नई दिल्ली: संस्कृति राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने आज नई दिल्ली में संस्कृति मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय संग्रहालय के दो महत्वपूर्ण प्रकाशनों- सिंधु घाटी सभ्यताः एक परिचय (हिन्दी) तथा राष्ट्रीय संग्रहालय रिसर्च बुलेटिन संख्या 10: विशेषांक का लोकार्पण किया। राष्ट्रीय संग्रहालय रिसर्च बुलेटिन का प्रकाशन 16 वर्षों के अंतराल के बाद किया गया है।
इस अवसर पर डॉ. शर्मा ने रिसर्च बुलेटिन को पुर्नजीवित करने के लिए राष्ट्रीय संग्रहालय को बधाई दी और कहा कि इससे राष्ट्रीय संग्रहालय के गतिविधियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद मिलेगी। डॉ. महेश शर्मा ने कहा कि यद्यपि भारत विविधताओं वाला देश है लेकिन भारत अपनी मजबूत सांस्कृतिक विरासत के कारण एकजुट है। हमारे अतीत के बारे में निरंतर रूप से खोज हो रहे हैं और इतिहास में नए अध्याय जुड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन अध्यायों को लोगों, विशेषकर युवाओं के समक्ष लाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस दिशा में राष्ट्रीय संग्रहालय की बड़ी भूमिका है।
राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. बी.आर. मणि ने अपने संदेश में कहा कि रिसर्च बुलेटिन से नए ढंग से दिलचस्पी लेंगे और उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में राष्ट्रीय संग्रहालय की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में संवाद की प्रेरणा मिलेगी।
राष्ट्रीय संग्रहालय रिसर्च बुलेटिन संख्या 10: इस विशेषांक में अनेक शोध पत्र हैं जो राष्ट्रीय संग्रहालय के संग्रहण, प्रदर्शन और शिक्षा के पहलुओं को दिखाते हैं। रिसर्च बुलेटिन में रंगीन चित्रों के माध्यम से व्याख्या की गई है। कुछ रंगीन चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय के आरक्षित संग्रह से जुड़े हैं। इस तरह बुलेटिन अधिक से अधिक लोगों के लिए आकर्षक है। यह रिसर्च बुलेटिन 16 वर्षों के अंतराल के बाद महानिदेशक डॉ. बी.आर. मणि के निर्देशन में पुर्नजीवित की गई है। डॉ. मणि बुलेटिन के मुख्य संपादक भी है।
सिंधु घाटी सभ्यताः एक परिचय ‘एन इन्ट्रोडक्शन टू इन्डस वैली सिविलाईजेशन’ का हिन्दी संस्करण है। राष्ट्रीय संग्रहालय में ‘एन इन्ट्रोडक्शन टू इन्डस वैली सिविलाईजेशन’ पुस्तक की काफी बिक्री है। इसके सह-लेखक है डॉ. संजीव श्रीवास्तव (उप अधीक्षण पुरातत्त्ववेत्ता, एएसआई) तथा श्री राजेश कुमार (हिन्दी अनुवादक, राष्ट्रीय संग्रहालय)। यह पुस्तक सिंधु घाटी सभ्यता की भव्यता पर प्रकाश डालती है। यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि इस विषय पर अधिकतर कार्य अंग्रेजी भाषा में किए गए है और इससे भाषाई पाठकों को विशेष रूप से लाभ मिलेगा।
दोनों प्रकाशनों की बिक्री राष्ट्रीय संग्रहालय के स्वागत काउंटर पर की जाएगी और इससे आम जनता के साथ-साथ विद्यार्थी, विद्वान, कलाकार, इतिहासकार, संग्रहालय क्षेत्र के पेशेवर लोगों तथा कला प्रेमी लाभान्वित होंगे।