नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि भारतीय लोकतंत्र प्रत्येक व्यक्ति को अपनी राय व्यक्त करने की अनुमति देता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में असहमति का स्वागत किया जा सकता है, लेकिन विघटन को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
उपराष्ट्रपति आज नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की रजत जयंती समारोह के हिस्से के रूप में आयोजित राट्रीय मानव अधिकार सम्मेलन का उद्घाटन कर रहे थे। इस अवसर पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एच एल दत्तू तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मानव अधिकार किसी व्यक्ति को राज्य या राष्ट्र के विरूद्ध बोलने की खुली स्वतंत्रता नहीं देते। उन्होंने कहा कि मानव अधिकारों को तभी समर्थन दिया जा सकता है जब वे देश के नागरिकों के हितों के साथ सौहार्द कायम करते हैं। उन्होंने कहा कि हाल में मानव अधिकारों के दुरूपयोग देखने को मिले हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए मानव अधिकार समान हैं। इसलिए एक व्यक्ति के अधिकार दूसरे के अधिकारों का हनन नहीं कर सकते। उन्होंने आतंकवाद की निंदा करते हुए कहा कि भारत ने आतंकवाद के कारण श्री राजीव गांधी, श्रीमती इंदिरा गांधी तथा अनेक सांसदों और विधायकों को खोया है।
उन्होंने कहा कि महिलाएं शक्तिस्वरूपिणी हैं। उन्होंने कहा कि देश के निर्माण में महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण है। हमारे संविधान में लैंगिक समानता का सिद्धांत है। कोई भी सभ्य समाज महिलाओं और बच्चों के प्रति हिंसा और भेदभाव को स्वीकार नहीं कर सकता।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मानव अधिकारों की रक्षा और सम्मान की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य की है। उन्होंने भारत के मजबूत मानव अधिकार सुरक्षा ढांचे की सराहना की। इस ढांचे में स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय पालिका, मीडिया, सिविल सोसायटी तथा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग जैसे स्वतंत्र संस्थान शामिल हैं। उन्होंने बताया कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकारों तथा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
उपराष्ट्रपति ने मानव अधिकारों की रक्षा में एनएचआरसी द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की और कहा कि एनएचआरसी को 1993 में जहां 496 शिकायतें प्राप्त हुईं थी वहीं आयोग को 2018 में 79,612 शिकायतें मिलीं। इससे स्पष्ट होता है कि एनएचआरसी में देश के लोगों का विश्वास है।