केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये कोलिशन फॉर डिजास्टर रिसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआई) और यूएन ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (यूएनडीआरआर) के कार्यक्रम को संबोधित किया। “जोखिम से निपटने की पूर्व रणनीतिः स्वास्थ्य संरचना और आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण” विषय से आयोजित कार्यक्रम को केंद्रीय मंत्री ने संबोधित किया।
शुरू में डॉ. वर्धन ने इस वेबिनार को आयोजित करने के लिए यूएन ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन और कोलिशन फॉर डिजास्टर रिसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर की सराहना की। स्वास्थ्य ढांचे और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार को लेकर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया।
भारत में कोविड प्रक्षेपवक्र पर बात करते हुए डॉ. वर्धन ने कहा, “कोविड-19 महामारी को करीब एक साल हो गए। जब दुनिया के कई हिस्सों में मामलों में कमी आ रही है लेकिन कई ऐसे भी हैं जहां दूसरा या तीसरा पिक देखने को मिल रहा है। सौभाग्य से भारत में कोविड के मामलों में लगातार कमी आ रही है। हमने खतरे को जल्दी पहचान लिया और एक वैज्ञानिक साक्ष्य आधारित नजरिये पर काम किया।”
अभूतपूर्व मानवीय संकट से निपटने के लिए भारत की ओर से उठाए गए कदमों की चर्चा करते हुए हुए डॉ. वर्धन ने कहा, “हमारा पहला कदम अपनी मौजूदा क्षमताओं में तेजी से विस्तार करना था, चाहे वह टेस्टिंग हो, पीपीई प्रोडक्शन हो अथवा अस्पताल में बेड के लिए हो। हमने समस्या को अधिक गंभीरता से लिया और तेजी के साथ इसके लिए काम किया।”
मंत्री ने आगे कहा, “हमने सार्वजनिक और निजी संस्थानों की एक विस्तृत श्रृंखला में कई शोध विषयों से अपनी क्षमताओं को फिर से हासिल किया। हमने त्वरित क्षमता वाले अस्पतालों के लिए रक्षा अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ाया। महामारी से पहले भारत पीपीई का आयातक था, लेकिन भारत अब पीपीई का शुद्ध निर्यातक है। हमने प्रति दिन कुछ सौ टेस्टिंग से लेकर प्रति दिन दस लाख टेस्टिंग तक अपनी क्षमता को बढ़ाया है। भारतीय अनुसंधान संस्थानों ने जिस निष्ठा से काम किया है, उसे न केवल संरक्षित करने की जरूरत है, बल्कि उसे तो प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिए।”
डॉ. हर्ष वर्धन ने ये भी बताया कि संवाद की प्रभावी रणनीति किस प्रकार समस्या समाधान के लिहाज से उपयोगी साबित होती है। उन्होंने बताया, “हमने सभी को एकजुट करने के लिए हर मुमकिन संसाधनों का उपयोग किया है। माननीय प्रधानमंत्री ने स्वयं इस प्रयास का नेतृत्व किया है और नागरिकों को सीधे संबोधित किया है। उन्होंने सहकारी संघवाद की भावना पर भी जोर दिया, जिसमें राज्य और केंद्र सरकारों ने प्रत्येक चरण में एक-दूसरे से हाथ मिलाकर काम किया।”
कोविड का मुकाबला करने के लिए बहुपक्षीय दृष्टिकोण पर जोर देते हुए डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा, “इसके अलावा, हमने इस बात की जल्दी तस्दीक कर ली कि स्वास्थ्य क्षेत्र को कोविड-19 का मुकाबला करने में सबसे आगे रहना है। इसके लिए सभी आवश्यक सरकारी तंत्रों मसलन- आपदा प्रबंधन, उद्योग, नागरिक उड्डयन, शिपिंग, फार्मास्यूटिकल्स और पर्यावरण को एक साथ मिलकर काम करने को प्रेरित किया। हमने इन बहु-क्षेत्रीय कार्यों को एक साथ मिलकर करने के लिए “सशक्त समूहों” के रूप में एक संस्थागत मंच स्थापित करने के लिए काम किया।”
डॉ. वर्धन ने यह भी कहा, “हमने इस बीमारी पर नजर रखने, निगरानी और नियंत्रण के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का अभिनव उपयोग किया है। भारत जैसे देश में हमें यह सुनिश्चित करना था कि हम विभिन्न तकनीकों का विवेकपूर्ण उपयोग करना है ताकि कोई भी पीछे न छूट जाए।”
डॉ. वर्धन ने कहा, “मेरा मानना है कि महामारी के दौरान दुनिया के कई देशों में विकसित की गई कुछ अच्छी चीजों को संस्थागत रूप देने की जरूरत है, ताकि भविष्य में हमें इन्हें फिर से तैयार करने की आवश्यकता न पड़े। साथ ही, हमें यह भी सोचना होगा कि हम इससे बेहतर और क्या कर सकते थे। हमें सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे के संदर्भ में “बिल्डिंग बैक बेटर” यानी किसी आपदा से पहले निपटने की रणनीति के बारे में गहन चर्चा की आवश्यकता होगी! हम पारंपरिक ज्ञान के साथ आधुनिक विज्ञान को कैसे जोड़ेंगे? हम “स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे” को कैसे परिभाषित करते हैं? यह भी देखना होगा। क्या यह केवल बड़े अस्पताल, जिला अस्पताल और प्राथमिक हेल्थ केयर सेंटर्स तक सीमित है? या क्या यह पूरी प्रणाली है जिसमें जल और स्वच्छता, सामाजिक कल्याण, परिवहन और उद्योग सहित अन्य क्षेत्र शामिल हैं? ये ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिन पर जोर दिया जाना चाहिए। साथ ही उनके पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है।
वैश्विक स्तर पर सामान्य हित के एक आवश्यक क्षेत्र के रूप में आपदा से त्वरित गति से निपटने की बात दोहराते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा, “पिछले दशकों में भारत और दुनिया के देशों ने आर्थिक और मानव विकास में अभूतपूर्व प्रगति देखी है। अगर हम अपने सिस्टम को रिसिलिएंट नहीं बनाते हैं तो हमने देखा कि कोविड-19 एक ऐसे चुनौती के रूप में सामने आया जिसके सामने ये सभी उल्लेखनीय प्रगति जोखिम में नजर आईं। महामारी का महत्वपूर्ण सबक यह है कि रिसिलिएंट के सिद्धांत किसी राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के रूप में आर्थिक विकास के लिए हमारे के लिए अभिन्न होने चाहिए। हमारा जीवन और आजीविका बहुत अच्छी तरह से इस पर निर्भर हो सकती है। ऐसा करने के लिए हमें न केवल महामारी, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से उभरने वाले सभी प्रकार के जोखिमों के लिए अपने सिस्टम को रिसिलिएंट यानी निपटने में कारगर बनाना होगा।”
डॉ. वर्धन ने आगे कहा, “हमें मजबूत मानवीय भविष्य के लिए वैश्विक संवाद और दिशानिर्देश तय करने होंगे। यह उन लोगों के लिए सबसे बड़ा सम्मान होगा जो विशेष रूप से हेल्थ वर्कर्स, आपातकालीन सेवा प्रदाता और फ्रंटलाइन वर्कर्स हैं- जिन्होंने अपनी निजी सुरक्षा से पहले दुनिया की सुरक्षा को तरजीह दी है।”