Online Latest News Hindi News , Bollywood News

डॉ. जितेंद्र सिंह ने स्टार्ट-अप्स को बनाए रखने के लिए उद्योग द्वारा समान हिस्सेदारी की भागीदारी का आह्वान किया

देश-विदेश

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज स्टार्टअप्स को बनाए रखने के लिए उद्योग द्वारा समान हिस्सेदारी की भागीदारी का आह्वान किया।

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (टीडीबी) और भारत बायोटेक लिमिटेड के डॉ. कृष्णा एला द्वारा संचालित मैसर्स सैपिजेन बायोलॉजिक्स प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद के दो नए वैक्सीन- “इंट्रानैसल कोविड -19 वैक्सीन और आरटीएस, एस मलेरिया वैक्सीन” के विकास और व्यावसायीकरण के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए आयोजित समारोह में बोल रहे थे। इसके अलावा, दोनों पक्षों के लिए समान हिस्सेदारी होगी, जिसमें प्रत्येक पक्ष स्थायी स्टार्टअप सुनिश्चित करने के लिए क्रमशः 200 करोड़ रुपये का योगदान देगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह पहल स्थायी स्टार्टअप्स के लिए समान भागीदारी के साथ समान हिस्सेदारी और उद्योग की जिम्मेदारी सुनिश्चित करेगी। उन्होंने कहा कि भारत की वैक्सीन रणनीति प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आत्म-निर्भर भारत के विचार का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की वैक्सीन रणनीति फार्मा, उद्योग और शिक्षा जगत को वर्तमान और भविष्य की संभावित चुनौतियों का सामना करने के लिए एक साझेदारी में एकजुट करती है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस तरह की पहल के पीछे का विचार लंबे समय में एक स्थायी साझेदारी करना और भारत के युवाओं को आजीविका का एक स्थायी स्रोत प्रदान करना है। डॉ. सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार हर संभव सहयोग देकर औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित कर रही है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह न केवल समान हिस्सेदारी और भागीदारी का समझौता है बल्कि समान सामाजिक जिम्मेदारी का भी समझौता है। उन्होंने इसे भारत की वैक्सीन रणनीति में एक नई शुरुआत करार दिया और उम्मीद जताई कि यह देश में अनुसंधान और विकास को और गति देगा।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आज, महामारी के केवल दो वर्षों के भीतर,  भारतीय दवा उद्योग अपने स्वदेशी वैक्सीन विकसित करने में सक्षम है। इसने विकसित किए गए लगभग सभी कोविड वैक्सीन के निर्माण में मदद करने के लिए अपनी प्रौद्योगिकी समावेशी क्षमता को भी दिखाया है। भारत ने अपेक्षाकृत कम लागत पर वैक्सीन का निर्माण करके दिखाया और इस प्रकार भारत “दुनिया की फार्मेसी” के रूप में उभर रहा है। मार्च 2021 तक, भारत ने 70 देशों को कोविड वैक्सीन की 5.84 करोड़ खुराक का निर्यात किया। यह सस्ती कुशल श्रमशक्ति और एक अच्छी तरह से स्थापित विनिर्माण परितंत्र की उपलब्धता के कारण संभव हुआ है।

आज हस्ताक्षर किए गए समझौते के तहत, प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड और भारत बायोटेक ने दो नए वैक्सीन- इंट्रानैसल कोविड-19 वैक्सीन” और “आरटीएस, एस मलेरिया वैक्सीन” के विकास और व्यावसायीकरण के लिए 400 करोड़ रुपये का स्थायी कोष बनाने के लिए 200 करोड़ रुपये की मदद देने का वादा किया है। कंपनी का लक्ष्य भुवनेश्वर में नवीनतम वैश्विक मानकों के अनुरूप एक अत्याधुनिक सीजीएमपी सुविधा स्थापित करना है जो शुरू में इंट्रानैसल कोविड-19 वैक्सीन और (आरटीएस, एस) मलेरिया वैक्सीन का निर्माण करेगी और फिर बाद में अन्य वैक्सीन का निर्माण करते हुए अपने उत्पाद पोर्टफोलियो का विस्तार करेगी। जिन दो वैक्सीन का विकास और व्यावसायीकरण किया जाना है वो हैं: –

