में लगभग 4900 विशाल बांध हैं और उनमें से लगभग 80 प्रतिशत 25 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। पुराने बांधों का निर्माण बाढ़ और भूकम्प के कुछ निश्चित स्तरों का सामना करने के लिए किया गया था और वे समय के साथ एकत्रित की गयी सूचना पर आधारित संशोधित अनुमानों की कसौटी पर संभवत: खरे न उतर सकें। पुराने समय में प्रचलित डिजाइन की कार्यप्रणालियां और सुरक्षा की स्थितियां भी डिजाइन के वर्तमान मानकों और सुरक्षा मानदंडों से मेल नहीं खातीं। नींव की अभियांत्रिकी संबंधी सामग्री अथवा बांधों का निर्माण करने के लिए उपयोग में लायी गयी सामग्री भी समय के साथ नष्ट हो सकती है। रखरखाव से जुड़े इन पृथक कारकों और मामलों के कारण कुछ बांध संभवत: बुरी हालत में होंगे और ऐसे में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा उनकी प्रचालन संबंधी विश्वसनीयता बहाल करने के लिए उन बांधों की तत्काल मरम्मत किए जाने की आवश्यकता होगी।