उत्तराखंड की चुनावी संग्राम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम और केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी के काम से भाजपा को जीत का इनाम मिला है। विपक्ष कांग्रेस का चारधाम और चार काम और तीन तिगाड़े काम बिगाड़े सरीखे नारे काम नहीं आए। प्रदेश के करीब 53 लाख 42 हजार मतदाताओं में से अधिकतर ने भाजपा की जीत की पटकथा लिखी। भाजपा की चुनावी वैतरणी पार लग गई, लेकिन उसके खेवनहार यानी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। उनकी कैबिनेट के एक मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद को छोड़कर बाकी सभी मंत्री चुनाव जीत गए। चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने प्रचार के दौरान कई दांव चले। दलबदल से लेकर विधायकों के टिकट काटने तक का उसका हर दांव काफी हद तक असर दिखा गया। हालांकि पिछले चुनाव की तुलना में उसकी सीटों का अंतर कुछ कम हुआ है। वह 40 सीटों पर रुझानों में आगे चल रही है जबकि सात सीटें अब तक जीत चुकी है। अमर उजाला ने उन कारणों की पड़ताल की जो भाजपा की जीत के आधार बनें।
पेश है ये रिपोर्ट:
मोदी का जादू चला: चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने 152 चुनावी रैलियां कीं। इनमें 148 वर्चुअल और देहरादून, श्रीनगर, अल्मोड़ा और रुद्रपुर में चार फिजीकल रैलियां शामिल हैं। मोदी का जादू महिलाओं और बुजुर्गों के सिर चढ़कर बोला। नतीजे बता रहे हैं कि उत्तराखंड में मोदी का अंडर करंट काम कर गया।
गडकरी का बोला काम: भाजपा की शानदार जीत में गडकरी का काम भी बोला। केंद्रीय सड़क एवं राजमार्ग मंत्रालय ने पिछले पांच साल में सड़कों, पुलों के निर्माण में जो काम किए, उसका भाजपा को फायदा मिला। चारधाम सड़क मार्ग इसमें प्रमुख है।
डबल इंजन का दिखा दम: मोदी बार-बार डबल इंजन का महत्व बताते गए। अगला दशक उत्तराखंड का होगा। 2025 में उत्तराखंड देश का अग्रणी राज्य बनेगा। मोदी ने इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए लोगों डबल इंजन की सरकार बनाने के लिए जो समर्थन मांगा, वो काम कर गया।
हिंदुत्व कार्ड चला: चुनाव में भाजपा ने हिंदुत्व का कार्ड चला। उसने मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मुद्दे को खूब हवा दी। इससे कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ। लैंड जिहाद-लव जिहाद के मुद्दे घोषणा पत्र शामिल किया। हिंदुत्व बहुल राज्य में धार्मिक ध्रुवीकरण का भाजपा को फायदा मिला।
समान नागरिक संहिता का दांव: मतदान से ठीक पहले भाजपा ने समान नागरिक संहिता का दांव चला। यह मुद्दा भी भाजपा के पक्ष में काम कर गया।
विधायकों के टिकट काटे: चुनाव में विधायकों के खिलाफ सत्तारोधी रुझान से बचने के लिए भाजपा ने 17 विधायकों के टिकट काटे। कुल 27 सीटों पर उसने नए चेहरों को उतारा। कांग्रेस ने 18 नए चेहरों पर दांव लगाया। उसका यह दांव अधिकतर सीटों पर एकदम सटीक बैठा।
बगावत को थामने में रही कामयाब: भाजपा बगावत को थामने कामयाब रही। जिन्होंने भाजपा छोड़कर चुनाव लड़ा, वे चुनाव हार गए।
आक्रामक प्रचार: प्रचार के मामले में भी भाजपा काफी आक्रामक रही। केंद्रीय दिग्गज अमित शाह, राजनाथ सरीखे नेताओं ने चुनावी ऐलान से पहले ही उत्तराखंड में दौरे शुरू कर दिए। पूरे चुनाव में भाजपा ने अपने सभी केंद्रीय दिग्गजों को झोंक दिया।
कुशल चुनाव प्रबंधन: भाजपा की जीत चुनाव प्रबंधन एक बड़ा फैक्टर माना जा रहा है। चुनाव के दौरान पार्टी के अमित शाह, जय प्रकाश नड्डा, प्रह्लाद जोशी, अनिल बलूनी सरीखे केंद्रीय नेताओं ने प्रचार अभियान की कमान अपने हाथों में थाम ली।
मजबूत सांगठनिक नेटवर्क का फायदा: भाजपा को मजबूत सांगठनिक नेटवर्क फायदा मिला। पार्टी ने पूर्ण कालिक विस्तारकों को चुनाव से पहले ही मोर्चे पर उतारा। वे मतदान के बाद चुनाव क्षेत्रों से लौटे। चुनाव प्रभारी हर सीट पर उतारे। बूथ इकाइयों व पन्ना प्रमुखों के जरिये पार्टी ने एक-एक बूथ पर सक्रिय दिखा।
आरएसएस की सक्रियता: चुनावी चुनौती के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की फौज भी सक्रिय हो गई और अंदरखाने भाजपा के प्रचार में जुटी। हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने में स्वयंसेवकों ने उत्प्रेरक का काम किया।
जहाज पार लगाया युवा कप्तान डूब गया : मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बेशक चुनाव हार गए। लेकिन सत्ता की कमान संभालने के दिन से वह चैन से नहीं बैठे। चुनाव प्रचार के दौरान वह अपनी विधानसभा के लिए भी ज्यादा समय नहीं दे पाए। इसकी कीमत उन्हें सीट गंवाकर चुकानी पड़ी।
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