नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री हर्षवर्धन ने कोटा में बच्चों की मृत्यु पर राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत से बात कर उन्हें पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया है। श्री हर्षवर्धन ने कहा कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय बेहतरीन शिशु चिकित्सकों सहित कई विशेषज्ञों का दल कोटा भेज रहा है।
इस उच्चस्तरीय दल में निम्नलिखित विशेषज्ञ सम्मिलित होंगे
1. डॉ. कुलदीप सिंह- एम्स जोधपुर में शिशु चिकित्सा विभाग के प्रमुख अकादमिक डीन,
2. डॉ. दीपक सक्सेना- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय,भारत सरकार में वरिष्ठ क्षेत्रीय निदेशक(राजस्थान)
3. डॉ. अरूण सिंह- एम्स,जोधपुर में प्रोफेसर,नियोनेटोलॉजी,
- डॉ.हिमांशु भूषण-एनएचएसआरसी,स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में सलाहकार
विशेषज्ञों का यह दल राज्य सरकार के साथ मिलकर कोटा मेडिकल कालेज में मातृत्व,नवजात और शिशु देखभाल सेवा के क्षेत्र में रोगों निवारण से संबंधित प्रक्रिया ,सेवाएं,मानव संसाधनों की उपलब्धता और उपकरणों का निरीक्षण करेगा। केंद्रीय विशेषज्ञ दल की रिपोर्ट के आधार पर कोटा मेडिकल कालेज को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और राज्य स्वास्थ्य शिक्षा विभाग द्वारा तकनीकी और वित्तीय सहयोग प्रदान किया जाएगा। यह केंद्रीय दल तीन जनवरी,2020 को राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ कोटा के जेके लोन हास्पिटल और मेडिकल कालेज का दौरा करेगा और अपनी विस्तृत रिपोर्ट सौंपेगा।
डा. हर्षवर्धन ने राजस्थान के मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कोटा के जेके लोन हास्पिटल और मेडिकल कालेज में बच्चों की मृत्यु पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि गत चार वर्षों में राजस्थान में शिशु मृत्यु दर(आईएमआर) में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है,लेकिन कोटा के जेके लोन हास्पिटल में वर्ष 2018 और 2017 के मुकाबले वर्ष 2019 में शिशु मृत्यु दर(आईएमआर) में वृद्धि दर्ज की गई। वर्ष 2019 में शिशु मृत्यु दर 20.2 प्रतिशत दर्ज की गई,जबकि वर्ष 2017 में यह 4.3 प्रतिशत और वर्ष 2018 में 14.3 प्रतिशत थी। उन्होंने राजस्थान के मुख्यमंत्री से स्थिति का आंकलन कर शिशुओं की मृत्यु को रोकने के लिए बेहतर प्रयास करने हेतु अनुरोध किया। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर राज्य सरकार को तकनीकी सहायता देने के लिए तैयार है। केंद्र सरकार शिशुओं को बचाने में सुधार करने के लिए राज्य सरकार से निरंतर सहयोग की आशा रखती है, जिससे स्वास्थ्य प्रणाली की क्षमता में कमी या अन्य कारणों के चलते किसी भी शिशु की मृत्यु को रोका जा सके।