ए: नैसल कोरोना वायरस वैक्सीन: मौजूदा समय में उपयोग किए जाने वाले इंट्रामस्क्युलर (आईएम) कोरोना वायरस वैक्सीन के विपरीत इंट्रानैसल वैक्सीन म्यूकोसल प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकता है जिससे टीकाकरण वाले व्यक्ति की ऊपरी और निचली श्वसन प्रणाली दोनों की रक्षा होती है और संक्रमण तथा संचरण का चक्र टूट जाता है। वर्तमान परियोजना में सार्स-सीओवी-2 चिंपैंजी एडिनोवायरस के निष्क्रिय या मारे गए वायरस के रूप में वाशिंगटन विश्वविद्यालय, सेंट लुइस के मेडिसिन स्कूल द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी मंच का इस्तेमाल होगा।

इस मंच के कई फायदे हैं: ये वैक्सीन सर्फेस एंटीजन को व्यक्त करते हैं जो विशेष रूप से सार्स-सीओवी -2 के संदर्भ में मजबूत निवारक तरल प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए अपने एपिटोप अनुरूपता को बनाए रखते हैं। इसे बढ़ाना अपेक्षाकृत आसान है। इसका वितरण (आई-जेनरेशन टीकों में से प्रत्येक 0.5 मिलीलीटर की 2 खुराक के मुकाबले 0.1 मिलीलीटर की एकल खुराक) भी आसान है। इसे अप्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता द्वारा भी लगाया जा सकता है और इसे खुद भी लगाना संभव है। सिरिंज, सुई और अल्कोहल स्वैब की कोई आवश्यकता नहीं है। उपयोग करने के लिए सुरक्षित भी है।

बी: आरटीएस, एस मलेरिया वैक्सीन: सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षमता को देखते हुए, विश्व स्वास्थ्य संगठन- डब्ल्यूएचओ के मलेरिया और टीकाकरण के लिए शीर्ष सलाहकार निकायों ने संयुक्त रूप से उप-सहारा अफ्रीका के चयनित क्षेत्रों में टीके की चरणबद्ध शुरूआत की सिफारिश की है। तीन देशों – घाना, केन्या और मलावी ने 2019 में मध्यम और उच्च मलेरिया संचरण के चयनित क्षेत्रों में टीका लगाना शुरू करना शुरू किया। प्रत्येक देश के नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के माध्यम से टीकाकरण किया जा रहा है। जीएवीआई के पूर्वानुमान के अनुसार, 2035 तक मलेरिया के टीके की मांग 75 मिलियन खुराक की होगी।

दोनों टीके नए हैं और पहली बार व्यावसायिक उत्पादन के दायरे में आएंगे।

कंपनी का लक्ष्य अप्रैल 2023 तक इंट्रानैसल कोविड -19 वैक्सीन की 100 मिलियन खुराक / वर्ष और अप्रैल 2025 के अंत तक आरटीएस, एस मलेरिया वैक्सीन की 15 मिलियन खुराक / वर्ष का उत्पादन करना है।

इस अवसर पर टीडीबी के सचिव राजेश कुमार पाठक ने कहा कि यह एक सतत कोष होगा और इस विचार को आज हकीकत में बदल दिया गया है। उन्होंने कहा कि भारतीय फार्मा कंपनियां न केवल राष्ट्र को सेवा प्रदान कर रही हैं, बल्कि पूरी दुनिया को सस्ती कीमत पर दवाएं और टीके उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं और इस तरह भारत को “विश्व की फार्मेसी” के रूप में बदल रही हैं।

Related posts

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More