केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज यहां एनएएफएलडी (गैर अल्कोहोलिक फैटी लिवर बीमारियां) को एनपीसीडीएस (कैंसर, मधुमेह, ह्रदय रोग और स्ट्रोक से बचाव और नियंत्रण का राष्ट्रीय कार्यक्रम) से जोड़ने के प्रक्रियागत दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
डॉ. हर्षवर्धन ने कार्यक्रम के सामयिक महत्व की सराहना करते हुए कहा, “एनएएफएलडी फैटी लिवर के अन्य कारणों जैसे कि शराब का सेवन नुकसानदेह, वाइरल हैपेटाइटिस या चिकित्सागत कारण न होने के बाद भी लिवर में फैट का असामान्य रूप से जमा होना गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि यह यकृत की कई अन्य बीमारियों को जन्म देता है जैसे कि सामान्य गैर अल्कोहोलिक फैटी लिवर (एनएएफएल,साधारण फैटी लिवर बीमारी) से लेकर ज्यादा गंभीर गैर अल्कोहोलिक स्टेटोहैपेटाइटिस (एनएएसएच), सायरोसिस और यहां तक कि लिवर कैंसर भी। पिछले दो दशकों के दौरान एनएएसएच का दुनिया पर बोझ दोगुना हो गया है। 1990 में दुनिया भर में एनएएसएच में सायरोसिस के 40 लाख मामले आए जो कि 2017 में बढ़कर 94 लाख हो गए। एनएएफएलडी भारत में लिवर की बीमारियों के प्रमुख कारण के रूप में सामने आ रहा है।“
एनएएफएलडी से निपटने के महत्व को गैर संक्रामक रोगों के मामले में देश पर पड़ने वाले बोझ से निपटने के कदम के रूप में रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा, “भारत में सामान्य जनसंख्या में 9 से 32 प्रतिशत एनएएफएलडी की व्याप्ति है। ऐसे लोगों में यह अधिक है जो मोटापे से पीड़ित हैं या अत्यधिक वजनी हैं और जिनको मधुमेह है या मधुमेह-पूर्व की स्थिति है। शोधकर्ताओं ने टाइप-2 मधुमेह बीमारी से पीड़ित लोगों में 40 से 80 प्रतिशत और मोटापे के शिकार लोगों में 30 से 90 प्रतिशत एनएएफएलडी पाई है। अध्ययनों में यह भी कहा गया है कि एनएएफएलडी पीड़ित लोगों में ह्रदय रोगों की आशंका भी अधिक होती है। एनएएफएलडी में ह्रदय संबंधी बीमारियां मृत्यु की सबसे आम वजह है। एक बार बीमारी के बढ़ जाने पर उसका कोई इलाज नहीं है। बीमारी की रोकथाम और एनएएफएलडी से होने वाली मौतों को कम करने के लिए मोटापा या वजन कम करने, स्वस्थ जीवन शैली अपनाने और ऊपर उल्लेखित जोखिम कारकों पर नियंत्रण के लिए स्वास्थ्य संवर्धन और बचाव का ही मुख्य सहारा है।“
हालात के साथ संबद्ध एनसीडी के कारण होने वाली मौतों को नियंत्रित करने की सरकार की योजना का विस्तार से उल्लेख करते हुए केन्द्रीय मंत्री ने कहा, “एनएएफएलडी अपने आप में ह्रदय रोगों, टाइप-2 मधुमेह और उच्च रक्तचाप, पेट के मोटापे, डिसलिपिडेमिया, ग्लूकोज को लेकर शरीर की असहनशीलता जैसे मेटेबोलिक लक्षणों का पूर्वानुमान देने वाला है। भारत सरकार का ऐसा मानना है कि एनपीसीडीएस कार्यक्रम की रणनीतियों को जीवनशैली में परिवर्तन, शीघ्र निदान और एनएएफएलडी के साथ ही संबंद्ध गैर संक्रामक बीमारियों के प्रबंधन के माध्यम से एनएएफएलडी के बचाव से जोड़ी जा सकती हैं। इसके अनुसार ही उठाए जा सकने वाले कदमों की पहचान की गई है जिनमें स्वास्थ्य संवर्धन और सामान्य एनसीडी पर मुख्य ध्यान केन्द्रित किया है जो कि एनएएफएलडी की चिह्नांकित जरूरतों को भी विशेष तौर पर पूरा करेंगी।“
