नई दिल्लीः 28 मार्च, 2018 को विश्व बौद्धिक संपदा संगठन ने एक घोषणा अधिसूचित की, जिसमें 7 अक्टूबर, 1974 की भारत गणराज्य की सरकार की धरोहर का उल्लेख करते हुए 9 सितम्बर, 1886 की साहित्यिक एवं कलात्मक लेखन पर लेखन संबंधी बर्न सम्मेलन के अनुमोदन के साधन, जो 24 जुलाई, 1971 को पेरिस में संशोधित किए गए थे ( बर्न अधिसूचना संख्या-59 देखें) तथा इसके तत्पश्चात धरोहर दिनांक 01 फरवरी, 1984 तथा 7 जून 1984 की घोषणाएं जिनके अनुसार भारत गणराज्य की सरकार 10 साल की अवधि, जो 10 अक्टूबर, 2024 को समाप्त होगी, तक बर्न सम्मेलन के परिशिष्ट के अनुच्छेद 2 तथा 3 के तहत प्रदत्त विशेषाधिकार का उपभोग (क्रमश: बर्न सम्मेलन संख्या 108 तथा 110) कर सकेगी। उक्त घोषणा भारत गणराज्य के क्षेत्र के संबंध में 28 मार्च, 2018 को लागू होगी।
परिशिष्ट के अनुच्छेद 2 से भारत गणराज्य को ऐसे ग्रंथ के अनुवाद का विशेषाधिकार जिसका प्रकाशन पुन: छपाई या समरूप फार्म में पुनर्लेखन के रूप में हुआ है, सक्षम प्राधिकारी द्वारा केवल शिक्षण, छात्रवृत्ति अथवा अनुसंधान के उद्देश्य से प्रदान किया गया है।
परिशिष्ट के अनुच्छेद 3 से भारत गणराज्य को ऐसे ग्रंथों, जिनका प्रकाशन पुन: छपाई या समरूप फार्म में पुनर्लेखन के रूप में हुआ है अथवा कानून के तहत तैयार की गई श्रव्य-दृश्य फिक्सेशन के श्रव्य-दृश्य रूप में हुआ है, की पुनः प्रस्तुति के विशेषाधिकार की एवज में ऐसा संस्करण प्रकाशित करने की अनुमति होगी जिसका 6 महीने की अवधि के दौरान वितरण/विक्रय न हुआ हो, इसमें अपवाद मात्र यह है कि इसके अनुवाद का प्रकाशन स्वामी द्वारा अनुवाद के अधिकार या उसके प्राधिकार से न किया गया हो अथवा उसका अनुवाद भारत में सामान्यतः प्रयुक्त भाषा में न हुआ हो।
भारत 28 अप्रैल, 1928 से बर्न सम्मेलन का सदस्य रहा है और समय-समय पर परिशिष्ट के अनुच्छेद 2 तथा 3 के अनुसार घोषणाएं प्रस्तुत करता रहा है। प्रस्तुत या मौजूदा अधिसूचना भारत की पूर्व स्थिति के क्रम में ही है।