उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू ने आज सतत विकास के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दुनिया को ऐसे उद्योग और व्यवसाय जगत के प्रमुखों की आवश्यकता है जो अल्पकालिक लाभ से उपर उठें और दीर्घकालिक स्थिरता की दिशा में काम करें।
उपराष्ट्रपति निवास, नई दिल्ली से ‘इंडियन बी-स्कूल्स लीडरशिप कॉन्क्लेव’ का वर्चुअल उद्घाटन करते हुए उपराष्ट्रपति ने सचेत किया कि हमारा विकास कभी भी पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए। ग्लोबल वार्मिंग और प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति में हो रही वृद्धि की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए, उन्होंने कहा कि इसके कारण व्यवसायों पर भी प्रभाव पड़ रहा है।
‘इंडियन बी-स्कूल्स: नेविगेटिंग ए सस्टेनेबल फ्यूचर बाई मर्जिग लोकल एंड ग्लोबल बेस्ट प्रैक्टिसेस’ विषय पर आयोजित होने वाले इस दो-दिवसीय वर्चुअल कॉन्क्लेव का आयोजन एसोसिएशन टू एडवांस कॉलेजिएट स्कूल्स ऑफ बिजनेस (एएसीएसबी), यूएसए और एजुकेशन प्रमोशन सोसाइटी फॉर इंडिया (ईपीएसआई) द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। भारत और दुनिया के बी-स्कूलों में शिक्षकों के सामने उत्पन्न होने वाले विभिन्न मुद्दों पर 20 से ज्यादा चिंतनशील नेता, डीन, निदेशक और नीति निर्माता अपना-अपना विचार रखेंगें।
श्री नायडू ने कोविड-19 महामारी से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों के बावजूद इस कॉन्क्लेव का आयोजन करने के लिए एएसीएसबी और ईपीएसआई की सराहना करते हुए कहा कि इस कठिन समय के दौरान यह भारतीय बी-स्कूलों के लिए प्रबंधन शिक्षा में स्थानीय और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखने का एक उत्कृष्ट अवसर है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारी अर्थव्यवस्था और समाज में बी-स्कूल बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि यहां पर भविष्य के प्रबंधकों, नेताओं और नवोन्मेषकों को तैयार और प्रशिक्षित किया जाता है। उन्होंने प्रबंधन के युवा छात्रों से आग्रह किया कि वे ग्रामीण भारत की व्यापारिक और सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करने और उनकी पहचान करने के लिए आसपास के गांवों का दौरा करें और अपने साथ उसका व्यवहारिक समाधान लेकर आएं।
श्री नायडू ने युवा प्रबंधकों से व्यवसायों के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण करने के लिए एक बड़ा दृष्टिकोण अपनाने की अपील करते हुए कहा कि “एक बेहतर और खुशहाल दुनिया का निर्माण करने के लिए हमारे बिजनेस स्कूलों की प्राथमिकता उभरते हुए प्रबंधकों में चरित्र का निर्माण करना, मूल्यों का अनुकरण करना और सहानुभूति उत्पन्न करना होना चाहिए।”
रोजगारपरकता के मुद्दे पर, उपराष्ट्रपति ने इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2020 का उल्लेख किया, जिसमें देश में एमबीए स्नातकों की रोजगारपरकता दर को 54 प्रतिशत दर्शाया गया है। छात्रों का नामांकन और रोजगारपरकता के बीच इस अंतर को पाटने वाले उपायों की दिशा में सोचने का आग्रह करते हुए, श्री नायडू ने बी-स्कूलों से शिक्षा और उद्योग जगत के बीच बातचीत को बढ़ावा देने का आह्वान किया जिससे छात्रों को वास्तविक जीवन की स्थितियों और प्रायोगिक ज्ञान तक पहुंच प्राप्त हो सके। उन्होंने छात्रों के सॉफ्ट स्किल्स को बढ़ावा देने के महत्व को भी रेखांकित किया, जो एक सफल प्रबंधक का समग्र निर्माण करने के लिए एक अभिन्न अंग है।
यह देखते हुए कि आजादी के बाद के समय में हार्वर्ड और एमआईटी जैसे अमेरिकी संस्थानों ने भारतीय बी-स्कूलों को सहायता प्रदान की है, श्री नायडू ने इस बात पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान समय में अमेरिकी बी-स्कूलों में कई शीर्ष प्रबंधन संकाय सदस्य भारत में जन्में हुए और शिक्षित हुए हैं। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि यह दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच अन्योन्याश्रय संबंध का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
इस बात को स्वीकार करते हुए कि कोविड-19 ने शिक्षकों और छात्रों को वर्चुअल रूप का अनुकूल बनने के लिए मजबूर कर दिया है, श्री नायडू ने कहा कि अंतःक्रिया करने के लिए ऑनलाइन रूप की ओर हुए अचानक बदलाव ने भी कई प्रकार की चुनौतियां उत्पन्न कर दी हैं। उन्होंने बी-स्कूलों के संकाय सदस्यों को सलाह दिया कि वे अपना ध्यान व्याख्यान देने और निर्देश देने के बजाय प्रतिपालन और मार्गदर्शन पर ज्यादा केंद्रित करें। उन्होंने कहा कि वर्चुअल संदर्भ में भी, नए सामान्य के लिए शिक्षार्थियों को अपना मार्गनिर्देशन करने का अनुभव प्राप्त करने और महत्वपूर्ण सोच और स्वतंत्र निर्णय लेने वाले कौशल प्राप्त करने की आवश्यकता है।
इस वर्चुअल आयोजन में, ईपीएसआई के अध्यक्ष, डॉ. जी विश्वनाथन, एआईसीटीई के अध्यक्ष, डॉ. अनिल डी सहस्त्रबुद्धे, एएसीएसबी, एशिया पैसिफिक के मुख्य अधिकारी, डॉ. ज्योफ पेरी, बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी के निदेशक, डॉ. एच चतुर्वेदी, मानव रचना इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, डॉ. प्रशांत भल्ला और विभिन्न संस्थानों के कुलपति, डीन, प्रिंसिपल, प्रोफेसर एवं छात्र-छात्राएं शामिल हुए।