16 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

देव मूर्तियों का नगर भ्रमण व जलाभिषेक

अध्यात्म

अपनी धुरी पर भ्रमण करता हुआ सूरज मेष राशि से कन्या राशि में प्रवेश कर चुका है। मेष राशि से 150° दूर वह कन्या राशि की 30° पूरी करने के लिए आगे बढ़ रहा है और इसी राशि को पार करते हुए अपने सफ़र की 180° तय करता हुआ अब विपरीत दिशा की ओर बढने लगेगा।

अर्थात अब दाहिने से बायीं तरफ बढ़ रहा है। इस बांई ओर उसे तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन, राशि के तारा मंडल को पार कर फिर मेष में प्रवेश करेगा। दाईं करवट में सूर्य को बंसत, गर्मी और वर्षा ऋतु का सामना करना पड़ता है उसके बाद बाईं ओर उसे सर्दी, शिशिर और हेमन्त ऋतु का सामना करना पड़ता है।

चतुर्थ मास का अब आधा समय बीत चुका है और वर्षा ऋतु के बाण भी अब कभी कबार शनै शनै आने लगते हैं। सूर्य की बदलती स्थिति अब सर्द की ओर बढ रही है।

धार्मिक मान्यताओं में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी माना जाता है। देव शयनकाल मे इस दिन चल देव मूर्तियां का नगर भ्रमण करा उन्हें पवित्र नदी, तालाब या जल के किनारे ले जाकर उनको स्नान कराया जाता है। पंचामृत का भोग अर्पण कर पुन: शयन करा दिया जाता है। लेकिन उनकी करवट बदल कर बायीं तरफ कर दी जाती है और देव पुनः शयन काल में चले जाते हैं।

पुराणों की मान्यता के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पहले से ही स्थापित प्रतिमा का उत्सव करके उसे जलाशय के निकट ले जाया जाता है ओर जल से स्पर्श कराकर उसकी पूजा की जाती है फिर घर लाकर बायीं करवट से सुला दिया जाता है। दूसरे दिन प्रातकाल द्वादशी को गन्ध आदि से वामन की पूजा कर और भोजन करा दक्षिणा दी जाती है।

यह इस दुनिया के प्रपंच से मुक्त होने की एकादशी है यदि इस प्रकार पूजा कर ली है तो, ऐसी मान्यता नारद पुराण की है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पद्म पुराण के उतर खंड में सूर्य वंश के राजा मान्धाता के राज्य में प्रजा सुखी और समृद्ध थी। एक बार तीन साल तक अकाल पड़ गया। मनीषियोंकी सलाह पर राजा अपने कुछ साथियों के साथ वन में गए वहां अंगिरा ऋषि के दर्शन हुए।

ऋषि ने पद्मा एकादशी के व्रत के बारे में बताया। व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और अकाल खत्म हुआ। इस दिन जल सें भरा कलश वस्त्र से ढंककर दही व चावल के साथ मंदिर में अर्पण किए जाने की प्रथा है। छाता और जूते भी दान देने की प्रथा है।

कुल मिलाकर इस एकादशी को भगवान का उत्सव मनाकर तालाब में भगवान की प्रतिमा को स्नान कराकर मंगल गान के साथ वापस अपने स्थान में चल प्रतिमाओं को स्थापित करनी चाहिए। सूर्य के उतरायन ओर दक्षिणायन से जुड़ी ये धार्मिक मान्यताएं सदियों से आज तक विद्यमान हैं और ठाकुर जी के नगर भ्रमण हर वर्ष होते रहते हैं। By सबगुरु न्यूज

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर

Related posts

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More