नई दिल्ली: महामारी के इस महा संकट के दौर में कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए डीआरडीओ द्वारा विकसित दवा 2- डीऑक्सी-डी-ग्लूकोस (2-DG) के आपात इस्तेमाल की मंजूरी भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने दे दी है। रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को बताया कि गंभीर लक्षणों के मरीजों पर इसके इस्तेमाल की अनुमति दी गई है।
चिकित्सकीय परीक्षण में सामने आया कि 2-DG दवा अस्पताल में भर्ती मरीजों के जल्द ठीक होने में मदद करने के साथ-साथ अतिरिक्त ऑक्सीजन की निर्भरता को कम करती है। इस दवा को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की प्रतिष्ठित प्रयोगशाला नाभिकीय औषधि तथा संबद्ध विज्ञान संस्थान ने हैदराबाद के डॉक्टर रेडी लेबोरेटरी के साथ मिलकर विकसित किया है।
पाउडर के रूप में आती है दवा
मंत्रालय ने बताया कि 2-DG दवा पाउडर के रूप में पैकेट में आती है। इसे पानी में घोलकर पीना है। इस दवा का दूसरे चरण का इंसानी परीक्षण पिछले साल मई से अक्टूबर तक देश के 6 अस्पतालों में हुआ था। इसमें यह सुरक्षित पाई गई थी। उसके बाद नवंबर से इस साल मार्च तक देश के कई राज्यों में 27 कोविड अस्पतालों में इस दवा का तीसरे चरण का परीक्षण किया गया।
2-DG दवा ऐसे शरीर पर करती है काम
मंत्रालय के अनुसार डीआरडीओ की 2-DG दवा वायरस से संक्रमित कोशिकाओं में जमा हो जाती है और वायरस की वृद्धि को रोकती है। वायरस से संक्रमित कोशिका पर चुनिंदा तरीके से काम करना इस दवा को खास बनाता है। सार्स-कोव-2 को अपनी प्रतियां बनाने से ये दवा 100 प्रतिशत तक रोकती है।
मानव परीक्षण से पहले प्रयोगशाला परीक्षण में पाया गया था कि 2-DG दवा वायरस सार्स-कोव-2 को अपनी प्रतियां बनाने से 100% रोकती है। वायरस इंसानी सेल से जुड़कर वहां मौजूद ग्लूकोस से एनर्जी लेता है। इस प्रक्रिया को ग्लाइकोसिलेशन और ग्लाइकोलिसिस कहते हैं। इससे वायरस को एनर्जी मिलती है और वह अपनी प्रतियां बनाता है।
2-DG का पूर्ण स्वेदसी उत्पादन
दूसरी ओर 2-DG भी बिल्कुल कुदरती ग्लूकोस जैसा है। मगर इसमें हाइड्रोक्साइड का एक समूह नहीं होता, इसीलिए इससे ऊर्जा नहीं मिलती। वायरस ग्लूकोज समझकर इससे जुड़ता है मगर कोई एनर्जी ना मिलने की वजह से अपनी प्रतियां नहीं बना पाता। मंत्रालय के अनुसार सामान्य अणु और ग्लूकोज के अनुरूप होने की वजह से इसे भारी मात्रा में देश में ही तैयार किया जा सकता है, इसीलिए आयात पर निर्भरता नहीं है। नवोदय टाइम्स