स्वास्थ्य मंत्री ने इस अवसर पर यह भी याद दिलाया कि भारत एनएएफएलडी के लिए कार्रवाई की जरूरत की पहचान करने वाला दुनिया का पहला देश बन रहा है। उन्होंने कहा, “”भारत सरकार ने यह महसूस किया है कि एनसीडी की मौजूदा कार्यक्रम रणनीतियां एनएएफएलडी के बचाव और नियंत्रण के उद्देश्य को हासिल करने के लिए इनके साथ जोड़ी जा सकती हैं” :
- व्यवहार और जीवनशैली परिवर्तन
- एनएएफएलडी का शीघ्र निदान और प्रबंधन
- एनएएफएलडी के बचाव, निदान और उपचार के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के विभिन्न स्तरों पर क्षमता का निर्माण करना
उन्होंने एनसीडीपर नियंत्रण में आयुष्मान भारत – सेहत और तंदरुस्ती केन्द्रों (एबी-एचडब्ल्यूसी) के महत्व के बारे में विस्तार से बताया। “आयुष्मान भारत कार्यक्रम ने एचडब्ल्यूसी के माध्यम से 8.38 करोड़ लोगों की उच्च रक्तचाप, 6.83 करोड़ की मधुमेह और 8.06 करोड़ लोगों की तीन सबसे सामान्य कैंसर के लिए स्क्रीनिंग की है। सामुदायिक स्तर पर 6.91 लाख योग और तंदरुस्ती सत्र आयोजित किए गए हैं। गरीबों में भी सबसे गरीब के इलाज के अतिरिक्त समुदाय में जमीनी स्तर पर स्वस्थ जीवनशैली को विकसित करने का भी जिम्मेदारी है। “ईट राइट इंडिया” और “फिट इंडिया मूवमेंट” पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ सरकार की संपूर्ण सोच निदान केन्द्रित इलाज से बीमारी की रोकथाम और सेहत के बचाव की ओर है।“
इस संबंध में उन्होंने याद किया कि कैसे वह युवा डॉक्टर के रूप में काम करते हुए रोगियों को दवाएं लिखने की बजाय तंबाकू और शराब के सेवन से बचने की सलाह देते थे। दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में एक साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने एसोसिएशन को “धूम्रपान प्रतिबंधित क्षेत्र” बना दिया था। आंदोलन को व्यापक बनाने के लिए उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य संबंधी कवरेज करने वाले पत्रकार और सामान्य तौर पर मीडिया की एनसीडी के संबंध में जागरूकता और सूचनाओं के प्रसार में अहम भूमिका है और किस तरह से स्वस्थ जीवनशैली एनसीडी से बचाव में मददगार हो सकती है। उन्होंने सभी को स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ाने और सक्रिय जीवनशैली अपनाने की अपील की। उन्होंने चिकित्सा समुदाय को भी इस दिशा में किसी भी प्रयास को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से पूरे सहयोग का आश्वासन दिया।
कार्यक्रम में स्वास्थ्य सचिव श्री राजेश भूषण, एएस और एनएचएम की प्रबंध-निदेशक सुश्री वंदना गुरनानी, जेएस (एनसीडी) श्री विशाल चौहान, डीजीएचएस डॉ. सुनील कुमार, आईएलबीएस के निदेशक डॉ. एस के सरीन और आईएलबीएस के अन्य वरिष्ठ प्रोफेसर भी उपस्थित थे। यूएनडीपी, यूएसएआईडी-निष्ठा जैसे विकास साझेदारों के प्रतिनिधि भी इस आयोजन में शामिल हुए।